तिब्बत जो आज मुद्दे सामना कर रहा

१९४९ में चीन द्वारा किए गए सैन्य आक्रमण से ऐतिहासिक रूप से स्वतंत्र देश तिब्बत को अपने अस्तित्व के संकट से जूझने को मजबूर होना पड़ा है। इसके तुरंत बाद कम्युनिस्ट विचारधारा और सांस्कृतिक क्रांति (१९६६-७६) जैसे कार्यक्रमों से उत्पन्न सार्वभौमिक स्वतंत्रता का नुकसान हुआ। हालांकि, अब भी यह मानना ​​गलत होगा कि सबसे बुरा वक्त बीत चुका है। इसकी आशंका अब भी है। आज की तारीख में भी तिब्बत की अद्वितीय राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के साथ चीनियों द्वारा खिलवाड़ किया जा रहा है और इन पहचान के साथ छेड़छाड़ से इन पर गंभीर खतरा बना हुआ है।

चीनी कब्जे और उत्पीड़न की नीति का परिणाम हुआ कि तिब्बत की राष्ट्रीय स्वतंत्रता, संस्कृति, धर्म, पर्यावरण और उसके लोगों के सार्वभौमिक मानवाधिकारों का पूरी तरह से विनाश हो गया है। समय-समय पर इस विनाशकारी प्रवृत्ति को चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानूनों को बिना किसी वजह के तोड़ने में भी देखा जा सकता है।

राष्ट्रीय स्वतंत्रता

चीनी शासन से पहले स्वतंत्र संप्रभु राज्य के रूप में तिब्बत का २००० से अधिक वर्षों का लिखित इतिहास है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र में कोई प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण दुनिया खड़ी देखती रही और चीन को इस स्वतंत्र देश पर कब्जा कर इसका विनाश करने दिया।

संस्कृति और धर्म

चीन द्वारा तिब्बत में धर्म के भीषण विनाश में ६००० से अधिक मठों और अनगिनत धार्मिक कलाकृतियों को नष्ट कर दिया गया। चीन आज भी तिब्बती धर्म और संस्कृति को कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व के लिए मुख्य खतरे के रूप में देखता है। १९९४ में तिब्बत पर चीन के तीसरे कार्य मंच और २००१ में चौथे कार्य मंच ने तिब्बती धर्म के अवशेष को मिटाने के लिए कई उपायों का आह्वान किया गया है।

तिब्बत के आध्यात्मिक नेताओं की निंदा

इन उपायों के तहत तिब्बतियों को परम पावन दलाई लामा और उनके द्वारा मान्यता प्राप्त पंचेन लामा की निंदा करने के लिए मजबूर किया जाता है। साथ ही उन्हें चीनी सरकार के प्रति अपनी निष्ठा की प्रतिज्ञा करनी होती है। ऐसा न करने पर उन्हें कारावास या अन्य प्रकार की सजा हो सकती है। परम पावन दलाई लामा की तस्वीरों को रखना आज तिब्बत में अवैध है।

मई २००५ के बाद से बीजिंग ने परम पावन दलाई लामा के खिलाफ ‘मौत के लिए लड़ाई’ संघर्ष की घोषणा करके उन पर हमला करने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है। कई लोग तिब्बती आध्यात्मिक नेता के खिलाफ अपमानजनक अभियान के इस नए दौर को सांस्कृतिक क्रांति के युग की वापसी के रूप में वर्णित करते हैं।

जुलाई २००७ में एक नया विनियमन पेश किया गया था, जिसके अनुसार सभी देहधारी लामाओं या तुलकुओं को राज्य की अनुमति मिलना जरूरी है। तिब्बती आध्यात्मिक शख्सियतों को अनुमति देने की शक्ति को अपने हाथ में रखकर बीजिंग को उम्मीद है कि इस विनियमन के कार्यान्वयन के साथ इन सरकारी लामाओं और तुलकुओं के माध्यम से वह तिब्बत की भूमि और लोगों पर शासन कर सकेगा।

जनसंख्या स्थानांतरण

हाल के वर्षों में चीन द्वारा तिब्बत में निरंतर जनसंख्या के स्थानांतरण ने तिब्बतियों को अपनी ही भूमि में अल्पसंख्यक बनने को अभिशप्त कर दिया है। आज तिब्बत में जहां तिब्बतियों की संख्या ६० लाख है, वहीं चीनी प्रवासियों की संख्या इनसे बहुत अधिक है, जिन्हें शिक्षा, नौकरियों और निजी उद्यमों में तरजीह दी जाती है। दूसरी ओर, तिब्बतियों को अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में माना जाता है।

