तिब्बत.नेट, 6 मई, 2019
धर्मशाला। परमपावन दलाई लामा ऑफिस की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, आज 6 मई की सुबह परम पावन ने अपने निवास पर भारत के 35, वियतनाम से 45 और रूस से 18 व्यावसायिक अग्रणियों और पेशेवरों के एक समूह के साथ मुलाकात की।
बैठक में परम पावन ने कहा, ‘व्यक्तिगत तौर पर हमारे जीवन का उद्देश्य अपनी पूरी सामर्थ्य भर दूसरों की सेवा करना है। मैं हर दिन दूसरों के कल्याण के लिए अपने शरीर, वाणी और मन की क्रियाओं को समर्पित करता हूं। यह धर्म का अर्थ है और अहिंसा और करुणा की लंबे समय से चली आ रही भारतीय परंपराओं को दर्शाता है। मैंने बचपन से ही प्राचीन भारतीय परंपरा का अध्ययन किया है, जिसका मतलब है शास्त्रीय ग्रंथों को कंठस्थ करना, शब्दों की व्याख्या समेत अर्थ प्राप्त करना और जो मैंने सीखा है उसकी जांच करने के लिए बहस में तर्क और कारण का प्रयोग करना। मैं प्राचीन भारतीय तर्क का उपयोग करने की दृढ़ता से सलाह देता हूं। नालंदा परंपरा के एक छात्र के रूप में मैंने इसे मन की शांति बनाए रखने के लिए उपयोगी पाया है।’
श्रोताओं से प्रश्न आमंत्रित करने के बाद परम पावन ने एक व्यापारी के सवाल पर कहा कि यद्यपि चतुर निर्णय कभी-कभी सफलता की ओर ले जाता है, लेकिन ईमानदार होना अधिक विश्वसनीय है क्योंकि यह लोगों में हमें विश्वसनीय बनाता है।
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि हमें अधिक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करना है तो हमें नैतिक सिद्धांतों पर चलने की आवश्यकता है। शिक्षा में मन की शांति प्राप्त करने और उसे बनाए रखने के निर्देश शामिल होने चाहिए। इसी से जुड़ी हमारी सलाह नकारात्मक भावनाओं से निपटने की है। भारत में एकाग्रता और अंतर्दृष्टि (समता और विपश्यना) की साधना ने मन और भावनाओं के कामकाज की गहरी समझ पैदा की है।
‘भारत दुनिया की महान सभ्यताओं में से एक है, जिसमें करुणा द्वारा प्रेरित अहिंसा का आचरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मैं मन और भावनाओं की प्राचीन भारतीय समझ में रुचि को पुनर्जीवित करने की कोशिश करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। मेरा मानना है कि यह एकमात्र ऐसा देश है जो आधुनिक शिक्षा के साथ इस प्राचीन ज्ञान के संयोजन का सफलतापूर्वक नेतृत्व कर सकता है। दक्षिण भारत में हमारे मठों में हमारे पास 10,000 भिक्षु और 1000 भिक्षुणियां इस विषय में प्रशिक्षित हैं और प्रशिक्षण देने में सक्षम हैं।
एक प्रश्नकर्ता ने परम पावन से ‘बुरी नज़र’ से बचाव के बारे में पूछा। उन्होंने जवाब दिया कि यह सिर्फ अंधविश्वास है और आज के समय में प्राचीन काल के अंधविश्वास अप्रासंगिक हैं। इससे बेहतर वैज्ञानिक दृष्टि से सोचने में है।
सम्यकत्व के बारे में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए परम पावन ने बताया कि सम्यकत्व को विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया जा सकता है। बौद्ध संदर्भ में यह हमारे दिमाग के मौलिक रूप से शुद्ध होने से संबंधित है। उन्होंने कहा कि अधिकांश समय हम मन की शांति प्राप्त करने के बारे में किसी भी विचार के बिना संवेदी चेतना से चिंतित हैं। संवेदी चेतना मन की अपेक्षाकृत मोटी अवस्था है। स्वप्न अवस्था और गहरी नींद की अवस्था, संवेदी इनपुट से अछूता एक सूक्ष्म अवस्था है। जबकि मन की सूक्ष्म अवस्था मृत्यु के समय प्रकट होती है। परम पावन ने देखा कि चेतना के ठोस और सूक्ष्म स्तर को ध्यान में प्रतिष्ठित किया जा सकता है। इसके सूक्ष्म स्तर पर मन अज्ञानता या किसी अन्य दोष के अधीन नहीं होता है।
अहिंसा और करुणा की धारणा पर लौटते हुए परम पावन ने बताया कि हथियारों का उपयोग केवल हत्या और युद्ध करने के लिए किया जा सकता है। यदि हम शांति में रुचि रखते हैं तो हमें एक सैन्यविहीन दुनिया की तलाश करनी चाहिए। समस्याओं को हल करने के लिए बल का उपयोग गलत है। लोगों को ‘उन्हें’ और ‘हमें’ के संदर्भ में देखने से आसानी से हिंसा होती है। मनुष्य के रूप में हम एक समुदाय के हैं, इसलिए हमें एक-दूसरे का भाई और बहन के रूप में सम्मान करना चाहिए।
अंत में, परम पावन ने पारंपरिक रूप से एक बौद्ध देश वियतनाम के आगंतुकों को प्रोत्साहित किया और रूस, जहाँ पर मन और भावनाओं के बारे में जानने के लिए तिब्बत और नालंदा परंपरा के संबंद्ध होकर ऐतिहासिक रूप से बौद्ध लोग रहे हैं, के लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने और अध्ययन करने की आवश्यकता को दोहराया।