पश्चिमी चीन के सिचुआन प्रांत में पुलिस ने उस युवा तिब्बती के परिवार के सदस्यों को हिरासत में ले लिया, जिन्होंने पिछले महीने चीनी शासन के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए आत्मदाह कर लिया था। उस परिवार के एक करीबी सूत्र ने बताया कि उन्हें पूछताछ के लिए रखा गया है।
अब भारत में रह रहे उस व्यक्त िके एक पूर्व पड़ोसी ने गुरुवार को त्थ्। की तिब्बती सेवा को बताया कि ‘आत्मदाह करनेवाले के रिश्तेदारों को कितने समय तक हिरासत में रखा गया था, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। हो सकता है कि उन्हें पहले ही रिहा कर दिया गया हो।‘
सूत्र ने गोपनीयता की शर्त पर कहा कि ‘24 साल के प्रदर्शनकारी योंटन नाम के व्यक्ति ने नगाबा (चीनी, अबा) काउंटी की मेरुमा टाउनशिप में एक धार्मिक सभा के निकट 26 नवंबर को आत्मदाह कर लिया था। घटनास्थल पर ही उनकी मृत्यु हो गई।
उन्होंने कहा, ‘उनके आत्मदाह के दिन उनके परिवार के सदस्यों को पूछताछ के लिए स्थानीय पुलिस स्टेशन में बुलाया गया था। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें कितने समय तक रखा गया और पूछताछ की गई।‘ उन्होंने कहा कि रिश्तेदारों ने पुलिस से योंटेन के अवशेषों को अगले दिन प्राप्त कर लिया था।
सूत्र ने बताया कि 30 नवंबर को योटन के शव का अंतिम संस्कार किया गया और उनकी स्मृति में एक शोक सभा आयोजित की गई।‘ उन्होंने बताया कि 2009 में चीनी कठोर शासन के विरुद्ध अपनी मातृभूमि में तिब्बतियों द्वारा शुरू उग्र विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ में योटन का आत्मदाह 156वीं घटना है। इससे पहले नगाबा में भी दिसंबर 2018 में एक तिब्बती द्रुखो ने आत्मदाह कर लिया था।
सूत्र ने कहा कि क्षेत्र में फोन और ऑनलाइन संचार माध्यमों पर सख्त चीनी नियंत्रणों के कारण ऐसी घटनाओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना कठिन है, और यह ज्ञात नहीं है कि योंटेन ने आत्मदाह करने से पहले अपने इस विरोध कृत्य के कारणों का खुलासा करते हुए कोई लिखित बयान छोड़ा या नहीं।
सूत्रों का कहना है कि न्गाबा के मुख्य शहर के पास स्थित कीर्ति मठ में योटन को दाखिला दिया गया था। यह मठ हाल के वर्षों में भिक्षुओं, पूर्व भिक्षुओं और अन्य तिब्बतियों द्वारा तिब्बती स्वतंत्रता और निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की वापसी की मांग को लेकर आत्मदाह जैसे विरोध-प्रदर्शनों का माहौल बना रहा है।
’सीधी प्रतिक्रिया’
29 नवंबर को एक बयान में तिब्बत की भारत स्थित निर्वासित संसद ने योंटेन के विरोध पर ध्यान देने की चीन सरकार से मांग की और लगभग एक साल बाद किसी तिब्बती द्वारा किए गए पहले आत्मदाह को तिब्बती क्षेत्रों में बीजिंग की दमनकारी नीतियों के रूप में वर्णित करते हुए इसे बंद करने का आह्वान किया।
बाउल्डर में कोलोराडो विश्वविद्यालय में एक तिब्बती विद्वान कैरोल मैक्ग्रान ने रेडियो फ्री एशिया को एक साक्षात्कार में कहा, ‘तिब्बतियों द्वारा आत्मदाह प्रदर्शन तिब्बत में चीनी उत्पीड़न के खिलाफ ‘सीधी प्रतिक्रिया’ है।
उन्होंने कहा, ‘दलाई लामा के निर्वासन में रहने के बाद से तिब्बत के अंदर और बाहर अनेक तिब्बतियों ने निर्णय लिया है कि चीन के उत्पीड़न के खिलाफ केवल अपने राजनीतिक विचारों को व्यक्त करने भर से कुछ होनेवाला नहीं है। बल्कि विरोध के लिए कुछ कठोर कदम उठाने की भी कोशिश करने की जरूरत है। इसलिए ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे उन्हें विरोध का एहसास हो और हो सकता है अन्य तिब्बतियों को भी समुदाय के तौर पर लाभ मिले।‘
भारत के धर्मशाला में पिछले सप्ताह आयोजित शीर्ष तिब्बती धर्मगुरुओं के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए दलाई लामा ने कहा कि वह उन 156 तिब्बतियों के साहस को सलाम करते हैं, जिन्होंने दुनिया को याद दिलाने (तिब्बतियों के लोगों की दुर्दशा) के प्रयास में खुद को जला लिया है।‘
दलाई लामा ने कहा, ‘उन्होंने खुद को जलाकर बलिदान दिया और किसी और को नुकसान नहीं पहुंचाया।‘ यह वास्तव में आश्चर्यजनक है।
बीजिंग द्वारा शासित तिब्बती क्षेत्रों के अंदर से भेजी गई रिपोर्टों में तिब्बतियों का कहना है कि चीनी अधिकारी नियमित रूप से अपनी राजनीतिक गतिविधियों और जातीय और धार्मिक पहचान की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करते हैं और तिब्बतियों को उत्पीड़न, यातना, कारावास और असाधारण हत्याएं झेलनी पड़ती है।