आर्थिक और सामाजिक विकास की आड़ में बीजिंग चीनी आबादी के तिब्बत में प्रवास को प्रोत्साहित करता है और तिब्बतियों को आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में हाशिए पर रखता है।

गोर्मो और ल्हासा के बीच रेलवे लाइन, जिसे आधिकारिक तौर पर जुलाई २००६ में खोला गया था, ने तिब्बत में चीनी प्रवासियों के बड़ी संख्या में तिब्बत आगमन की इस नीति के दुष्चक्र को और बढ़ावा दिया है। इस प्रकार तिब्बतियों को जनसांख्यिकीय मामले में बहुमत में आने को अब लगभग असंभव बना दिया गया है जैसा कि भीतरी मंगोलिया और झिंझियांग के मामले में हुआ था। ऐसा अनुमान है कि इस रेलवे के माध्यम से लगभग ५००० से ६००० तक चीनी प्रतिदिन ल्हासा आते हैं। इनमें से २००० से ३००० फिर चीन में अपने घरों को लौट जाते हैं और बाकी तिब्बत में सदा के लिए बस जाते हैं। यदि यह प्रवृत्ति निरंतर जारी रही, तो  कई लोगों का मानना ​​​​है कि तिब्बत मुद्दे का बीजिंग की दृष्टि से ‘अंतिम समाधान’ जल्द ही हो जाएगा।

शिक्षा

तिब्बत पर चीनी कब्जे के कारण तिब्बती भाषा से चीनी भाषा कहीं आगे निकल गई है। सरकार सभी क्षेत्रों में तिब्बती भाषा को निरर्थक बनाकर तिब्बती संस्कृति का दमन कर रही है। तिब्बत की शिक्षा प्रणाली पूरी तरह से चीनी और उनकी कम्युनिस्ट विचारधारा द्वारा नियंत्रित और चीनी प्रवासियों की आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार की गई है। तिब्बती छात्र भी निषेधात्मक और भेदभावपूर्ण शुल्क और ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त सुविधाओं से पीड़ित हैं।

अपनी मातृभूमि में सार्थक शिक्षा के अभाव ने १०,००० से अधिक तिब्बती बच्चों और युवाओं को भारत भागने के लिए मजबूर कर दिया है, जहां निर्वासित तिब्बती समुदाय उन्हें तिब्बत में अकल्पनीय शैक्षिक अवसर प्रदान किया जाता है। धर्मशाला में तिब्बती स्वागत केंद्र के रिकॉर्ड से पता चलता है कि १९९१ से जून २००४ तक केंद्र ने तिब्बत से कुल ४३,६३४ नए आगंतुकों की मेजबानी की थी। इनमें से ५९.७५% बच्चे (१३ वर्ष से कम आयु) और युवा (१३ से २५ वर्ष की आयु के बीच के) पाए गए। अकेले २००६ में लगभग २४४५ नव-आगंतुक तिब्बतियों को केंद्र में दाखिला दिया गया था, जिनमें से अधिकांश १८ वर्ष से कम उम्र के किशोर और बच्चे थे। इतनी बड़ी संख्या में युवा तिब्बतियों का अपनी मातृभूमि से भागने का – और अक्सर संकल्प के साथ की गई हिमालय के पार की अनिश्चित और दुखदायी यात्रा- का एकमात्र उद्देश्य घर से दूर दूसरे देश में अच्छी धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्राप्त करना है।

चीनी राजनीतिक और धार्मिक विश्वासों के अनुरूप भिक्षुओं और भिक्षुणियों को जबरन ‘पुनः शिक्षित’ करने के लिए चीनी सरकार के ‘कार्य दल’ को तिब्बती मठों में भेजा जा रहा है। उनके तरीके सांस्कृतिक क्रांति के दौरान अपनाए गए तरीकों के समान हैं। १९९६ और १९९८ के बीच ‘स्ट्राइक हार्ड’ अभियान में ४९२ भिक्षुओं और भिक्षुणियों को गिरफ्तार किया गया और ९९९७ को उनके धार्मिक संस्थानों से निष्कासित कर दिया गया।

