पायनियर, 2 जून, 2011
अपनी राजनैतिक और कार्यकारी शक्तियां अपनी निर्वासित सरकार के चुने हुए प्रतिनिधियों को हस्तांतरित करके दलाई लामा ने चीन को एक करारा झटका दिया है जिसकी नजर कठपुतली उत्तराधिकारी के माध्यम से तिब्बत के लोगों पर उनकी पकड़ को कमजोर करने पर थी। उनके इस कदम से चीन कितना निराश है यह उसकी बौखलाहट से पता चलता है।
दलाई लामा अंततः तिब्बती संविधान में संशोधन करने में सफल हो गए हैं जिसके लिए वह पिछले 50 वर्षों से प्रयासरत थे। पिछले रविवार को ही इसपर अपने हस्ताक्षर करके उन्होंने विशव के इस 469 साल पुराने धर्मतंत्र का अंत कर दिया।
अपनी राजनैतिक और कार्यकारी शाक्तियां अपनी निर्वासित सरकार के चुने हुए प्रतिनिधियों को हस्तांतरित करके 76 वर्ष के विनम्र स्वाभव के धनी दलाई लामा अपने वामपंथी आलोचकों से कहीं अधिक शक्तिशली होकर उभरे हैं। तिब्बत की निर्वासित सरकार के पास इस समय पहले से अधिक शक्तिशाली प्रधानमंत्री व संसाद मौजूद है।
चीन के वामपंथी शासक यह सोच कर बौखलाए हुए हैं कि इस भिक्षु ने एक ही झटके में तिब्बती समस्या के स्थायी समाधान के वे सारे रास्ते बंद कर दिये हैं जो उन्होंने दलाई लामा के कठपुतली उत्तरधिकारी की नियुक्त द्वारा सोच रखे थे। अब यह उत्तरधिकारी निरर्थक और अप्रासंगिक हो गया है। दलाई लामा की निर्वासित सरकार के सहयोगी, जो उनसे आदेश प्राप्त करते थे, 14 मार्च से ही दलाई लामा से अपने लौकिक अधिकारों को न त्यागने के लिए प्रार्थना कर रहे थे। उनके ये सहयोगी भी अब इस निर्णय को ठीक से समझने का प्रयास करेंगे। 30 मई 2011 के बाद से तेनजीन ग्यात्सो, जिन्हें हम 14 वां दलाई लामा के नाम से जानते हैं, अपनी निर्वासित सरकार के लिए अब मात्र एक सलाहकर की भूमिका में रहेंगे और इस तरह उनके पास अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं और बैठकों के लिए काफी समय उपलब्ध रहेगा।
सन 1642 से ही, जब दूसरे दलाई लामा को तिब्बत का आध्यात्मिक और लौकिक प्रमुख बनाया गया था, गेडेन फोडरांग के अस्तित्व था। इस प्रणाली में दलाई लामा को अत्यधिक सत्ता प्राप्त थी और यह सत्ता ब्रितानी राजा, अमरिकी राष्ट्रपति, भारतीय प्रधानमंत्री, पोप और उत्तरी कोरिया के वामपंथी राष्ट्रपति की सम्मिलित शक्तियों के बराबर थीं।
हाल के ये सुधार दलाई लामा के उन दो कार्यों में से एक थे जो उन्होंने 1959 से ही सोच रखे थे। जब उन्हें तिब्बत पर चीन के कब्जे के कारण भागकर अपनी निर्वासित सरकार बनानी पड़ी थी। उनका अगला कार्य अवतार के रूप में दलाई लामा का उत्तराधिकारी ढूंढने की प्रणाली का अंत करके उसके स्थान पर नामांकन पर आधारित प्रक्रिया को स्थापित करना होगा।
उनकी योजना के अनुसार उनका उत्तराधिकारी उनके जीवनकाल में ही चुना जाएगा और वह प्रख्यात विद्वान तथा ज्ञानी भिक्षु भी होगा। इसका मतलब यह होगा कि इस बार का दलाई लामा अपने पूर्ववर्ती लामाओं की तरह कोई बच्चा नहीं होगा जिसे एक धार्मिक प्रक्रिया द्वारा ढूंढा जाएगा और फिर वरिष्ठ लामाओं द्वारा प्रमाणित किये जाने के बाद 14 वां दलाई लामा घोषित कर दिया जाएगा।
संशोधित संविधान में वर्तमान व्यवस्था, जिसमें दलाई लामा की मृत्यु की दशा में उनके सारे अधिकार काउंसिल आँफ रीजेंट्स को हस्तांतरित हो जाते हैं जो वास्तव में वरिष्ठ भिक्षुओं, मंत्रियों और अधिकारियों का एक समूह है, को समाप्त कर दिया गया है। इस संशोधन से इस निर्वासित सरकार को चीन की किसी संभावित साजिश से भी बचाया जा सकेगा जो उन बीस सालों में उसके द्वारा की जा सकती है जो दलाई लामा की मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच हो सकते हैं, जिसे बार्दो कहा जाता है। यह इस लिहाज से जरूरी है कि चीन द्वारा इस अवधि में काउंसिल आँफ रीजेंट्स के सदस्यों को प्रभावित करके तिब्बत के मामलों में दखल देने की कोशिश पहले भी की जा चुकी है।
