सदस्यों ने भावनात्मक माहौल में बहस शुरू करते हुए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित 75 वर्षीय आध्यात्मिक नेता से तिब्बती समुदाय के व्यापक हित में अपने फैसले पर पुनर्विचार करने और इसे स्थगित करने का आग्रह किया।
दलाई लामा ने तिब्बत की निर्वासित संसद से स्वयं को अवकाश देने का आग्रह किया था। इससे चार दिन पहले उन्होंने लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित राजनीतिक नेता के लिए रास्ता छोड़ते हुए सेवानिवृत्ति की घोषणा की थी। उन्होंने हालाँकि कहा कि वह तिब्बत के धार्मिक नेता बने रहेंगे।
तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री सामधोंग रिनपोचे ने कहा कि इस मुद्दे पर लगभग सभी 43 सदस्यों ने दलाई लामा से आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता के पद पर बने रहने का आग्रह किया।
रिनपोचे ने कहा कि संभव है कि संसद उनके पद छोड़ने के फैसले को स्वीकार नहीं करे। एक सदस्य उगेन तोपग्याल ने कहा कि दलाई लामा का फैसला समुदाय के अनुकूल नहीं है, कुछ अन्य सदस्यों ने इस मुद्दे पर निर्वासित तिब्बतियों के बीच जनमत संग्रह कराने का सुझाव दिया। गौरतलब है कि निर्वासित तिब्बतियों की संख्या लगभग दो लाख है।
कुछ वक्ताओं ने कहा कि दलाई लामा को कुछ समय के लिए अपने पद पर बने रहना चाहिए और संसद को और शक्तियाँ दी जा सकती हैं।
दलाई लामा ने निर्वासित संसद को लिखे पत्र में सदस्यों से पद से हटने के आग्रह को स्वीकार करने को कहा था और ऐसी स्थिति के लिए चेताया था जहाँ उनका नेतृत्व अचानक अनुपलब्ध हो सकता है। (भाषा)