दैनिक ट्रिब्यून २८ अप्रैल २०१३
चंडीगढ़ 27 अप्रैल। भारत की सीमाओं में चीनी घुसपैठ को देख कर यह कहा जा सकता है कि इस समय तिब्बत की आज़ादी जितना तिब्बती नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण हैं उससे अधिक भारत के लिए है।
यह कहना है विजय क्रांति का जिनकी इन दिनों भारत में रह रहे तिब्बती शरणार्थियों व बौदध गुरू दलार्इलामा के जीवन पर फोटो प्रदर्शनी लगी है। विजय क्रांति गत 40 वर्षों से इस विषय पर काम कर रहे हैं। वह मानते हैं कि तिब्बत को लेकर भारत सरकार की विदेश नीति में खामियां रही। जहां एक ओर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चीन की वामपंथी सरकारों को दिखाये सब्ज़बागों में खोकर हकीकत जान नहीं पाये वहीं भाजपा के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तो तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग बताकर सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूल की। उनका कहना था कि संभवत: वर्ष 1962 का चीन युदध हारने के बाद भारत सरकार आत्मग्लानि के बोध से उभर नहीं पार्इ व आज तक चीन के प्रति कोर्इ ठोस विदेश नीति नहीं बना पार्इ।
विजय क्रांति ने चीन द्वारा हमारी सीमाओं से की जा रही घुसपैठ के संबंध में कहा कि जब तक तिब्बत आजाद था तब तक लगभग 4000 किलोमीटर की सीमा भारत-तिब्बत सीमा कही जाती थी व हज़ारों वर्षों तक यह सीमा सुरक्षित थी। वर्ष 1951 में चीन के तिब्बत पर काबिज होने के बाद से यह सीमा भारत-चीन सीमा बन गर्इ।
तिब्बत के मार्ग से चीन पाकिस्तान, नेपाल, म्यंमार में प्रवेश कर भारत को चारों ओर से घेर रहा है। म्यंमार के मार्ग से वह हिन्दमहासागर में पैर जमा रहा है जहां उसने नौसैनिक चौकियों तक स्थापित कर ली हैं। इतना ही नहीं भारत की सीमा में प्रवेश करने की घटनायें भी अब रोज़ हो रही हैं। नेपाल के माध्यम से अरब की खाड़ी तक वह रेल लाइन ले आया है। भारत के उत्तर-पूर्व में सकि्रय आतंकवादी संगठनों को भी तिब्बत में ही चीन प्रशिक्षण दे रहा है।
उनका कहना था कि इन परिस्थितियों के चलते तिब्बत की आज़ादी तिब्बत के लोगों से अधिक भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भारत की सीमायें चीन से नहीं लगेंगी व चीन की भारत की सीमाओं में घुसपैठ भी बंद हो जायेगी।
उनका कहना था कि तिब्बती शरणार्थियों पर वह पिछले 40 वर्षों से काम कर रहे हैं। इन दिनो पंजाब विश्वविधालय में चल रही फोटो प्रदर्शनी में उनकी 122 फोटो लगी हैं। इन्हें तीन भागों में विभाजित किया गया है। एक सेक्शन तिब्बत की संस्कृति को, एक दलार्इ लामा जी को तथा एक भारत में तिब्बत के शरणार्थियों के पुर्नवास को समर्पित है।
उनका कहना था कि वह अगले दो वर्षों में लगभग दो दर्जन देशों में यह प्रदर्शनी लगाने जा रहे हैं। इसकी शुरूआत उन्होंने चंडीगढ़ से की।