देश बंधु, 3 फरवरी, 2013
नई दिल्ली | तिब्बतियों के निवार्चित नेता, लोबसांग सांगय ने कहा है कि तिब्बतियों ने अपनी स्वायत्तता के लिए विश्वभर में 50 सालों तक लोकतांत्रिक और अहिंसक तरीके से संघर्ष किया, लेकिन उन्हें पर्याप्त अंतर्राष्ट्रीय सहयोग नहीं मिला। ‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ फॉरेन एफेयर्स कॉरेस्पोंडेंट’ द्वारा आयोजित पहले वार्षिक व्याख्यान के दौरान सांगय ने शनिवार को कहा कि तिब्बत, विश्व में लोकतंत्र की एक प्रयोगशाला है।
उन्होंने कहा, “यदि यहां लोकतंत्र सफल होता है, तो यह उपेक्षित समूहों और शरणार्थी समूहों के लिए अच्छा उदाहरण होगा।” सांगय ने कहा कि सीरिया में बशर-अल-असद सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रही ताकतों को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का एक वर्ग हीरो के रूप में प्रस्तुत कर रही है। उन्होंने कहा, “हमें वैसा समर्थन क्यों नहीं मिला।” उन्होंने कहा, “यह अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की एक परीक्षा है। हम 50 सालों से लोकतांत्रिक बने हुए हैं। यदि यह तरीका सही है, तो हमें भी समर्थन मिलना चाहिए था। अगर अहिंसा अच्छी चीज है, तो हमें समर्थन मिलना चाहिए था।”
सांगय ने कहा कि वह चाहते हैं कि इस मुद्दे के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी चीन पर बातचीत के लिए दबाव बनाए। सांगय के मुताबिक तिब्बत आंदोलन काफी हदतक भारत में तैयार हुआ है और इसका नेतृत्व भारत में पैदा हुए तिब्बती नेता कर रहे हैं। सांगय ने भारत के साथ तिब्बतियों का रिश्ता गुरु और चेले का बताया, और उन्होंने कहा, “यदि चेला विफल होता है, तो उसका असर गुरु पर पड़ेगा।” हारवर्ड शिक्षित सांगय ने कहा, “स्वतंत्रता संघर्ष का मुख्य पहलू है एक आवाज, एकता और एक नेता। लोकतंत्र में आपके पास विविधता, अभिव्यक्ति की आजादी और विपक्षी नेताओं का होना जरुरी होता है। दोनों परस्पर एक-दूसरे के विपरीत हैं।”