बोधगया, बिहार, भारत। परम पावन दलाई लामा ने २० दिसंबर, २०२३ की सुबह गैंडेन पेलग्येलिंग मठ से बोधगया के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर तक छोटी दूरी तय की, जहां उन्हें पहले अंतरराष्ट्रीय संघ फोरम (आईएसएफ) के उद्घाटन सत्र में भाग लेना था। आयोजन समिति के सदस्यों ने दरवाजे पर उनका स्वागत किया। अंदर जाने से पहले, उन्होंने अपने आगमन के जश्न में लॉन में नृत्य कर रहे अरुणाचल प्रदेश के मोनपाओं के एक समूह के नृत्य का आनंद लिया।
एक बार जब परम पावन ने गैंडेन त्रि रिनपोचे और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडू के बीच मंच पर अपना स्थान ग्रहण किया तो संचालक वेन महायानो औन ने बुद्ध, धर्म और संघ को श्रद्धांजलि अर्पित की, परम पावन को प्रणाम किया और इस सबसे पवित्र स्थान पर सभी बौद्ध परंपराओं के प्रतिनिधियों का अभिनंदन किया। उन्होंने घोषणा की कि फोरम का उद्देश्य २१वीं सदी में बौद्ध धर्म की भूमिका पर एक संवाद आयोजित करना और बौद्ध परंपराओं के बीच समझ और सहयोग बनाने के तरीकों पर चर्चा करना है। उन्होंने घोषणा की कि तीन दिनों तक चर्चा होगी, उसके बाद चौथे दिन महाबोधि मंदिर के आसपास विश्व में शांति के लिए प्रार्थना की जाएगी। सिलिंग टोंगखोर रिनपोचे ने तिब्बती भाषा में लिखे गए इस परिचय का अंग्रेजी में अनुवाद किया।
आरंभ में थेरवादी भिक्षुओं के एक समूह ने पाली में ‘कारनिया मेट्टा सुट्टा (प्रेम-कृपा पर बुद्ध के वचन)’ का पाठ किया। इसके बाद वाराणसी से संस्कृत विश्वविद्यालय के भिक्षुओं का एक समूह आया, जिन्होंने संस्कृत में मंगल सूत्र- शुभता का सूत्र- का जाप किया।
मॉडरेटर ने परम पावन और अन्य नेताओं से ज्ञानदीप जलाने और कार्यवाही शुरू करने के लिए सामने का बटन दबाने का अनुरोध किया। परम पावन ने जैसे ही बदन दबाया, चमकता हुआ बहुरंगी बिजली का लैंप उनके सामने दमक उठा और इसकी प्रतिछवि पीछे लगी बड़ी स्क्रीन पर देदीप्यमान हो उठा।
अंतरराष्ट्रीय संघ मंच की सचिव सुश्री वी नी एनजी ने आईएसएफ की इस पहली बैठक में परम पावन दलाई लामा, अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने दोहराया कि इसका उद्देश्य बौद्ध पाली और संस्कृत परंपराओं के बीच सहयोग स्थापित करना और २१वीं सदी में बौद्ध होने के मायने पर चर्चा करना है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में योगदान देगा।
अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के महानिदेशक अभिजीत हलदर ने कहा कि इतनी सम्मानित सभा के सामने बोलना उनके लिए सम्मान की बात है। उन्होंने भविष्यवाणी की कि इस सम्मेलन के संदेश का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मानवता ने हाल ही में बार-बार बाढ़, सूखे और भूकंप की घटनाओं को देखा है। महासागर बढ़ रहे हैं, जबकि पहाड़ों में बर्फबारी कम हो रही है। उन्होंने कहा, हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि हमने ऐसा क्या किया है कि प्रकृति हमसे इतनी नाराज हो गई है। यह हमें अपने आप से यह पूछने के लिए मजबूर करता है कि हमसे कहां गलती हुई है और हमें आगे क्या करना चाहिए।
उन्होंने १९९२ में रियो दि जनेरियो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में परम पावन द्वारा कही गई बात को उद्धृत किया :
