अहमदाबाद। गुजरात साहित्य अकादमी और डॉ. अमित ज्योतिकर फाउंडेशन ने १५ दिसंबर २०२३ को संयुक्त रूप से प्रसिद्ध दलित इतिहासकार और तिब्बत मुक्ति साधना के प्रबल समर्थक डॉ. पी.जी. ज्योतिकर की तीसरी पुण्यतिथि पर ‘प्रथम अंतरराष्ट्रीय बौद्ध साहित्य और सांस्कृतिक संगोष्ठी’ और पुस्तक विमोचन का आयोजन किया। सेमिनार की शुरुआत बौद्ध प्रतिनिधियों द्वारा प्रार्थना और स्वर्गीय डॉ. पी.जी. ज्योतिकर के योगदान के बारे में एक लघु वीडियो की प्रस्तुति के साथ हुई। इसके बाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कुलदीप अग्निहोत्री, डॉ. हेमंत भट्ट, भिक्षु डॉ. डी. रेवाथा, भिक्षु गेशे तेनज़िन दामचो, डॉ. विजय सुरवड़े और डीजीपी अनिल प्रथम की उपस्थिति में एक पुस्तक का विमोचन किया गया।
डॉ. अमित ज्योतिकर ने अपनी शुरुआती टिप्पणी में डॉ. बी.आर. आंबेडकर के बारे में लिखी गई इस पुस्तक का संक्षिप्त परिचय दिया और सेमिनार में भाग लेने वाले गुजरात के सभी क्षेत्रों के सदस्यों और तिब्बती स्वेटर विक्रेताओं के प्रति आभार व्यक्त किया।
इसके अतिरिक्त, गेशे तेनज़िन दामचो ने परम पावन १४वें दलाई लामा का एक सार्वभौमिक संदेश दिया, जिसमें २१वीं सदी का बौद्ध साधक बनने और केवल मंत्र जप के बजाय तर्क पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता बताई गई है। उन्होंने आगे ज्ञान की मदद से विश्वास विकसित करने की आवश्यकता पर बात की और सभा को परम पावन दलाई लामा की चार महान प्रतिबद्धताओं के बारे में बताया, जिनमें से तीन सभी के लिए निहित हैं।
डॉ. पी.जी. ज्योतिकर का १५ दिसंबर २०२० को निधन हो गया था। गुजरात में तिब्बत के समर्थक और तिब्बत मुक्ति साधना के संस्थापक थे और भारत- तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। वह एक प्रसिद्ध दलित इतिहासकार, गुजरात में आंबेडकरवादी आंदोलनों के मर्मज्ञ थे। वह आंबेडकरवादी बौद्ध समुदाय में पीजी के नाम से लोकप्रिय थे और बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया के ट्रस्टी अध्यक्ष भी रहे।