गत 6 जुलाई,2021 को तिब्बतियों और तिब्बत समर्थकों द्वारा परमपावन दलाई लामा के जन्म दिन के अवसर पर अनेक कार्यक्रम विभिन्न देशों में आयोजित किये गये। बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा चूँकि तिब्बती हैं, इसलिये तिब्बत पर चर्चा स्वाभाविक है। इसका अन्य कारण है दलाई लामा का अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व और कृतित्व। इसी व्यक्तित्व और कृतित्व के परिणामस्वरूप तिब्बत का सवाल एक अंतरराष्ट्रीय सवाल बन चुका है।
दलाई लामा के जन्म दिन पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शुभकामना संदेश से विस्तारवादी चीन के राष्ट्रपति शी जिंपिंग की बौखलाहट आश्चर्यजनक नहीं है। साम्यवादी शी जिंपिंग के लिये दलाई लामा की ‘‘चार प्रतिबद्धतायें‘‘ और ‘‘ सी लर्निंग‘‘ महत्वहीन हैं। चीन ने दुष्प्रचारित किया है कि तिब्बत हमेशा से चीन का भूभाग था। उसने तिब्बत में दलाई लामा की तस्वीर पर रोक लगा रखी है। मोबाईल में ऐसी तस्वीर पर रोक तिब्बत का चीनीकरण किया जा रहा है। प्रसन्नता की बात है कि 1959 से अब तक तिब्बतियों की दलाईलामा के प्रति श्रद्धा एवं निष्ठा लगातार बढ़ती जा रही है। चीन अपनी साजिश में विफल रहा है।
साम्राज्यवादी चीन द्वारा स्वतंत्र देश तिब्बत पर अवैध नियंत्रण किये जाने के बाद दलाईलामा ने शरणस्थली के रूप में भारत को चुना। वे इसे गुरुभूमि कहते हैं। भारत को अपना दूसरा घर कहते हैं। तत्कालीन भारत सरकार ने चीन का विरोध नहीं किया था। भारत के अनेक राजनेताओं की चेतावनी और परामर्श की उपेक्षा कर ‘‘पंचशील‘‘ एवं ‘‘हिन्दी चीनी भाई भाई‘‘ के नारे लग रहे थे। शांति के प्रतीक सफेद कबूतर उड़ाये जा रहे थे। उस समय भारतीय नेतृत्व तिब्बत के पक्ष में खड़ा होता तो चीन को पीछे हटना पड़ता। चीन की सीमा चीन की दीवार है। वह तिब्बत पर अवैध कब्जा नहीं कर पाता। तब भारत और तिब्बत के पारंपरिक संबंधों की अनदेखी की गई तथा तिब्बत को चीन का भूभाग मान लिया गया। ऐसी स्थिति में भी तिब्बत के तत्कालीन राजप्रमुख दलाई लामा ने भारत में शरण ली। तत्कालीन भारत सरकार ने चीनी विरोध केे बावजूद तिब्बतियों को शरण देकर सराहनीय कार्य किया था।
भारत में रहते हुए दलाई लामा की चार प्रतिबद्धतायें हैं। शांति, अहिंसा, करुणा, मैत्री आदि मानवीय मूल्यों को वे अधार्मिक एवं धर्मविरोधी लोगों के लिये भी जरूरी मानते हैं। ये मानवीय मूल्य ही हैं जिनके सहारे सभी समस्याओं का हल निकलता है। फिर मजहब, जिसे पंथ, संप्रदाय और रिलिजन कहा जाता है, के नाम पर भी संधर्ष नहीं होंगे। दलाई लामा कहते हैं कि व्यक्ति अपने रिलिजन के अनुसार पूजा-पाठ करे और अन्य सभी रिलिजन का सम्मान करे। संसार में अनेक रिलिजन हैं। हमें सबका सम्मान करना है। यही सेकुलरिज्म अर्थात् पंथनिरपेक्षता है। ‘‘सर्वपंथसमादरभाव‘‘ हमारे स्वभाव में होना चाहिये।
मनवीय मूल्यों तथा पंथनिरपेक्षता के समान ही दलाई लामा की प्रतिबद्धता तिब्बती भाषा संस्कृति के प्रति है। उनके अनुसार तिब्बती संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण तथा प्रकृति के प्रति सहयोगपूर्ण सामंजस्य का आदर्श निहित है। वे प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लगे हैं। उनके अनुसार भारतीय संस्कृति ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘‘ और ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः‘‘ का संदेश देती है। अपनी इन्हीं चार प्रतिबद्धताओं के कारण दलाई लामा संपूर्ण विश्व में श्रद्धा एवं सम्मान के पात्र हैं। अनेक देशों और संस्थाओं द्वारा उन्हें अनगिनत सम्मान, पुरस्कार और उपाधियों से अंलकृत किया गया है। इनमें नोबल शांति पुरस्कार भी शामिल है।
दलाई लामा शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक (Social), भावनात्मक (Emotional), तथा नैतिक(Ethical) अध्ययन(Learning) को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। इसे ही सी लर्निंग (SEE Learning) कहा जाता है। विश्व के अनेक देश पाठ्यक्रमों में ‘‘सी लर्निंग‘‘ को शामिल कर रहे हैं। इससे विद्यार्थियों में मानवीय मूल्य मजबूत होंगे, उनकी तार्किक क्षमता बढे़गी तथा वे पंथनिरपेक्ष भी होंगे।
उपनिवेशवादी चीन अपने सभी पड़ोसी देशों के भूभाग में अवैध घुसपैठ की नीति पर चल रहा है। अब उसका अगला शिकार अफगानिस्तान होने वाला है। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की पूर्ण वापसी की घोषणा कर दी है। चीन इसी से उत्साहित होकर पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान में घुसपैठ की तैयारी में जुटा है। अफगानिस्तान में तालिबानियों ने कुछ वर्ष पूर्व भगवान् बुद्ध की बामियान स्थित विशाल बुद्ध पूर्णिमा को गोले-बारूद से उड़ा दिया था। चीन अपनी रणनीतिक आवश्यकतानुसार तालिबानियों का भी समर्थन कर सकता है। ऐसा करके वह भारत के मित्र देश अफगानिस्तान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ उसी तरह करेगा जिस तरह वह पाकिस्तान का करता है। चीन की साजिश प्रांरभ से रही है कि भारत को अपमानित और कमजोर किया जाये।
निर्वासन में रह रही निर्वाचित तिब्बत सरकार का स्पष्ट मत है कि तिब्बत समस्या का समाधान विश्व शांति, विशेषकर भारत के हित में है। भारत सरकार को चाहिये कि वह भारत-चीन संबंधों में तिब्बत के प्रश्न को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करे। इतिहास गवाह है कि भारत एवं चीन के संबंध तब मजबूत और विश्वसनीय थे जब दोनों के बीच स्वतंत्र तिब्बत स्थित था। तब भारत की सीमा तिब्बत से मिलती थी। तिब्बत पर चीन के अवैध नियंत्रण के बाद ‘‘ भारत-तिब्बत सीमा‘‘ का स्थान ‘‘भारत-चीन सीमा‘‘ ने ले लिया। तभी से भारतीय शांति, सुरक्षा, समृद्धि और स्वाभिमान पर गंभीर संकट है।