‘मेरा मानना है कि हमारे समय की चुनौती का सामना करने के लिए मनुष्य को अपने आप में वैश्विक जिम्मेदारी निभाने की महती भावना विकसित करनी होगी। हममें से प्रत्येक को न केवल अपने लिए, परिवार या राष्ट्र के लिए, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के हित में काम करना सीखना चाहिए। वैश्विक जिम्मेदारी मानव अस्तित्व के लिए वास्तविक मूल बात है। यह जिम्मेदारी विकसित होने से मनुष्य में विश्व शांति, प्राकृतिक संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग और भावी पीढ़ियों की चिंता की समझ आती है और यही चिंता पर्यावरण की उचित देखभाल का सबसे अच्छा आधार बनती है।
हलदर ने कहा कि दुनिया के कई हिस्सों में छिड़े युद्ध के माहौल में धर्म का मुख्य ध्यान करुणा और ज्ञान विकसित करने पर होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि बौद्ध धर्म वैश्विक संस्कृति का हिस्सा है। यह हमें यह सिखाता है कि समृद्धि और करुणा से युक्त होकर कैसे शांति में रहा जा सकता है। हमें अपना ध्यान मनुष्य को अधिक दयालु और शांतिपूर्ण बनाने की दिशा में केंद्रित करने की आवश्यकता है। बुद्ध के उपदेश हमें दिखाते हैं कि दुखों को दूर करने के उद्देश्य से शांति और सद्भाव में कैसे रहना है। यही वह उपदेश है, जिन्हें सम्राट अशोक ने पूरे एशिया में फैलाने का आदेश दिया था।
हलदर ने परम पावन द्वारा शांतिदेव के ‘बोधिसत्वाचार्यवतार’ से अत्यधिक पसंद किए गए एक श्लोक का हवाला देते हुए अपनी बात समाप्त की-
जब तक अंतरिक्ष कायम है,
और जब तक भव्य प्राणी रहेंगे,
दुनिया के दुख को दूर करने में मदद के लिए.
तब तक मैं भी रहूंगा।
इसके बाद मॉडरेटर भिक्षु महायानो औन ने परम पावन से सम्मेलन का उद्घाटन भाषण देने के लिए कहा। इससे पहले उन्होंने परम पावन को उपस्थित सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया।
परम पावन ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, ‘मैं अपने मन, वचन और कर्म से बुद्ध को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। आज हम उस पवित्र स्थान पर एकत्रित हैं, जहां शाक्यमुनि बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यद्यपि हम घोर कलियुग में रह रहे हैं, फिर भी उन्होंने जो धर्म सिखाया वह अभी भी उज्ज्वल है।‘
‘बुद्ध न कभी पाप कर्मों को पानी से नहीं धोते, न ही वे अपने हाथों से प्राणियों के कष्टों को दूर करते हैं और न ही वे अपने विचारों को दूसरों पर थोपते हैं। बल्कि, सत्य को उजागर करके ही वे प्राणियों को मुक्त होने में मदद करते हैं।‘
“हम अपनी विनाशकारी भावनाओं के कारण कष्ट उठाते हैं। अज्ञानता के कारण हम नकारात्मक कर्म अर्जित करते हैं। इसीलिए बुद्ध ने हमें सिखाया कि गलत मत करो, अपने अंदर सद्गुण विकसित करो।‘ इसलिए हमें सुह्रद बनने और दूसरों को नुकसान पहुंचाने से बचने की जरूरत है। हमें दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करने की बजाय लोगों की मदद करनी चाहिए और उनको लाभ पहुंचाना चाहिए। ऐसा करने से हमें मानसिक शांति मिलेगी। बदले में हमारा शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहेगा।
‘क्रोध या मोह के वशीभूत होकर कार्य करना गलत है। धर्म का सार है जो हमें सीखना है- उसके लिए अध्ययन करना, जो सीखा है उसका मनन करना और जो समझा है उसे अपने जीवन में उतारना। यदि आप परोपकारी रवैया अपनाते हैं, बोधिचित्त का विकास करते हैं तो आप अपने और दूसरों के लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होंगे। ‘मैं बोधिचित्त उत्पन्न कर सकता हूं’- का ध्यान करते हुए ज्ञान प्राप्ति के अवसर पर सभी भव्य प्राणियों को अपने अतिथि के रूप में बुलाएं। बोधिचित्त के लिए साधना करना शक्तिशाली अभ्यास है। इसके साथ ही हम छह सिद्धियों और शिष्यों को एकत्रित करने के चार तरीकों पर काम कर सकते हैं। पूरा ध्यान अन्य भव्य प्राणियों की सेवा पर होना चाहिए है। ऐसा करने लगेंगे तो दुनिया बेहतर मित्रतापूर्ण और अधिक शांतिपूर्ण जगह बन जाएगी।‘
