दैनिक भास्कर, 29 नवम्बर, 2011
बीजिंग/नई दिल्ली.अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन पर पहले ही आपत्ति जता चुके चीन ने सोमवार को कहा कि ‘चीन विरोधी गतिविधियों’ के लिए दलाई लामा को ‘एक मंच’ उपलब्ध कराने वाले किसी भी देश का वह विरोध करता है।
वहीं, नई दिल्ली में तिब्बती नेता के दूत ने कहा कि भारत के पास अधिकार है कि वह जारी बौद्ध सम्मेलन में दलाई लामा को अपने विचार रखने की अनुमति दे।
ज्ञात हो कि चार दिनों के अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन की शुरुआत रविवार को नई दिल्ली में हुई। सम्मेलन के दूसरे दिन विद्वानों ने बौद्ध दर्शन और अधिकार के साथ रहने के अपने विचारों पर चर्चा की।
चीन ने हालांकि सम्मेलन को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हांग ली ने कहा, “दलाई लामा शुद्ध रूप से एक धार्मिक नेता नहीं हैं बल्कि वह धर्म की आड़ लेकर लम्बे समय से अलगाववादी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं।”
ली ने बीजिग में कहा, “कोई भी देश जो चीन विरोधी गतिविधियों के लिए किसी भी रूप में मंच उपलब्ध कराता है, हम उसका विरोध करते हैं।” उल्लेखनीय है कि ली का यह बयान उस समय आया है जब भारत और चीन ने सम्मेलन में दलाई लामा के शरीक होने को लेकर 28 और 29 नवंबर को होने वाली अपनी 15वें दौर की सीमा वार्ता स्थगित कर दी है।
वहीं, नई दिल्ली में दलाई लामा के मुख्य प्रतिनिधि तेम्पा जेरिंग ने होटल ललित में कहा, “सम्मेलन का उद्देश्य बौद्ध दर्शन पर चर्चा करने के लिए बौद्ध विद्वानों को एकजुट करने के सिवाय और कुछ नहीं है।”
चीन की आपत्ति पर उन्होंने कहा, “भारत एक मुक्त लोकतांत्रिक समाज है जबकि चीन एक अवरुद्ध समाज है। यही कारण है कि वह पीड़ित मनोदशा से युक्त होकर प्रतिक्रिया दे रहा है।”