जनसत्ता, 10 मई 2013
वाशिंगटन। तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेय ने कहा है कि भारत और चीन के आमने-सामने आने की घटनाएं बढ़ रही हैं क्योंकि दोनों के बीच तिब्बत अब ‘बफर जोन’ के रूप में नहीं रहा।
भारत के लिए रणनीतिक हिमालयी क्षेत्र के महत्व का उल्लेख करते हुए सांगेय ने कहा, ‘‘1940 और 1930 के दशक में कभी घुसपैठ नहीं होती थी क्योंकि भारत और चीन एक दूसरे से सटे नहीं थे। तिब्बत ने हमेशा से बफर जोन के रूप में काम किया। अब दोनों देशों आमने-सामने आ रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश आमने-सामने आ रहे हैं क्योंकि तिब्बत अब बफर जोन नहीं रहा।’’ तिब्बती प्रधानमंत्री ने कहा कि भू-राजनीतिक रूप से तिब्बत बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने चीन के सैनिकों की ओर से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ का हवाला दिया। सांगेय ने वाशिंगटन में कहा कि तिब्बती मुद्दे का समाधान नहीं होने के कारण भारत और चीन के बीच तिब्बत बफर जोन नहीं रहा।
सांगेय ने कहा कि उन्हें इसकी कोई शिकायत या अफसोस नहीं है, लेकिन काश भारत तिब्बत के लिए अधिक कर सका होता। इस संदर्भ में उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा।
उन्होंने बीते बुधवार को यहां कहा, ‘‘तिब्बत काफी हद तक भारत की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। भारत और तिब्बत के बीच 4,000 से 5,000 किलोमीटर की सीमा है। चीन हमेशा से खतरा रहा है और इसी वजह सीमा विवाद भी है। 1949 से पहले सीमा पर शायद ही एक पुलिसकर्मी तैनात था। उस वक्त सीमा पर किसी जरूरत नहीं थी।’’
सांगेय ने कहा, ‘‘अब सैन्य ढांचा खड़ा किया जा रहा है और भारत का अरबों डॉलर सीमा सुरक्षा पर खर्च होता है जो पैसा मानवीय और शैक्षणिक परियोजनाओं पर खर्च हो सकता था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘चीन में चीनी सरकार कहती है कि तिब्बत उनका एक मुख्य मुद्दा है। भारत को भी कहना चाहिए कि तिब्बत उसके लिए मुख्य मुद्दा है।’’ लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित तिब्बती नेता सांगेय ने कहा, ‘‘मैं भारत में पैदा हुआ और पला-बढ़ा। भारत ने तिब्बतियों के लिए सबसे ज्यादा किया है क्योंकि सबसे अधिक तिब्बती भारत में हैं। तिब्बती प्रशासन भी भारत में हैं। हम हमेशा कहते हैं कि भारत हमारा मेजबान है और हम उसके मेहमान हैं।’’