परम पावन ने सातवीं शताब्दी के तिब्बती धार्मिक राजा सोंगत्सेन गम्पो के समय की याद दिलाई। राजा सोंगत्सेन गम्पो ने देवनागिरी वर्णमाला पर आधारित एक तिब्बती लिपि तैयार की। नतीजतन, जब अगली शताब्दी में शांतरक्षित तिब्बत आए तो उन्होंने तिब्बतियों को पाली और संस्कृत भाषाओं पर भरोसा करने के बजाय बौद्ध साहित्य का तिब्बती में अनुवाद करने की सलाह दी। इसी अनुवाद के आधार पर धर्मग्रंथों और ग्रंथों के कांग्यूर और तेंग्यूर संग्रह तैयार हुए हैं, जिन पर हमें गर्व हो सकता है। इन संग्रहों को संरक्षित करना न केवल हमारे लिए अच्छा है बल्कि बड़े पैमाने पर दुनिया के लिए फायदेमंद हो सकता है।
परम पावन ने टिप्पणी की कि लोग भौतिकवाद से थक रहे हैं। इन परिस्थितियों में यदि हम सौहार्दता विकसित कर सकें तो हम न केवल शारीरिक रूप से सहज महसूस करेंगे बल्कि हमारा मन भी आनंद से भर जाएगा। इससे भी अधिक यह अगले जीवन में और अधिक सौहार्दपूर्ण होने में सहायक बनेगा।
परम पावन ने बताया, ‘बोधिचित्त की साधना अनमोल साधना है। मैंने पाया है कि यह मेरे लिए बहुत मददगार रहा है। इसलिए मैं आप सभी से भी इसे ध्यान में रखने के लिए कहता हूँ। अन्य प्राणियों की सहायता करें, उनके लिए खुद बुद्ध बनें। अपने मन की शांति विकसित करके हम विश्व में शांति के लिए व्यावहारिक योगदान दे सकेंगे।‘
‘मैंने बोधिचित्त और शून्यता को समझने वाले ज्ञान के लिए की गई साधना के लाभों को देखा है और मैं अपने अनुभव से उनके व्यावहारिक अवदान को प्रमाणित कर सकता हूं। मैंने एकल-केंद्रित एकाग्रता विकसित नहीं की है, लेकिन अगर मैंने ऐसा किया होता तो मुझे लगता है कि मैं बहुत अच्छा कर सकता हूं। इस तरह से बोधिचित्त आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास लाता है। यह हमें सभी संवेदनशील प्राणियों के लिए काम करने का साहस देता है।‘
परम पावन ने टिप्पणी की कि ‘हृदय सूत्र’ का मंत्र बुद्धत्व प्राप्ति के लिए चरण-दर-चरण आगे बढ़ने का संकेत देता है। जब अवलोकितेश्वर ‘तद्यता गते गते परगते पारसमगते बोधि स्वाहा (आगे बढ़ें, आगे बढ़ें, आगे बढ़ें, पूरी तरह से आगे बढ़ें, आत्मज्ञान में स्थापित हों)’ का पाठ करते हैं तो वह शिष्यों को पांच मार्गों से आगे बढ़ने की सलाह दे रहे हैं। परम पावन ने यह भी उल्लेख किया कि नागार्जुन की ‘मध्यम मार्ग की मौलिक बुद्धि’, शांतिदेव की ‘बोधिसत्व के मार्ग में प्रवेश’ और चंद्रकीर्ति की ‘मध्यम मार्ग में प्रवेश’ जैसे महान ग्रंथों का अध्ययन करना बहुत उपयोगी हो सकता है।
परम पावन ने कहा, ‘दूसरों के साथ अनुभव साझा करने के लिए आपके पास अनुभव होना चाहिए। दो सिद्धांत- बोधिचित्त और शून्यता- को समझने वाली बुद्धि मेरी साधना का मूल है। मैं हर दिन सुबह उठते ही उनका आह्वान करता हूं। इस प्रकार मैं पुण्य इकट्ठा करता हूं और मानसिक मलिनता को शुद्ध करता हूं। जब तक अंतरिक्ष मौजूद है मैं लगातार दूसरों की सेवा करने की इच्छा प्रकट करता हूं। दूसरों की भलाई करना ही सार्थक जीवन जीने का तरीका है।
