नवभारत टाइम्स, 6 अप्रैल, 2017
बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने खुद को प्राचीन भारतीय विचारों और मूल्यों का प्रचार करने वाला दूत बताते हुए चीन से तिब्बत को अर्थपूर्ण स्वायत्तता देने की मांग की है। दलाई लामा ने भारत द्वारा यूज किए जाने के चीनी आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा, ‘मैंने भारत के अहिंसा, करुणा और धार्मिक सहिष्णुता के दर्शन के बारे में सबको बताया है।’
दलाई लामा ने बुधवार को यहां संवाददाताओं से कहा, ‘हम तिब्बत की आजादी की मांग नहीं कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि चीन तिब्बत को अर्थपूर्ण स्वायत्तता दे। हम चीन के साथ बने रहना चाहते हैं।’ बता दें कि चीन दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा से आग बबूला हो गया है। चीन ने पिछले एक महीने में दलाई लामा की यात्रा पर भारत को कई बार चेतावनी दे चुका है। इधर भारत ने भी चीन को दलाई लामा की इस धार्मिक यात्रा को राजनीतिक रंग नहीं देने की ताकीद की है। चीन अरुणाचल में दलाई लामा की यात्रा को दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को ‘गंभीर नुकसान’ पहुंचाने वाला बता रहा है।
दलाई लामा मंगलवार को 9 दिवसीय दौरे पर अरुणाचल पहुंचे हैं। उन्होंने कहा, ‘तिब्बत आर्थिक रूप से पिछड़ा है लेकिन धार्मिक रूप से काफी विकसित है। हम चीन के साथ रहकर इसे आर्थिक रूप से भी मजबूत करना चाहते हैं। यह दोनों पक्षों के लिए बेहतर होगा।’ चीन के दलाई लामा को राक्षस कहने पर उन्होंने कहा, ‘नो प्रॉब्लम, अगर वे मुझे राक्षस समझते हैं तो कोई दिक्कत नहीं है।’ उन्होंने कहा कि चीन में भी ऐसे कई लोग हैं जो भारत को प्यार करते हैं। कुछ संकुचित विचार वाले राजनेता ही भारत को अलग नजरिए से देखते हैं।
दलाई लामा ने कहा, ‘चीन में तिब्बती बौद्धों की सबसे ज्यादा आबादी है। कई चीनी बुद्धिजीवी हमारे रुख का समर्थन करते हैं।’ तिब्बत में पर्यावरण की दुर्दशा पर चिंतित दलाई लामा ने चीन से आग्रह किया कि वह ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से बचने के लिए तिब्बत की इकॉलजी पर ध्यान दे। दलाई लामा को 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।