मई २००६ में झांग किंगली के ‘टीएआर’ में शीर्ष पर पहुंचने के कारण ‘देशभक्ति पुन: शिक्षा’ अभियान का दायरा मठों और भिक्षुणी विहारों तक में विस्तारित किया जा रहा था, जिनका प्रभाव तिब्बत की व्यापक आबादी पर है। इनमें तिब्बत के स्कूलों को भी शामिल किया गया है। इस अभियान का मुख्य जोर तिब्बती लोगों के धार्मिक आस्था और विश्वास को फिर से परम पावन दलाई लामा के विरोध में मोड़ देना और उनके इसकी प्रतिज्ञा करा लेना है।

सार्वभौमिक मानव अधिकार

१९९८ के अंत तक चीन जनवादी गणराज्य ने अंतरराष्ट्रीय अधिकारों के विधेयक सहित तीन अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन इन्हें अभी भी चीन और तिब्बत में लागू नहीं किया गया है। व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकारों के हनन का मुख्य निशाना तिब्बती लोगों और उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान बनती है और भविष्य में उनके अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।

एक महत्वपूर्ण मामला ३० सितंबर २००६ की नंगपा ला गोलीबारी की घटना है- जिसमें दो तिब्बतियों की जान गई और १४ बच्चों सहित करीब ३० तिब्बतियों की गिरफ्तारी हुई। यह घटना न केवल तिब्बत में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन की पराकाष्ठा को दर्शाती है, बल्कि चीनी सीमा पुलिस को इन अधिकारों का हनन करने की मिली छूट को भी दर्शाती है। इस त्रासदी के बाद ‘टीएआर’ में सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो (पीएसबी) को २००७ की पहली छमाही के दौरान अवैध पारगमन पर अंकुश लगाने का निर्देश दिया गया है। यह क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए विभाजन के खिलाफ उनके ‘स्ट्राइक हार्ड’ अभियान का एक हिस्सा है। नतीजतन, सीमा पर गश्त को तेज किया गया है और किसी भी तिब्बती को दमन से बचने के खिलाफ कड़े तरीके अपनाए गए हैं।

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन शिद्दत से मानता है कि आज तिब्बत में तिब्बतियों के साथ चीनी सरकार का व्यवहार उनके जीवन, स्वतंत्रता, सुरक्षा, अभिव्यक्ति, धर्म, संस्कृति और शिक्षा की स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा के विपरीत किसी भी तरह की राय व्यक्त करने पर गिरफ्तारी हो सकती है;

चीनी सरकार ने परम पावन दलाई लामा, तिब्बती राष्ट्रवाद और किसी भी विरोधी विचार के प्रति निष्ठा को खत्म करने के अपने प्रयास में धार्मिक संस्थानों पर व्यवस्थित रूप नियंत्रण कायम किया है;

तिब्बतियों का मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत में रखा जाना जारी है;

कैद किए गए लोगों को अक्सर कानूनी सहायता या वकील रखने से वंचित कर दिया जाता है और चीनी कानूनी कार्यवाही अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने में विफल रहती है;

यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के प्रस्तावों पर हस्ताक्षर करने के बावजूद चीनी जेलों और हिरासत केंद्रों में अभी भी अत्याचार जारी है;

जीवन निर्वाह की कठिनाइयों, अपर्याप्त सुविधाओं और भेदभावपूर्ण उपायों के कारण कई तिब्बती बच्चों को पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल और स्कूली शिक्षा तक नहीं मिल पाती है;

राजनीतिक कारणों से चीनी शासन के तहत कारावास की दर अन्य क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक है;

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चीनी दमन के मामले में बच्चों को भी बख्शा नहीं जाता है। 18 वर्ष से कम उम्र के अनेक तिब्बती राजनीतिक कैदी हैं और बाल भिक्षुओं और भिक्षुणियों को उनके धार्मिक संस्थानों से लगातार बर्खास्त किया जाता है।

लोगों को जबरन गायब कर दिया जाता है। इसमें एक व्यक्ति को हिरासत में ले लिया जाता है और उसकी नजरबंदी के ब्योरे का खुलासा ही नहीं किया जाता है;

परम पावन दलाई लामा द्वारा ११वें पंचेन लामा के रूप में मान्यता प्राप्त गेधुन चोएक्यी न्यिमा १९९५ से लापता हैं;

तिब्बत में ७० प्रतिशत से अधिक तिब्बती अब गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं;

स्वतंत्रता, आजीविका और शिक्षा की तलाश में हजारों तिब्बतियों का अपनी मातृभूमि से निर्वासित समुदाय में पलायन जारी है। भारत सरकार इन निर्वासितों को जिस तरह की सुविधाएं देती है, उनके आसपास की सुविधाओं के बारे में भी चीनी सरकार सोच भी नहीं सकती है।