यदि आप दूसरों की मदद करना चाहते हैं तो आपको अपने मन को अनुशासित करने की आवश्यकता है। मैं अपने धर्म मित्रों से इसे हृदयंगम करने के लिए कहता हूं। मेरा जन्म सुदूर उत्तर-पूर्वी तिब्बत में हुआ था और बचपन में पढ़ाई के लिए मुझे ल्हासा लाया गया था। अब मैं महसूस कर सकता हूं कि इन प्रथाओं का मुझ पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। यही कारण है कि मैं इन्हें आपके साथ साझा करने में सक्षम हूं। मैं आपसे बोधिचित्त और शून्यवाद को समझने के लिए चिंतन करने का आग्रह करता हूं।
‘पाली और संस्कृत दोनों परंपराओं का सार परोपकार है। सबसे महत्वपूर्ण बात बोधिचित्त में स्थिर होना है।‘
सभा को कई बौद्ध परंपराओं के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया। ताइवान के ब्लिस एंड विजडम मठवासी समुदाय के मठाधीश वेन रु-जिंग ने मंच को अपनी शुभकामनाएं दीं। बोधगया में थाईलैंड के राजा के प्रतिनिधि के तौर पर रॉयल थाई मठ के मुख्य मठाधीश फ्रा धम्बोधिवोंग ने थाईलैंड के थाई संघराजा और शाही परिवार की ओर से परम पावन को बधाई दी और त्रिरत्न से प्रार्थना की कि मंच और इसकी कार्यवाही को आशीर्वाद दें।
भूटान के जेई खेंपो कार्यालय के अनुसंधान और अनुवाद प्रमुख भिक्षु खेंपो सोनम भूमदेन ने बौद्ध धर्म के बारे में गहन बातचीत आयोजित करने के लिए मंच द्वारा प्रदान किए गए अवसर की प्रशंसा की। उन्होंने प्रार्थना की कि सभी प्राणियों को शांति और समृद्धि प्राप्त हो।
अमेरिका स्थित कम्बोडियाई बौद्ध भिक्षु सोसायटी के अध्यक्ष प्रीह इद्दीमुनि मोएंग सांग ने कहा कि परम पावन और महासंघ की उपस्थिति में यहां आना उनके लिए गौरव की बात है। उन्होंने बताया कि उनके समूह ने हाल ही में बोधगया में संपूर्ण त्रिपिटक का जाप पूरा किया है।
मंगोलिया के गैंडेन थेकचेनलिंग मठ के मठाधीश महामहिम खंबो नोमुन खान, गेशे जेत्सुन दोर्जे ने अपना संदेश भेजा जो यहां पढ़ा गया। उन्होंने २१वीं सदी में बौद्ध धर्म की भूमिका पर चर्चा करने के लिए ऐसी सभा आयोजित करने के लिए आयोजकों को बधाई दी।
यांगून के राज्य संघमहानायक सदस्य और म्यांमार के उप संघराजा वेन कुमदीनना ने अपनी शुभकामनाएं दीं।
रूस के कालमीकिया के काल्मिक बौद्धों के प्रमुख शादजिन लामा गेशे तेनज़िन चोदक ने अपनी शुभकामनाएं दीं और कहा कि इस असाधारण जगह में इस मंच में भाग लेना उनके लिए सम्मान की बात है। उनकी शुभकामना पत्र का अनुवाद तेलो तुल्कु ने किया।
वियतनामी बौद्ध संघ के प्रतिनिधि वेन त्रि मिंगज़ेन ने ‘नमो शाक्यमुनि बुद्ध’ कहकर भव्य आत्मा का आह्वान किया और टिप्पणी की कि अनित्यता के बारे में मुख्य शिक्षा का अर्थ है कि चीजें हमेशा बदलती रहती हैं। उपदेशों के पालन के महत्व पर अपना वक्तव्य शुरू करने से पहले उन्होंने एक मिनट का ध्यान किया।
श्रीलंका के असगिरिया चैप्टर के सियाम महा निकाय के महायानके थेरो परम आदरणीय डॉ. वारकागोड़ा ज्ञानरत्ना महायानके थेरो ने कहा कि धार्मिक सम्मेलन पूरी दुनिया में आयोजित किए जाते हैं। लेकिन इस सम्मेलन में जो अलग विशेषता है वह यह कि यह सम्मेलन बौद्ध धर्म के जन्मस्थान में बुद्ध की अहिंसा और करुणा की शिक्षा कर रहा है, और इस तरह बुद्ध ने जो उपदेश दिया, हम उसका संरक्षण करने का प्रयास कर रहे हैं।
लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, लेह के माननीय कार्यकारी पार्षद श्री ताशी नामग्याल ने लद्दाख के लोगों की ओर से शुभकामनाएं दीं और पाली और संस्कृत परंपराओं के बीच उत्साही संवाद को प्रोत्साहित किया।
