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चीन के अधीन तिब्बत की कहानी दुख और दमन से भरी रही है। 10वें पंचेन लामा द्वारा 1962 में चीनी नेतृत्व को सौंपी गई 70,000 वर्णों वाली याचिका के अनुसार, पूर्वी तिब्बत में 90 प्रतिशत से अधिक धार्मिक संस्थानों और सांस्कृतिक केंद्रों को नष्ट कर दिया गया है और भिक्षुओं और भिक्षुणियों को विवाह कर घर बसाने और मजदूरी करने के लिए मजबूर कर दिया गया।
यह सारा विध्वंस विनाशकारी सांस्कृतिक क्रांति से पहले हुआ। इस दौरान तिब्बती पठार पर लगभग सभी मठों को नष्ट कर दिया गया, पवित्र ग्रंथों को जला दिया गया और बेशकीमती मूर्तियों को या तो गला दिया गया या काला बाजार में बेचे जाने के लिए चीन ले जाया गया। तिब्बती खानाबदोशों और जबरन एक जगह बसाने और पर्यावरण का जबर्दस्त विनाश अब भी जारी है। कुल मिलाकर धरती का तीसरा ध्रुव तिब्बत संकट में है।
तिब्बत पर कब्जा करने के बाद से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने तिब्बती धर्म, संस्कृति और जीवन जीने के तरीके पर अपने हमलों को कभी नहीं रोका है। यद्यपि सांस्कृतिक क्रांति के साथ ही कई तरह के भौतिक विध्वंस भी रुक गए लेकिन बीजिंग सीसीपी की नीतियों के तहत ही मठों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की घुसपैठों सहित धार्मिक नीतियों के बारे में हर फैसलों में हस्तक्षेप करता रहा है। आज भी जो भिक्षु और भिक्षुणी केवल आध्यात्मिक साधना में ही रत रहना चाहते हैं, उनके लिए वैचारिक शिक्षा ग्रहण करना और सीसीपी के प्रति निष्ठा जताना अनिवार्य है।
बौद्ध धर्म ने तिब्बती सभ्यता में एक मौलिक भूमिका निभाई है। राजा सोंगत्सेन गैम्पो बौद्ध धर्म को सातवीं शताब्दी में भारत से लेकर आए थे। तब से लेकर बौद्ध धर्म आज भी उनके जीवन का केंद्र है। तिब्बतियों की अपने आध्यात्मिक गुरुओं और परम पावन दलाई लामा के प्रति विशेष श्रद्धा है।
तिब्बत पहले एक स्वतंत्र देश था और 1642 से दलाई लामा संस्था का इस देश और यहां लोगों से अभिन्न संबंध रहा है। दलाई लामाओं ने लगातार यहां पर निर्विवाद नेतृत्व प्रदान किया है और विशेष रूप से परमपावन 14वें दलाई लामा अपने महान नेतृत्व और दृष्टिकोण के लिए दुनिया भर के तिब्बतियों के दिलो-दिमाग में एक विशेष स्थान रखते हैं।
हालांकि, बीजिंग उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में मानता है। यह नहीं होना चाहिए। परम पावन की दीर्घकालीन दृष्टि तिब्बती लोगों के लिए कल्याणकारी और बुनियादी स्वतंत्रता रही है। उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत विशेषाधिकार नहीं मांगे हैं और न ही वे चीनी सरकार को परेशान करना चाहते हैं।
फिर भी दलाई लामा पर बीजिंग का हमला लगातार जारी है। पहले वह परम पावन को ‘भिक्षु के वेष में भेड़िया’ और ‘अलगाववादी’ कहता था। और अब वह उन पर धर्म की आड़ में विदेशों में ‘चीन विरोधी गतिविधियों में संलग्न’ रहने का आरोप मढ़ रहा है, जैसा कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने हाल ही में टिप्पणी की थी।
हालांकि, मेरे जैसे किसी व्यक्ति को जो भ्रमित करता है, वह बीजिंग का दृष्टिकोण और तिब्बती नोबेल पुरस्कार विजेता के प्रति उसका विषैला बयान है। एक ओर, चीन सख्ती से परम पावन के खिलाफ बयानबाजी है, वहीं दूसरी ओर उसके पुनर्जन्म को चुनने और नियुक्त करने की नापाक योजना भी बनाता है।
क्या नास्तिक सीसीपी के पास दलाई लामा जैसे धार्मिक हस्ती के पुनर्जन्म जैसे आध्यात्मिक मामलों में दखल देने की कोई वैधता है? इसका उत्तर तिब्बती बौद्धों साधना में ही खोजा जा सकता है। 2012 की शुरुआत में तथाकथित तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के अधिकारियों ने कई हजार तिब्बतियों को दंडित किया, जिनमें कई पूर्व सरकारी कर्मचारियों को हिरासत में लेकर उन्हें ‘पुनरू शिक्षा’ शिविरों में भेज दिया गया था, क्योंकि उन्होंने परम पावन दलाई लामा का प्रवचन सुनने के लिए भारत की यात्रा की थी।
इस साल अगस्त में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में चीनी अधिकारियों ने एक नोटिस जारी किया। इसमें सेवानिवृत्त सरकारी कर्मियों को मठों में जाने, मंदिरों जैसे पवित्र धार्मिक स्थलों की परिक्रमा करने और प्रार्थना या मंत्रों का जाप करने से प्रतिबंधित कर दिया गया। चीन ने तिब्बती छात्रों और उनके माता-पिता को छुट्टियों के दौरान किसी भी धार्मिक गतिविधि में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया है और मठों से युवा भिक्षुओं को जबरन हटा दिया गया है।
बीजिंग ने तिब्बती लोगों को उनकी बुनियादी धार्मिक स्वतंत्रता देने से भी इनकार कर दिया, जबकि यह चीन के संविधान में निहित है।
