दार्जिलिंग। भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ) ने दार्जिलिंग के मंजूश्री सेंटर ऑफ तिब्बतन कल्चर (तिब्बती मंजुश्री संस्कृति केंद्र) में वहांके स्थानीय और तिब्बती समुदायों के साथ ३० अगस्त२०२३ को एक बैठक का आयोजन किया। बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में कोर ग्रुप फॉर तिब्बती कॉज़- इंडिया (सीजीटीसी-आई) के राष्ट्रीय सह-संयोजक श्री सुरेंद्र कुमार, विशेष अतिथि के तौर पर सीजीटीसी-आई के क्षेत्रीय संयोजक श्री सौम्यदीप दत्ता, तिब्बत पर कार्रवाई के लिए हिमालयन समिति ( हिमकैट), सिलीगुड़ी के सचिव श्री सोनम लुंडुप लामा, सीजीटीसी-आईके पूर्व क्षेत्रीय संयोजक और दार्जिलिंग तिब्बती सेंटलमेंट की नवनियुक्त अधिकारी पेमा छेरिंग धेनमत्सांग की गरिमामय उपस्थिति रही। बैठक में स्थानीय समुदाय के प्रमुख लोगों ने भाग लिया।
तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन के स्थानीय अध्यक्ष श्री ग्युरमी टी. भूटिया ने बैठक में उपस्थित लोगों को कार्यक्रम के बारे में बताया और कार्यक्रम के आयोजन में आईटीसीओ के साथ मिलकर समन्वय किया।
मुख्य अतिथि श्री सुरेंद्र कुमार ने भारत-तिब्बत मैत्री संघ(आईटीएफएस) और कोर ग्रुप फॉर तिब्बती कॉज़- इंडिया (सीजीटीसी-आई)के बारे में जानकारी प्रदान की। उन्होंने इस मुद्दे पर जागरुकता बढ़ाने और विशेषकर स्थानीय हिमालयी समुदायों का समर्थन जुटाने के महत्व पर जोर दिया। तिब्बती मुद्दे को आगे बढ़ाने में आईटीएफएस की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने उल्लेख किया कि उन्होंनेभारत सरकार से अपील की है कि वह तिब्बती मुद्दे का समर्थन करे और परम पावन १४वें दलाई लामा को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए। श्री सुरेंद्र कुमार ने दिल्ली में कोर ग्रुप की हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस की ओर भी ध्यान दिलाया, जिसमें जी-२० शिखर सम्मेलन से पहले तिब्बत मुद्दे को लेकर पांच मांगों को रेखांकित किया गया था।
विशिष्ट अतिथि श्री सौम्यदीप दत्ता ने तिब्बती आंदोलन को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक बताया।उन्होंने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया कि तिब्बत के बारे में विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में जानकारी फैलाई जाए और आंदोलन जमीनी स्तर तक पहुंचाई जाए। उन्होंने जनता को ‘फ्री तिब्बत- ए वॉयस फ्रॉम असम’ से परिचित कराया और तिब्बत में बांधों के बड़े पैमाने पर विकास के कारण ब्रह्मपुत्र (यारलुंग छांगपो या सियांग) नदी परियोजना से उत्पन्न संभावित खतरों पर प्रकाश डाला।
श्री सोनम लुंडुप ने हिमकैट और इसकी गतिविधियों के बारे में लोगों को जानकारी दी। उन्होंने विभिन्न तिब्बती गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के बीच औरअधिक समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया।
आईटीसीओ के समन्वयक थुप्टेन रिनज़िन ने आईटीसीओ के उद्देश्य और आईटीएफएस दार्जिलिंग चैप्टर की स्थापना के औचित्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने तिब्बती मुद्दे के लिए समर्थन जुटाने और तिब्बत समर्थक संगठनों को पुनर्जीवित करने के महत्व पर जोर दिया। थुप्टेन ने तिब्बत और हिमालयी राज्यों के बीच ऐतिहासिक संबंधों पर प्रकाश डाला और यह स्पष्ट किया कि भारत-चीन मुद्दों का समाधान तिब्बती मुद्दे के समाधान में ही अंतर्निहित है। उन्होंने तिब्बत की गंभीर स्थिति की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिसमें आत्मदाह, भारी निगरानी और तिब्बती संस्कृति,धर्म और भाषा को खतरे में डालने वाले चीनी कम्युनिस्ट शासन द्वारा संचालित अनिवार्य आवासीय स्कूल शामिल हैं। उन्होंने आईटीएफएस-दार्जिलिंग को सामुदायिक भागीदारी का मंच बताते हुए स्थानीय समुदाय से इसके प्रति समर्थन बढ़ाने की अपील की।
