14 जनवरी 2011
वार्ता
वाराणसी। तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने आज भिक्षुओं को राजनीति से दूर रहने की सलाह दी।
केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय में यहां हिमालयी इलाकों से आये भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुए दलाई लामा ने कहा कि उनका काम ज्ञान अर्जित कर उसे फैलाने का है, राजनीति करना नहीं।
नेपाल, भूटान, लेह, लद्दाख व हिमाचल प्रदेश से आये करीब छह हजार श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा कि 1959 में जब तिब्बत गुलाम हुआ तो भिक्षुओं ने ही तिब्बत की संस्कृति को बचा के रखा।
देश-विदेश में स्थापित मठों में भिक्षुओं ने अपने बच्चों को बड़ी संख्या में भेजकर परम्पराओं को जीवित रखा।
श्री दलाई लामा ने कालचक्र मैदान में आयोजित आध्यात्मिक प्रवचन में कहा कि मृत्यु सबसे बड़ी विश्वासघाती है। वह नहीं देखती कि कौन पुण्यात्मा है और कौन पापी। मृत्यु के समय हमारे पुण्य कर्म ही हमारी वेदना को कम करते हैं।
महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि धर्म में उनकी गहरी आस्था थी। धर्म के प्रति आस्थावान लोग ही परोपकार करते हुए अन्य लोगों की तुलना में अधिक आत्मशांति की अनुभूति करते हैं।
दलाई लामा ने मार्क्सवाद के आर्थिक सिद्धान्त की भी प्रशंसा की।
उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद समतामूलक दृष्टि से ग्रहण करने योग्य है।
भिक्षुसंघ मार्क्सवाद के आर्थिक सिद्धान्त और मानवतावादी दृष्टिकोण को जानने का प्रयास करें।