अगस्त 2007 में चीन ने तथाकथित ‘ऑर्डर नंबर 5’ जारी किया। जो नक केवलतिब्बती धार्मिक गतिविधियों को नियंत्रित करने और कम करने के एक साधन के रूप में है बल्कि यह अंतत लामाओं के चयन और दलाई लामा के पुनर्जन्म को ही नियंत्रित करनेवाला आदेश है। इस आदेश में कहा गया है कि पुनर्जन्म का चयन ‘…विशेष रूप से व्यापक प्रभाव वाला है। इसे अनुमोदन के लिए राज्य परिषद को सूचित किया जाएगा।‘ यह निश्चित तौर पर परम पावन दलाई लामा और उनके आगे के पुनर्जन्म को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लाया गया है।
स्पष्ट रूप से लगता है कि यह बीजिंग की एक कुटिल चाल है। यह परमपावन दलाई लामा के पुनर्जन्म के बारे में खुद के चयन करने का इरादा रखता है जो तिब्बती लोगों की मौलिक धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है।
तिब्बती बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म और उनकी चयन प्रक्रिया पर लंबे समय से चली आ रही परंपरा है। यह हमेशा से उनकी धार्मिक प्रथा का हिस्सा रहा है। एक ऐतिहासिक बयान में परमपावन दलाई लामा ने सितंबर 2011 में अपने पुनर्जन्म पर लिखा था, ‘ध्यान रखें कि परंपरागत प्रक्रिया के माध्यम से चुने गए पुनर्जन्म के अलावा किसी अन्य के द्वारा, चाहे वह पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइन ही क्यों न हो, राजनीतिक तौर पर थोपे गए किसी व्यक्त िको दलाई लामा के रूप में मान्यता या स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए।‘
पिछले अक्टूबर में धर्मशाला में 24 देशों के 340 तिब्बती प्रतिनिधियों की बुलाई गई एक विशेष बैठक में परम पावन के इस बयान का समर्थन करते हुए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया। इसके अलावा, धर्मशाला की अपनी हालिया यात्रा के दौरान अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए यूएस एंबेसेडर ऐट लॉर्ज सैम ब्राउनबैक ने कहा, ‘हम तिब्बत के लोगों के साथ खड़े हैं क्योंकि वे धार्मिकता का सम्मान करने के अधिकार सहित अपनी कालाबाधित परंपराओं को संरक्षित करना चाहते हैं। इसमें तिब्बती बौद्ध नेताओं के पुनर्जन्म के चयन के संबंध में निर्णय करने का अधिकार तभी से दलाई लामा समेत तिब्बती बौद्ध नेताओं और तिब्बत के लोगों के पास है।
तिब्बत सहायता समूह की आठवीं बैठक हाल ही में निर्वासित तिब्बती सरकार के मुख्यालय पर हुई, जिसमें 42 देशों के 180 प्रतिनिधि शामिल हुए। इस बैठक में पुनर्जन्म के मुद्दे पर गहन चर्चा हुई और इसने घोषणा की कि ‘14वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के बारे में किसी भी तरह का निर्णय लेना परम पावन दलाई लामा और दलाई लामा के कार्यालय द्वारा नियुक्त लोगों की अनन्य जिम्मेदारी है।‘
नवंबर के अंत (27-29 नवंबर) में धर्मशाला में तिब्बती बौद्ध नेताओं का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसके दौरान आध्यात्मिक प्रमुखों ने अपने लंबे इतिहास और विशिष्ट तिब्बती परंपरा पर आधारित बौद्ध परंपरा और रीति-रिवाज के अनुरूप इस कार्यक्रम की पवित्रता को बनाए रखने और जारी रखने के तरीकों पर चर्चा की।
इस सम्मेलन में 100 से अधिक आध्यात्मिक नेताओं और विभिन्न तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रतिनिधियों ने भाग लेकर एक सर्वसम्मत विशेष संकल्प को पारित किया। इसमें कहा गया है कि ‘14वें दलाई राम के पुनर्जन्म के तरीके और प्रक्रिया के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार स्वयं परम पावन 14वें दलाई लामा के पास है। यदि राजनीतिक रूप से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार दलाई लामा के लिए उम्मीदवार चुनती है तो तिब्बती लोग उस उम्मीदवार को मान्यता नहीं देंगे और न ही उसका सम्मान करेंगे।‘
तिब्बती आध्यात्मिक गुरुओं का पुनर्जन्म जारी रहेगा। इसी तरह परमपावन दलाई लामा का पुनर्जन्म भी होता रहेगा, जिनके पूर्व भवों ने लगभग चार शताब्दियों तक तिब्बती इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
संकल्प में कहा गया है कि तिब्बती धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने के बजाय चीन को तिब्बतियों को अपनी साधना में रत होने की स्वतंत्रता देनी चाहिए और उन्हें यह तय करने की अनुमति देनी चाहिए कि उनके आध्यात्मिक गुरु कौन होंगे। तिब्बत में बुनियादी अधिकारों में कटौती के साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता में कटौती से केवल तनाव और अस्थिरता पैदा होगी, जिसे रोकने के लिए शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है।
(न्गोदुप दोंगचुंग नई दिल्ली में परम पावन दलाई लामा के प्रतिनिधि हैं।)