इन सुधारों का वास्तविक महत्व दलाई लामा द्वारा 10 और 14 मार्च को इन सुधारों की घोषणा पर चीन की प्रतिक्रिया से साझा जा सकता है। इन सुधारों पर उसकी क्रोधपूर्ण और गालीगलौज मिश्रित प्रतिक्रिया से इस मुद्दे पर उसकी घबराहट और बेबसी समझी जा सकती है। चीन ने दलाई लामा, उनकी निर्वासित सरकार और उसके प्रधानमंत्री पर अपने आक्रमण जारी रखे हुए हैं। दलाई लामा द्वारा भावी दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया में परिवर्तन की योजना का मुकाबला करने के लिए चीन ने तिब्बत पर चीनी वार्ताकार पेमा चोलिंग का प्रयोंग किया जो तिब्बत के स्वायत्तशसी क्षेत्र के गर्वनर हैं।
नेशनल कांग्रेस की बैठक के अवसर पर मीडिया को संबोधित करने के दौरान दलाई लामा को तिब्बती संस्कृति और परम्परा पर सबक सिखाने का निशचय किया। दलाई लामा को तिब्बती संस्कृति और परम्परा पर सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि दलाई लामा को तिब्बती बौद्ध धर्म और उसके धार्मिक क्रिया कलापों का सम्मान करना चाहिये। तिब्बती बौद्ध धर्म का 1000 साल पुराना इतिहास है और इसके दलाई लामा और पंचेन लामा का अवतार प्रणाली से चयन पिछले कई सौ साल से चला आ रहा है और इसमें किसी भी तरह के संशोधन का अधिकार संभवतः किसी को नहीं है।
दलाई लामा द्वारा अपने राजनैतिक और प्रशासनिक अधिकारों को चुने हुए प्रतिनिधियों को हस्तांतरित करने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चीन के प्रवक्ता ने कहा कि चीन की निर्वासित सरकार का अस्तित्व अवैध है और इसे केवल चीन को बांटने के लिए ही बनाया गया है। चीन की निर्वासित सरकार और लोबसैंग सैंगे को इसका प्रधानमंत्री बनाए जाने पर कटाक्ष करते हुए चीनी प्रवक्ता ने उन्हें आतंकवादी तक कहकर पुकारा क्योंकि दिल्ली विशवविद्यालय में अध्ययन के दौरान वह तिब्बती युवा कांग्रेस के नेता रह चुके हैं। इन प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि चीन तिब्बत को लेकर बनाए जा रही अपनी योजनाओं पर इसके संभावित दुष्परिणामों के कारण काफी परेशन और निराश है। ल्हासा में 1989 के तिब्बती विद्रोह और 1991 की अपनी तिब्बत संबंधी रणनीतिक बैठक के बाद से ही तिब्बत के मामले पर चीन का हमेशा ही दोहरा रूख रहा है। तिब्बत पर अपने नियन्त्रण के साथ ही चीन अपनी बौद्ध धर्म समर्थक छवि बनाने की कोशिश के अंर्तगत अंतर्राष्ट्रीय जगत में तिब्बत को एक बौद्ध पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करने का प्रयास भी करता रहा है। अपनी इसी कोशिश के अंर्तगत चीन और उसमें अपनी सक्रिय सहभागिता सुनिशिचत करता रहा हैं। इसके अलावा भी चीन बौद्ध देशों में बौद्ध धर्म से जुड़ी गतिविधियों को प्रायोजित भी करता रहा हैं। तिब्बत में रहने वाले जीवित लामाओं को लुभाने के साथ ही विदेश स्थित बौद्ध संगठनों से अपने संबंध मधुर बनाने के प्रयास भी चीन की तिब्बत नीति का एक अंग है।
अपनी इसी रणनीति पर काम करते हुए चीन ने पहले ही तिब्बती लामाओं के दो प्रतिष्ठित अवतारों करमापा को 1993 में और पांचेन लामा को 1995 में क्रमशः शुर्फू और सिंघात्से में चुना था। ये अलग बात है कि करमापा ने भारत में शरण मांगी है और 5 साल के गेधून चोकी नियेमा अब तक चीन की हिरासत में हैं। इसके बावजूद चीन आज भी दलाई लामा का विकल्प तालाशने में लगा हुआ है। बीजिंग के नियंत्रण में आज भी दो पांचेन लामा हैं।
आज चीन इस स्थिति में है कि वह जब चाहे तिब्बत के ही दर्जनों जीवित बुद्ध चीनी और अंतर्राष्ट्रीय टेलीविज़न के सामने प्रस्तुत कर सकता है। इसके अलावा चीन जरूरत पड़ने पर अपने ग्राहक देशों से दलाई लामा के अवतार के चीनी संस्करण का अनुमोदन और मान्यता प्राप्त कर सकता है। लेकिन अपनी शक्तियों के हस्तांतरण और उत्तराधिकार प्रणाली में परिवर्तन द्वारा दलाई लामा ने फिलहाल चीन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया हैं।
विजय क्रांति