इस कार्यक्रम में तिब्बत के प्रबल समर्थक स्वर्गीय प्रोफेसर कृष्ण नाथ की पुनर्मुद्रित पुस्तक-तिब्बत मुक्ति साधना और भारत-चीन संबंध-का विमोचन किया गया।
इस बैठक में सबसे अहम घटना आईटीएफएस-दार्जिलिंग चैप्टर का ऐतिहासिक गठन रहा।चैप्टर के नवगठित बोर्ड में सेंडुप डुक्पा को अध्यक्ष, श्री सुभमोय चटर्जी और तिब्बती सेटलमेंट अधिकारी को उपाध्यक्ष नामित किया गया। बोर्ड में ११अन्यसदस्यों को शामिल किया गया। मुख्य कार्यक्रम के बाद एक समूह चर्चा का भी आयोजन किया गया,जहां आईटीएफएस के उपाध्यक्ष श्री सुरेंद्र कुमार ने प्रश्नोत्तर सत्र के बाद नवगठित समिति को उनकी भूमिका और जिम्मेदारियों के बारे में बतायाऔर मार्गदर्शन किया।
श्री सुरेंद्र कुमार और आईटीएफएस-दार्जिलिंग के महासचिव श्री ग्युरमी टी. भूटिया ने भी कार्यक्रम के बाद स्थानीय प्रेस से बातचीत की।
अगले दिन संभूता तिब्बती स्कूल, दार्जिलिंग के सभागार में स्थानीय तिब्बती समुदाय के साथ विशेष रूप से इसी तरह का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में श्री सुरेंद्र कुमार ने जनता को आईटीएफएस, सीजीटीसी-आई और तिब्बतियों को मिले ऐतिहासिक समर्थन के बारे में जानकारी दी।
दार्जिलिंग की तिब्बती सेंटलमेंटअधिकारी पेमा छेरिंग धेनमात्संग ने आईटीएफएस और आईटीसीओ की पृष्ठभूमि के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने नई कार्यकारिणी को शुभकामनाएं दीं और इसके सदस्यों को खटक देकर सम्मानित किया।
आईटीसीओ समन्वयक थुप्टेन रिनज़िन ने भारत में, विशेष रूप से हिमालयी समुदायों के भीतर तिब्बत समर्थक समूहों को मजबूत करने की आवश्यकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने आईटीएफएस-दार्जिलिंग चैप्टर के गठन के औचित्य और स्थानीय समुदायों के भीतर तिब्बती मुद्दे के लिए बढ़ते समर्थन के संभावित प्रभाव की गहराई से पड़ताल की। उन्होंने स्थानीय तिब्बती समुदाय और तिब्बती गैर सरकारी संगठनों से आईटीएफएस-दार्जिलिंग की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने और समर्थन करने की अपील की।
आईटीएफएस-दार्जिलिंग के प्रथम अध्यक्ष श्री सेंडुप डुक्पा ने स्थानीय तिब्बती समुदाय से सहयोग और समर्थन की अपील की और भविष्य में भी सहयोग के बिंदुओं को तलाशने के लिए विभिन्न स्थानीय तिब्बती गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक आयोजित करने की योजना के बारे में बात की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आईटीएफएस दार्जिलिंग तिब्बती मुद्दे को आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश करेगा।
आईटीसीओ समन्वयक थुप्टेन रिनज़िन ने कहा,‘मैं कार्यक्रम को शानदार ढंग से सफल बनाने में सहयोग और समर्थन के लिए तिब्बती मुक्ति साधना के स्थानीय अध्यक्ष श्री ग्युरमी टी. भूटिया और तिब्बती सेटलमेंट अधिकारी सुश्री पेमा छेरिंग धेनमत्सांग को तहे दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं।‘आईटीसीओ के उप समन्वयक तेनज़िन जॉर्डन ने कहा, ‘दार्जिलिंग में आयोजित यह कार्यक्रम सिक्किम और उत्तर बंगाल में तिब्बत समर्थक समूहों को मजबूत और पुनर्जीवित करने के हमारे व्यापक प्रयासों का हिस्सा है। मुझे विश्वास है कि यह स्थानीय समुदाय के बीच अधिक जागरुकता पैदा करेगा।‘बैठक का समापन भारतीय और तिब्बती राष्ट्रगान के साथ हुआ। दोपहर बाद आगत अतिथिगण कालिम्पोंग के लिए रवाना हो गए।