(17 वें ग्यालवांग करमापा ओग्येन त्रिनले दोरजी का बयान यहां दिया जा रहा है। यह बयान करमापा स्वागत समिति , सिक्किम के प्रवक्त्ता श्री कर्मा तोपदेन द्वारा 30 जनवरी ,2011 को धर्मशाला के ग्यूतो मठ में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में पढा गया । करमापा के चीनी जासूस होने और अवैध सौदों से पैसा बनाने जैसी भारतीय मीडिया में छपी कई निराधर आरोपों और अटकलों के बाद यह बयान आया है)
तोपदेन ने कहा , उन्होंने ( ग्यालवांग करमापा ) ने मुझसे कहा है कि भारत आने के उनके वजहों के बारे में आपको बताउं । पहली वजह यह है कि चीन सरकार ने उन पर यह दबाव बनाना शुरु कर दिया था कि दलाई लामा का विरोध करें और चीन द्वारा चुने गए पंचेन लामा का समर्थन करें । करमापा ऐसी स्थिति में नहीं आना चाहते थे कि दलाई लामा का विरोध करना पडे, इसलिए उन्होंने तिब्बत छोडने का निर्णय लिया ।
उनके भारत आने की दूसरी वजह यह थी कि वे अपनी आध्यात्मिक शिक्षा पूरी करना चाहते थे । अपनी आध्यात्मिक शिक्षा पूरी करने के लिए उन्हें कर्मा काग्यू परंपरा के अनुसार अपने वंश के गुरुओं से मौखिक शिक्षा ग्रहण करनी थी । इन गुरुओं ने उनके पूर्ववर्ती 16 वें करमापा से सीधे यह शिक्षा हासिल की थी । ये सभी गुरु भारत में है। ये गुरु उन्हें शिक्षा देने के लिए तिब्बत नहीं जा सकते थे, इसलिए करमापा ने भारत आने का निर्णय लिया ताकि वह शिक्षा ग्रहण कर सकें और अपनी आध्यात्मिक शिक्षा पूरी कर सकें ।
तीसरी वजह यह थी कि वह परम पावन दलाई लामा को देखना चाहते थे और उनका आशीर्वाद लेना चाहते थे।
चौथी वजह यह थी कि उन्होंने अपने पूर्ववर्ती प्रख्यात 16 वें करमापा के भारत और खासकर सिक्किम में किए गए कार्ये के बारें में काफी कुछ सुन रखा था, जहां 16 वें करमापा ने रुमटेक मठ को अपना केद्र बनाया था। उन्होंने इन सबके बारे में काफी कुछ रखा था, इसलिए भारत आकर उन जगहों को देखना चाहते थे। यही नहीं, उन्होंने इस बारे में काफी कुछ सुना था कि उनके पूर्ववर्ती करमापा ने दूसरे देशों की यात्रा कर धर्म के वचनों को फैलाया था और दुनिया भर में विभिन्न कर्मा काग्यू केंद्रों की स्थापना की थी।
इसलिए 17 वें करमापा भी 16 वें करमापा के रास्ते पर चलना चाहते थे । वे यह जानते और मानते थे कि भारत एक स्वंतत्र देश है, जबकि तिब्बत में दमन का माहौल है और धार्मिक आजादी नहीं है, इसलिए वे भारत आ गए ताकि आजादी के साथ अपने गुरुओं से आध्यात्मिक ज्ञान हासिल कर सकें और भारत एंव दुनिया भर में स्वंतत्रता के साथ धर्म का पालन एंव प्रवचन कर सकें । उनके भारत आने की मुख्य रुप से यही वजहें थी ।
पाचवीं वजह यह है कि जब वह भारत आए तो उन्हें शरण दी गई । वह इस बात के लिए कृतज्ञ है कि उन्हें भारत सरकार और यहां की जनता द्वारा शरण दिया गया और भारत में इतने सालों तक रहने के दौरान खुद को मिले समूचे शिष्टाचार और आतिथ्य के प्रति भी वह कृतज्ञ है । वह आगे भी इस बात के लिए अत्यंत कृतज्ञ रहेंगे और भारत की जनता और यहां की सरकार का हमेशा आभारी रहेंगे । भारत में अपने पूरे पडाव के दौरान वह भारत के प्रति अपने दायित्वों के बारे में सचेत रहे है और भारत की जनता के कल्याण के लिए प्रार्थना करते रहे है और आगे भी ऐसा करते रहेंगे।
उन्होंने भरोसा दिया है कि वह भारत में रहने के दौरान कोई भी ऐसा कार्य नहीं करेंगे जो किसी भी तरह से भारत के हितों को कम करे या उसे नुकसान पुंहचाए । भारत उनका दूसरी देश है और वह यहां खुशी से रह है। उन्हें यह लगता है कि भारत एक शक्तिशाली और समृद्ध देश बनने की ओर अग्रसर है । किसी भी तरह से उनका इरादा भारत के हितों के खिलाफ कुछ करने का बिल्कुल नहीं है । ये वे बाते है जो उन्होंने मुझे आप तक पहुंचने को कहा है।
भारत में शरण लेने के बारे में ग्यालवांग करमापा का बयान
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