मानव अधिकारों के नियमों का पालन करने में चीनी सरकार को अग्रसर करने के लिए निरंतर अंतरराष्ट्रीय दबाव आवश्यक है।

पर्यावरण

एशिया के केंद्र में स्थित होने के कारण तिब्बत दुनिया के सबसे अधिक पर्यावरणीय, रणनीतिक और संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। तिब्बती प्रकृति के साथ सद्भाव में रहते हैं। अपने बौद्ध विश्वास के निर्देशों के अनुसार वे पृथ्वी के सभी चर-अचर तत्वों के साथ वे अन्योन्याश्रियता में रहते हैं। हालांकि, तिब्बत पर आक्रमण के बाद भौतिकवादी चीनी कम्युनिस्ट विचारधारा ने तिब्बती लोगों के इस प्रकृति-अनुकूल रवैये को कुचल दिया।

तिब्बत में पिछले 50 वर्षों में व्यापक पर्यावरणीय विनाश देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप वनों की कटाई, मिट्टी का क्षरण, वन्यजीवों का विलुप्त होना, अतिचारण, अनियंत्रित खनन और परमाणु अपशिष्ट की डंपिंग बड़े पैमाने पर हुई है। आज की तारीख में चीनी तिब्बत से विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों को निकालना जारी रखे हुए हैं। इस खनन में अक्सर विदेशी समर्थन होता है और बिना किसी पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के होता है। इसके परिणामस्वरूप तिब्बत पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है, जिसके प्रभाव उसकी सीमाओं से बहुत दूर तक महसूस किए जाते हैं।

वनों की कटाई

तिब्बत दुनिया के कुछ बेहतरीन गुणवत्ता वाले वन भंडार समेटे हुए है। यहां के बहुत सारे वृक्ष सैंकड़ों वर्षों तक विकसित होने के बाद ५ फीट या उससे अधिक तक गोलाई में होने के साथ ९० फीट तक लंबे खड़े हैं। तिब्बत के लिए चीन की ‘विकास’ और ‘आधुनिकीकरण’ की योजना से इन जंगलों का अंधाधुंध विनाश हो रहा है। १९५९ में तिब्बत में २ करोड़ ५२ लाख हेक्टेयर पर जंगल थे, लेकिन १९८५ में चीनियों ने इसे काट कर १ करोड़ ३५ लाख हेक्टेयर कर दिया था। तिब्बत का 46 प्रतिशत से अधिक जंगल नष्ट हो चुका है और कुछ क्षेत्रों में विनाश का यह आंकड़ा 80 प्रतिशत तक है। १९५९ और १९८५ के बीच, चीनियों ने तिब्बत से ५४ अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य की लकड़ी काट ली। वनों की कटाई और उसके मुकाबले अपर्याप्त वनीकरण वन्यजीवों पर गहरा प्रभाव डालते हैं और चीन सहित पड़ोसी देशों में मिट्टी के कटाव और बाढ़ की आशंका उत्पन्न करते हैं।

मिट्टी का कटाव और बाढ़

तिब्बत में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, खनन और गहन कृषि पैटर्न के कारण मिट्टी का कटाव बढ़ गया है और एशिया की कुछ सबसे महत्वपूर्ण नदियों में गाद जम गई है। एशिया ने हाल के वर्षों में अनुभव बताते हैं कि मेकांग, यांग्त्से, सिंधु, साल्विन और येलो नदियों की गाद बड़ी बाढ़ का कारण बन रही हैं। इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ती है और संभावित कृषि भूमि का क्षेत्र कम होता जाता है। इस प्रकार  तिब्बत से नीचे की ओर रहने वाली दुनिया की आधी आबादी प्रभावित होती है।

वैश्विक जलवायु प्रभाव

वैज्ञानिकों ने तिब्बती पठार पर प्राकृतिक वनस्पतियों और मानसून की स्थिरता के बीच एक संबंध देखा है, जो दक्षिण एशिया की रोजी- रोटी के लिए अपरिहार्य है। वैज्ञानिकों ने यह भी दिखाया है कि तिब्बती पठार का पर्यावरण जेट-धाराओं को प्रभावित करता है जो प्रशांत टाइफून और अलनीनो घटना से संबंधित हैं, जिसका दुनिया भर में प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव पड़ा है।

