दलाई लामा बोले -मेरे मस्तिष्क के आधे हिस्से में नालंदा की स्मृतियां ।
नोबल शांति पुरस्कार विजेता व तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि मैं भारत का दूत और बेटा हूं। यदि मेरे मस्तिष्क का ऑफरेशन किया जाए तो आधे हिस्से में नालंदा विश्वविधालय की स्मृतियां तथा शोष आधे हिस्से में भारत की दाल- चपाती पाएंगे। ऐसे में मैं भारत -पुत्र नहीं तो क्या हूं। वे शनिवार को बेयरफुट कॉलेज तथा संतोकबा दुर्लभजी मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से जेएलएन मार्ग पर एक होटल में नई सहसाब्दी के लिए नैतिकता विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। कार्य़क्रम में बडी संख्या में तिब्बतियों व स्थानीय लोगों के साथ छात्र – छात्राएं तथा विदेशी पर्यटक उपस्थित थे।
तीन प्राथमिकताएं गिनाई ।
दलाई लामा ने कहा कि उनकी तीन महत्वपूर्ण प्राथमिकताएं मानवीय मूल्यों को बढाना , आस्था एंव धार्मिक सौहार्द में संतुलन तथा तिब्बतियों के अधिकार के लिए लडना है। साठ लाख तिब्बतियों की आजादी उनका मकसद है। पिछले कई सालों से वे अपने नियमित कार्यां से रिटायर होकर पूरी तरह मानवीय मूल्यों की बढोतरी के लिए काम कर रहे है। अहिंसा भारत की सोच है और उन्होंने इसी आधार पर जीवन जीया है।
भारत पंथ निरपेक्ष ।
दलाई लामा ने कहा, भारत की परंपराएं सुदृढ है , जो इसे पंथ निरपेक्ष बनाए हुए है। मैंने भारत से बहुत कुछ सीखा है। तिब्बत में हम एक ही समुदाय के बीच रहे है, लेकिन भारत में हिंदू मुस्लिम , जैन सिख , पारसी , यहूदी आदि सामंजस्य व सौहार्द के साथ जीते है । भारत में गरीबी कलंक है, लेकिन सही बदलाव से इसे दूर किया जा सकता है । विकास के लिए सही अर्थां में गांव के विकास की जरुरत है।
मानवीय मूल्यों से दूर हुए नेता ।
बौद्ध धर्म गुरु ने कहा कि नेताओं मे मानवीय मूल्य बढाने की क्षमता नहीं है । व्यक्ति से परिवार , समाज देश तथा देश से विश्व में मानवीय मूल्यों की बढोतरी होगी । धोखा देना , घृणा , रिश्वत , पांखड पूर्ण जीवन जीना भी हिंसा है। अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए करुणा जरुरी है। भारत में बहुत सारे लोगों के बीच आपसी विश्वास का रिश्ता ही लोकतंत्र की सफलता है।
अमीर- गरीब का भेद मिटे ।
दलाई लामा ने कहा कि व्यक्ति के सोच में विश्वास और करुणा के आधार पर नैतिकता पनपती है। अमीर -गरीब का भेद मिटना चाहिए। बहुत अमीर व्यक्ति भी खुश नहीं रह सकता है। उसमें अविश्वास और शक उत्पन्न होने लगता है तथा अधिक धन -संपत्ति लडाई का कारण बन जाती है । शांति व दोस्ती नाते रिश्ते से मिलती है , न कि खून एक होने से । उन्होंने कहा कि साधुओं को जातिवाद , दहेज प्रथा आदि के खिलाफ बोलना चाहिए।
विज्ञान व अध्यात्म में रिश्ता ।
विज्ञान और अध्यात्म के बीच रिश्ता है । पिछले तीस वर्षों से शोघ कर रहे वैज्ञानिक भी भावना के आधार पर इसे मानते है। कॉस्मोलॉजी , बोयोलॉजी , क्वांटम फिजिक्स व मनौविज्ञान आदि के बीचे एक रिश्ता है । समाधि और ध्यान के रास्ते में छोटे अणु का ज्ञान आ सकता है। बर्फीली पहाडियों में साधना करने वाले साधु में कौनसी ऊर्जा होती है , यह विचारणीय बिंदु है।