बोधगया, बिहार।परम पावन दलाई लामा आज ०३ जनवरी, २०२३ की सर्द सुबह गाड़ी से मगध विश्वविद्यालय से भावी ‘दलाई लामा प्राचीन तिब्बती और भारतीय ज्ञान केंद्र’ स्थल के लिए निकले। वहांनामग्याल मठ के भिक्षुओं ने प्रार्थना की।वहां उन्होंने भारत सरकार के कानून और न्याय मंत्री माननीय किरेन रिजिजू, सांसद श्री सुशील मोदी, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धेऔर आईसीसीआर के महानिदेशक राजदूत कुमार तुहिन के साथ केंद्र के लिए प्रस्तावित भवन का शिलान्यास किया। उन्होंने मंच पर अपना आसन ग्रहण करने से पहले प्रस्तावित भवनों के वास्तु मॉडल का बारीकी से निरीक्षण किया। परियोजना के अंतरिम निदेशकतेम्पा छेरिंग ने उपस्थित सभी लोगों का अभिवादन किया और विशेष अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने घोषणा की कि परम पावन दलाई लामा के दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए केंद्र की स्थापना की जा रही है कि यदि प्राचीन भारतीय ज्ञान, विशेष रूप से मन और भावनाओं के कामकाज के संबंध में जागरूकताको पुनर्जीवित किया जा सकता है और अधिक व्यापक रूप से प्रचारित किया जा सकता हैतो यह एक अधिक शांतिपूर्ण, अधिक करुणाशील विश्व के सृजन में योगदान देगा। उन्होंने सहयोग के लिए बिहार सरकार और भारत सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने घोषणा की कि केंद्र हर उस व्यक्ति के लिए खुला रहेगा जो तिब्बती और प्राचीन भारतीय ज्ञान के बारे में सीखना चाहता है।
हिंदी में दिए गए अपने भाषण मेंप्रो. समदोंग रिनपोछे ने याद किया कि कई साल पहले आचार्य विनोबा भावे ने भविष्यवाणी की थी कि एक समय आएगा, जब भारतीय संस्कृति दुनिया में अग्रणी भूमिका निभाएगी। उनकी भविष्यवाणी को व्यापक रूप से खारिज कर दिया गया था, लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर ऐसा लगता है कि वे दूरदर्शी थे। रिनपोछे ने आगे कहा कि चूंकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी से जुड़ा भौतिकवादी दृष्टिकोण दुनिया में शांति और संतुष्टि लाने में विफल रहा है, प्राचीन भारतीय ज्ञान और मूल्य इस अंतर को भर सकते हैं। रिनपोछे ने जोर देकर कहा, ‘अतीत मेंजब भारतीय विचारधाराएं कारण और तर्क पर आधारित विचारों कापरस्पर आदान-प्रदान कर रही थीं, तो वे समृद्ध थीं। तिब्बती परंपरा ने इस दृष्टिकोण को जीवित रखा है। इस केंद्र की स्थापना के साथइन परंपराओं को भारत में पुनर्स्थापित किया जाएगा। ‘मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से बोधगया के विधायक और बिहार सरकार में कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने बात कही। उन्होंने सभा कोसूचित किया कि मुख्यमंत्री परम पावन की दृष्टि का पूर्ण समर्थन करते हैं। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वह और बिहार सरकार इस परियोजना को फलीभूत करने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करेंगे। उन्होंने बताया कि बिहार की सरकार और लोग और विशेष रूप से स्थानीय लोग इस बात के लिए आपके आभारी हैं कि केंद्र बोधगया में स्थापित किया जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश से सांसद केंद्र सरकार के कानून और न्याय मंत्री माननीय किरेन रिजिजूने परम पावन, शाक्य सिंहासन धारकों और अन्य सम्मानित अतिथियों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जब भी वे बोधगया आते हैं और सोचते हैं कि २५०० साल पहले बुद्ध वास्तव में इस इलाके में चले थेतो उन्हें परम शांति का अनुभव होता है।
यह घटना बोधगया को पवित्र स्थान बनाता है और अब परम पावन अपनी उपस्थिति से उस स्थिति को और उन्न्त करते हैं। बुद्ध ने दुनिया को दिखाया कि कैसे ज्ञान प्राप्त किया जाए और हमारे समय में परम पावन भी यही कर रहे हैं। उन्होंने कहा,‘परम पावन ने भारत को अपना घर बनाया है और प्राचीन भारतीय ज्ञान के बारे में जागरूकता को पुनर्जीवित करने में मदद करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया है।दुनिया भर से लोग उन्हें सम्मान देने के लिए भारत आते हैं। परम पावन भारत को गुरु और तिब्बतियों को शिष्य के रूप में संदर्भित करते हैं, लेकिन मैं कहता हूं कि वह शांति के दूत हैंजो दुनिया के गुरु हैं। मैं भारत की जनता और सरकार की ओर से उनका आभार व्यक्त करता हूं। यहां भारत में उनका हमारे बीच होना हमारे लिए सौभाग्य की बात है। ‘‘मैं इस प्राचीन तिब्बती और भारतीय ज्ञान केंद्र की आधारशिला रखने में भाग लेकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं। परम पावन कहते हैं कि नागार्जुन, आर्यदेव और चंद्रकीर्ति जैसे आचार्यों द्वारा पोषित नालंदा का ज्ञान, तर्क और कारण पर आधारित परंपरा को तिब्बत में जीवित रखा गया। इसका संबंध धर्म से कम और चित्त के विज्ञान से अधिक था। इसी तर्ज पर अध्ययन के लिए एक केंद्र स्थापित किया जा रहा है। दुनिया भर के लोग यहां आकर अध्ययन कर सकेंगे।