विलुप्त होते वन्यजीव

१९०१ में परम पावन १३वें दलाई लामा ने तिब्बत में जंगली जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगाने का फरमान जारी किया। दुर्भाग्य से, चीनियों ने ऐसे प्रतिबंध लागू नहीं किए हैं और इसके बजाय लुप्तप्राय प्रजातियों के ‘ट्रॉफी-शिकार’ को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया गया है। तिब्बती पठार पर कम से कम ८१ लुप्तप्राय प्रजातियां हैं जिनमें से ३९ स्तनधारी, ३७ पक्षी, चार उभयचर और एक सरीसृप हैं।

अनियंत्रित खनन

औद्योगिक विकास के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराने के साधन के रूप में चीनी सरकार द्वारा बोरेक्स, क्रोमियम, तांबा, सोना और यूरेनियम का खनन जोर-शोर से किया जा रहा है। चीन के 15 प्रमुख खनिजों में से सात के एक दशक के भीतर समाप्त होने की आशंका है और परिणामस्वरूप तिब्बत में खनिजों का खनन तेजी से और अनियंत्रित तरीके से बढ़ रहा है।

ल्हासा के लिए नई रेलवे लाइन से तिब्बत के विशाल प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए आसान साधन उपलब्ध होने की आशंका है। भूमि और संसाधन मंत्रालय के तहत खनिज अन्वेषण के लिए जिम्मेदार एजेंसी- चाइना जियोलॉजिकल सर्वे (सीजीएस)- द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि उनके भू-वैज्ञानिकों ने इस रेलवे लाइन के साथ तांबा, लोहा, सीसा और जस्ता अयस्क खानों के 600 नए स्थलों की खोज की है। सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि यदि इनका दोहन किया जाता है, तो यह खनिज संसाधनों की चीन की मांगों को पूरा कर सकता है। सीजीएस के भू-वैज्ञानिक जांच विभाग के निदेशक ज़ुआंग युक्सुन ने संकेत दिया है कि ‘नई आपूर्ति (इन संसाधनों की) दो से तीन वर्षों में बाजार में आ सकती है, क्योंकि नए खोजे गए खनिज भंडार के स्थान किंघई-तिब्बत रेलवे के करीब हैं।’

खनन गतिविधियों में वृद्धि से वनस्पति क्षेत्र में और कमी आएगी और इससे गंभीर भूस्खलन, बड़े पैमाने पर मिट्टी के कटाव, वन्यजीवों के आवास की हानि और नदियों तथा जलधाराओं में प्रदूषण का खतरा बढ़ जाएगा।

परमाणु कचरों का ढेर

कभी भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण बफर देश रहे तिब्बत को कम से कम ५,००,००० चीनी सैनिकों और चीन के एक चौथाई परमाणु मिसाइल शस्त्रागार का भंडार बना दिया गया है। चीन तिब्बती पठार पर अपना पहला परमाणु हथियार १९७१ में लाया। आज, ऐसा प्रतीत होता है कि चीनी अपने और विदेशी परमाणु कचरे के लिए तिब्बत को डंपिंग ग्राउंड के रूप में उपयोग कर रहे हैं। १९८४ में चीन परमाणु उद्योग सहयोग ने पश्चिमी देशों को १५०० अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम पर परमाणु कचरा निपटान सुविधा प्रदान करने की पेशकश की थी।

चीन के परमाणु स्थलों के करीब रहने वाले तिब्बतियों और पशुओं की रहस्यमय मौतों की सूचना मिली है, साथ ही कैंसर और जन्म दोषों में भी वृद्धि हुई है। इसके अलावा, जलमार्ग संदूषण की घटनाएं हुई हैं। यहां स्थानीय चीनी आबादी को आधिकारिक तौर पर पानी का उपयोग न करने की चेतावनी दी गई थी लेकिन स्थानीय तिब्बतियों को इस बारे में कुछ नहीं बताया गया। चीन तिब्बत के पठार को उसकी नाजुक पारिस्थितिकी या भूमि के परंपरागत निवासियों की परवाह किए बिना इसे नियंत्रित करना जारी रखे हुए है।

* यहाँ तिब्बत शब्द का अर्थ है संपूर्ण तिब्बत (उ-त्सांग, खाम और अमदो) जिसे चोलका-सम के नाम से जाना जाता है। इसमें तथाकथित तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के वर्तमान चीनी प्रशासनिक क्षेत्र, किंघई प्रांत, दो तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर और सिचुआन प्रांत में एक तिब्बती स्वायत्त काउंटी, गांसु प्रांत में एक तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर और एक तिब्बती स्वायत्त काउंटी और युन्नान प्रांत में एक तिब्बती स्वायत्तशासी प्रिफेक्चर शामिल हैं।