भारत के अरुणाचल प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडू ने परम पावन के साथ ही विद्वानों, भिक्षुओं और भिक्षुणियों का अभिवादन किया।
उन्होंने कहा, ‘मैं इस सभा में उपस्थित होने और सभी को आशीर्वाद देने के लिए परम पावन को धन्यवाद देता हूं। उन्होंने ऐसा करके हमारे लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है। मैं आभारी हूं कि पालि और संस्कृत परंपराओं को एक साथ लाने के परम पावन के दृष्टिकोण को पूरा करने वाले इस तरह के मंच आयोजित किए जा रहे हैं और मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि मैं ज्ञान और विद्वता की चर्चा में भाग ले रहा हूं। हम न केवल बुद्ध की शिक्षाओं को अपने भीतर विकसित करने का प्रयास करते हैं, बल्कि उन्हें नीति का आधार बनाने का भी प्रयास करते हैं। परम पावन दीर्घायु हों।‘
परम पावन ने जो कुछ पहले ही कहा था, उसी को आगे बढ़ाते हुए आगे कहा-
‘इस शुभ अवसर पर इस पवित्र स्थान पर मैं यह उल्लेख करना चाहूंगा कि जब बुद्ध की शिक्षाओं को संरक्षित करने की बात आती है तो हमें केवल मठवासी चीवर पहनकर संतुष्ट नहीं होना चाहिए। हमें अध्ययन और साधना करनी चाहिए। हमें अपने मन और भावनाओं की कार्यप्रणाली के बारे में सीखने की जरूरत है। आज, वैज्ञानिक भी मन और आंतरिक शांति पाने के साधनों के बारे में जानने में रुचि रखते हैं।‘
उन्होंने कहा, ‘मन में सूक्ष्मता के भी विभिन्न स्तर होते हैं, जैसे जाग्रत, नींद और स्वप्न की अवस्था। मैं ऐसे लोगों को जानता हूं जिन्होंने अपने शरीर को इच्छाधारी बना लिया है और अपनी इच्छानुसार यहां-वहां जाते रहते हैं। धर्म की साधना केवल अनुष्ठान करना और प्रार्थना करना भर नहीं है। इसमें हमारे दिमाग को प्रशिक्षित करने और हमारी भावनाओं पर काबू पाने की तकनीकें शामिल हैं।‘
‘तिब्बती परंपरा में मुख्यधारा और महायान दोनों परंपराओं से बुद्ध के संपूर्ण उपदेश लिए गए हैं, जिसमें मन की सूक्ष्मता की व्याख्याएं शामिल हैं। धन्यवाद।‘
आईबीसी के महासचिव वेन खेंसूर जांगचुब चोएडेन ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
उन्होंने कहा, ‘मैं परम पावन १४वें दलाई लामा के नेतृत्व वाले पवित्र संघ प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। मुझे आज सुबह के सत्र में व्याख्यान देने वाले सभी महानुभावों- परम पावन दलाई लामा, गदेन त्रि रिनपोछे, अरुणाचल के मुख्यमंत्री और कई संघ समुदायों के प्रतिनिधियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए परम प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। आज जब हम यहां इस सबसे पवित्र स्थान पर एकत्र हुए हैं, तो हमें पवित्र धर्म में निहित अंतर्दृष्टि और हमारे जीवन में अपनेपन और उद्देश्य की भावना के लिए धर्म का आभारी होना चाहिए।
‘आइए हम इस बैठक की विविधता को पहचानने का प्रयास करें। आइए, हम इस सभा का उपयोग सीखने, साझा करने और अपनी आपसी समझ को बेहतर बनाने के लिए करें। आइए हम एक-दूसरे के लिए अपने दिल खोलें।
‘मैं उन सभी को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने इस मंच को समर्थन दिया है। साथ ही उन लोगों को भी धन्यवाद, जिन्होंने संघ के सदस्यों के लिए आवास उपलब्ध कराया है। सभी स्वयंसेवकों को उनके अथक परिश्रम के लिए धन्यवाद और आने के लिए आप सभी को धन्यवाद। मुझे आशा है कि आप बोधगया से ऊर्जावान होकर और प्रेरणा ग्रहण करके जाएंगे।‘