वाराणसी । भारत गुरु है और तिब्बत चेला । सिर्फ चेला नही , विश्वसनीय चेला है । यह बातें तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने कही । वह सोमवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविधालय मे 21 वी शताब्दी में शिक्षा विषयक व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि अहिंसा का मतलब दुबककर बैठना नहीं बल्कि करुणा और धार्मिक सौहार्द के लिए प्रभावी एक्शन है । यह सच्चाई का सामना करता है, हर समस्या का हल बातचीत से निकालता है। दुनिया को इसी की जरुरत है। खुद को अहिंसा , धार्मिक सौहार्द और करुणा के लिए भारत का दूत कहा।
उन्होंने कहा कि 20 वीं सदी खूनी थी। उसमें 200 मिलियन लोग मारे गए। मौजूदा 21 वीं सदी संवाद की है। उन्होंने कहा कि दुनिया के 6.8 बिलियन लोग धार्मिक आस्था नहीं रखते । आस्था रखने वालों में भी आधिकांश दिखावा करते है । ऐसे में करुणा को वास्तविक रुप में अपनाएं । उन्होंने कहा कि जो बचपन में मां का समुचुत स्नेह पाता है , वह शांत होता है जबकि मां के समुचित स्नेह से वंचित बालक में अकुलाहट और अशांत चित्त होता है । अतएव हर अशांति को दूर करने को करुणा और सौहार्द से काम लेना सबसे सही है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली में सिर्फ ब्रेन विकंसित होता है, दिल के रिश्ते वाली करुणा नहीं जगती । पशिचम में चर्च आदि में अतीत में ऐसी व्यवस्था थी लेकिन अब शिक्षा में यह न होने से पारिवारिक मुल्यों का पतन हुआ है । करुणा जगाने वाली शिक्षा प्रणाली का भारत अगुवा रहा है।
भारत गुरु , तिब्बत विश्वसनीय चेला।
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