जिनेवा। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के चल रहे ५३वें सत्र के मौके पर तिब्बत ब्यूरो- जिनेवा और सोसाइटी फॉर थ्रेटेंड पीपुल्स ने संयुक्त रूप से तिब्बत में चीन के निरंतर दमन पर प्रकाश डालने के लिए एक अतिरिक्त कार्यक्रम का आयोजन किया।
इस इतर समारोह का विषय था- ‘तिब्बतंस रिपोर्ट ऑन द करेंट स्टेट ऑफ रिप्रेशन : ७५ इयर आफ्टर द यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के ७५ वर्ष बाद दमन की वर्तमान स्थिति पर तिब्बतियों की रिपोर्ट)। इस कार्यक्रम का संचालन सोसाइटी फॉर थ्रेटेंड पीपुल्स के हनो शेडलर ने किया। तिब्बत पर आयोजित इस कार्यक्रम में तिब्बत ब्यूरो के संयुक्त राष्ट्र एडवोकेसी अधिकारी काल्डेन छोमो, पूर्व तिब्बती राजनीतिक कैदी फुंटसोक न्यिड्रोन और तिब्बत एडवोकेसी गठबंधन के समन्वयक ग्लोरिया मोंटगोमरी ने अपनी बात रखी।
कार्यक्रम में बोलते हुए काल्डेन छोमो ने कहा, ‘मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) को अपनाने के ७५ साल बाद भी राजनीतिक दमन, तिब्बती संस्कृति और पहचान को निगल जाना, तिब्बती लोगों से सामाजिक भेदभाव और उन्हें आर्थिक रूप से हाशिए पर ढकेल देना और चीन के नियंत्रण वाले तिब्बत में प्राकृतिक पर्यावरण का विनाश जारी है। इसके अलावा, उन्होंने तिब्बत में चीन द्वारा जारी दमन पर प्रकाश डाला और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तिब्बत में चीन के अधिकारों के उल्लंघन को कम करने के लिए ठोस प्रयास करने का आग्रह किया।
तिब्बत की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली पूर्व महिला राजनीतिक कैदियों में से एक फुंटसोक न्यिड्रोन ने १९८९ से २००४ तक जेल में रहने के दौरान चीनी अधिकारियों के अमानवीय व्यवहार और विभिन्न प्रकार की यातनाओं का अपना प्रत्यक्ष अनुभव बयां किया। उन्होंने कहा कि तिब्बती संस्कृति, पहचान और भाषा पर लगातार बढ़ते दमन के कारण तिब्बत के हालत खराब होते जा रहे हैं। उन्होंने तिब्बत के लिए लगातार अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन और तिब्बत में राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए समर्थन की अपील की। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन के कारण वह चीनी दमन से मुक्त होने और तिब्बत पर बोलने में सक्षम हो पाई हैं। उन्होंने तिब्बतियों की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं को पूरा करने और परम पावन दलाई लामा की तिब्बत वापसी के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन का भी आह्वान किया।
तिब्बत एडवोकेसी गठबंधन के समन्वयक ग्लोरिया मोंटगोमरी ने तिब्बत में जबरन आवासीय बोर्डिंग स्कूलों के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि पिछले साल प्रकाशित तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट की एक शोध रिपोर्ट में पता चला है कि ६ से १८ वर्ष की आयु के कम से कम ९,००,००० तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों और समुदायों से अलग कर दिया गया है और आवासीय स्कूलों में रहने के लिए मजबूर किया गया है। ग्लोरिया ने कहा, ‘चार और पांच साल के १,००,००० से अधिक बच्चों के अपने माता-पिता से अलग होने और सप्ताह में कम से कम पांच दिन बोर्डिंग प्री-स्कूल में रहने का भी अनुमान है।‘ उन्होंने उस भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक संकट पर प्रकाश डाला जो जबरन आवासीय विद्यालयों के कारण किसी भी बच्चे को होगा। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से जबरन आवासीय स्कूलों को तुरंत बंद करने और निजी तिब्बती स्कूलों को स्थापित करने की अनुमति देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संधि निकायों के आह्वान और आवाज को दोहराने का आग्रह किया।