‘ उन्होंने कहा,‘परम पावन करुणा और सहिष्णुता, क्षमा और आत्मानुशासन जैसे मानवीय मूल्यों की प्रशंसा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने तिब्बती संस्कृति के संरक्षण और तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए काम करने का संकल्प लिया है। ‘‘भारत सरकार बदले में इस केंद्र को सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है, जो हमें अपने भीतर झांकने के लिए प्रोत्साहित करेगी। केंद्र एक विश्वस्तरीय संस्थान होगा, मानवता के लिए एक उपहार होगा, जहां मन की शांति और विश्व शांति के बीच की कड़ी को खोजना संभव होगा। ‘तत्पश्चात तेम्पा छेरिंग ने परम पावन को सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया। परम पावन ने कहा,‘आजहम सब यहां बुद्ध की शिक्षाओं के प्रति अपनेआकर्षण के कारण एकत्रित हुए हैं। हम सभी शांति की कामना करते हैं, इसलिए हमें करुणा और अहिंसा की साधना को विकसित करने की आवश्यकता है। बुद्धधर्म न केवल दुनिया को शांति और खुशी देता है, बल्कि यह हमें दिखाता है कि दुख को कैसे दूर किया जाए। ‘‘खुशफहमी में रहना पर्याप्त नहीं है।हमें दुख के कारणों को जानना होगा,जो हमारे आत्म-मुग्धता और विनाशकारी भावनाओं में निहित हैंऔर उन्हें समाप्त करना है। विश्व में शांति व्यक्तियों के मन में शांति होने पर निर्भर करती है।‘शांतिदेव ने अपनी पुस्तक ‘बोधिसत्व के मार्ग में प्रवेश’में स्थिति को निम्न तरीके से और अत्यधिक स्पष्ट किया है-संसार में जितने भी दुःख उठाते हैं वे अपने सुख की इच्छा के कारण ऐसा करते हैं। संसार में जितने भी सुखी हैं, वे दूसरों के सुख की कामना के कारण ही सुखी हैं। ८/१२९ अधिक क्या कहना? इस अंतर को ध्यान से देखें: मूर्ख अपने लाभ के लिए तरसता है और संत दूसरों के लाभ के लिए कार्य करता है। ८/१३० जो दूसरों की पीड़ा के लिए अपने सुख का आदान-प्रदान करने में विफल रहते हैं, उनके लिए बुद्धत्व निश्चित रूप से असंभव है- संसार-चक्र में सुख कैसे हो सकता है? ८/१३१ इस प्रकार सुख से सुख की ओर बढ़ते हुएकौन सा विचारशील व्यक्ति रथ पर चढ़ने के बाद, उस बोधिचित्त को, जो सारी थकान और परिश्रम को हर लेता है, निराश होगा? ७/३० परम पावन ने जारी रखा,‘यदि आप सौहार्दपूर्ण हैं और दूसरों की सहायता करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं, तो यह आपको खुशी प्रदान करेगा।इसलिए, हम बुद्ध की शिक्षाओं के लिए उनके आभारी हो सकते हैं। ‘‘भारत एक ऐसी भूमि है जहां करुणाऔर अहिंसाकी मौलिक और दीर्घकालीन परंपराओं के कारण, कई अलग-अलग आध्यात्मिक परंपराएं फलती-फूलती हैं। विश्व में शांति सुनिश्चित करने के लिए हमें अहिंसा या कोई नुकसान न करने की धारणा- अहिंसाको प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। तिब्बती शरणार्थी सौभाग्यशाली हैं कि वे ऐसी भूमि में रहने के लिए आ सके जो स्पष्ट रूप से अहिंसाके सिद्धांत की भूमि रही है। मेरे पास कहने के लिए और कुछ नहीं है। मैं बिहार सरकार और केंद्र सरकार को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं, जिसके बिना इस परियोजना को पूरा करना मुश्किल होगा। हम उनके आभारी हैं। हमें दूसरों के कल्याण के बारे में सोचने और निरंतर सौहार्दता का विकास करने की आवश्यकता है। दूसरों की सेवा करना हमारे जीवन का नेतृत्व करने का एक व्यावहारिक और यथार्थवादी तरीका है। धन्यवाद।‘ कर्मा चुंगडक ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने सर्वप्रथम परम पावन के प्रति इस तिब्बती और प्राचीन भारतीय ज्ञान केंद्र की स्थापना को प्रेरित करने के लिए और आज शिलान्यास में भाग लेने के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने तिब्बत की कई आध्यात्मिक परंपराओं के प्रतिनिधियों, भिक्षुओं और भिक्षुणियों को उनकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद दिया। अंत मेंदलाई लामा ट्रस्ट की ओर सेउन्होंने भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए माननीय किरेन रिजिजूऔर बिहार सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए कुमार सर्वजीत और साथ ही साथ इस महान अवसर पर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का प्रतिनिधित्व करने के लिए सिक्योंग पेन्पा छेरिंग और स्पीकर खेनपो सोनम तेनफेल को धन्यवाद दिया।