hindustantimes / तिब्बती स्वतंत्रता सेनानी और लेखक तेनज़िन त्सुंडु ने कहा कि हिमालय क्षेत्र में १२७ दिनों में लगभग २०,००० किलोमीटर की दूरी तय करने के दौरान उन्होंने महसूस किया कि सीमावर्ती क्षेत्रों के आम लोगों को चीन की विस्तारवादी नीतियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है या बहुत कम जानकारी है।
तिब्बती स्वतंत्रता कार्यकर्ता और लेखक तेनज़िन त्सुंडु ने तिब्बत में चीनी कब्जे के ७०वर्षों के बारे में जागरुकता बढ़ाने और भारत के लिए सुरक्षा खतरे के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए भारत के एक केंद्र शासित प्रदेश और चार हिमालयी राज्यों की यात्रा करते हुए अपनी महायात्रा पूरी की है।
त्सुंडु १४ अगस्त को ‘हिमालय की सैर’ अभियान के लिए धर्मशाला से निकले थे। उन्होंने लेह से अपनी यात्रा शुरू की, स्थानीय परिवहन का उपयोग करके हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल की यात्रा की और बुधवार को धर्मशाला लौटने से पहले वह दूरदराज के ज्यादातर गांवों, खानाबदोश क्षेत्रों और सीमावर्ती इलाकों से गुजरे।
४६ वर्षीय कार्यकर्ता ने कहा कि इस यात्रा के दौरान १२७ दिनों में लगभग २०,००० किलोमीटर की दूरी तय करते हुए उन्होंने महसूस किया कि सीमावर्ती क्षेत्रों के आम लोगों को चीन की विस्तारवादी नीतियों और सीमाओं के पार इसकी वर्तमान गतिविधियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है या है भी तो बहुत कम। उन्होंने कहा, ‘वे २०२० में भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच गलवान घाटी में संघर्ष से स्तब्ध रह गए थे, जिसमें २० भारतीय सैनिक मारे गए थे।’
स्वतंत्रता सेनानी अपने साथ एक प्रोजेक्टर, साउंड बॉक्स और बेडशीट स्क्रीन लेकर चल रहे थे, जिसका इस्तेमाल वह फिल्म ‘एस्केप ऑफ द दलाई लामा’ की लगभग १०० बार स्क्रीनिंग के लिए करते रहे। उन्होंने कहा कि ‘यह फिल्म तिब्बत पर चीनी कब्जे और हिमालय की सीमाओं पर चीनी सैन्य दबाव का पूरा विवरण प्रस्तुत करती है।’