०६ सितंबर २०२२
देहरादून। निर्वासित तिब्बती संसद के कार्यक्रम के अनुसार, १७वीं निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्य- यूडोन औकात्सांग और खेंपो जम्फेल तेनज़िन २४ अगस्त से ०५ सितंबर, २०२२ तक आधिकारिक रूप से उत्तराखंड में तिब्बती बस्तियों के दौरेपर रहे। उन्होंने आज ०६ सितंबर कोनैनीताल और डिकीलिंग तिब्बती बस्तियों के दौरे के साथ उत्तराखंड की अपनी आधिकारिक यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न कर ली है। अपनी यात्रा के अंतिम चरण में सांसदों ने उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह से भी शिष्टाचार भेंट की और भारत-तिब्बत समन्वय संघ (बीटीएसएस) और भारत-तिब्बत सहयोग मंच (बीटीएसएम) के अध्यक्षों और सदस्यों के साथ बैठकें की।
सांसद यूडन औकात्संग३० अगस्त कोनैनीताल के लिए रवाना हुए थे और वहां तिब्बती बाजार और मठ का दौरा किया। ०१सितंबर को डिकीलिंग तिब्बती बस्ती के लिए रवाना होने से पहले सांसद ने वहां रहने वाले तिब्बतियों से भी मुलाकात और बातचीत की।
डिकीलिंग पहुंचने परसांसद यूडोन औकात्संग के साथ सांसद खेंपो जम्फेल तेनज़िन भी शामिल हो गए, जो अपने खराब स्वास्थ्य के कारण नैनीताल जाने में असमर्थ थे। ये लोग यहां६२वें तिब्बती लोकतंत्र दिवस के आधिकारिक उत्सव में शामिल हुए, जिसमें सांसद खेंपो जम्फेल तेनज़िन ने तिब्बती लोकतंत्र के विकास, निर्वासित तिब्बती संसद के कामकाज और परम पावन दलाई लामा की उपलब्धियों के बारे में बातचीत की। जबकि सांसद यूडोन औकात्सांग ने बदलती अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक गतिविधियां और चीन द्वारा तिब्बत में तिब्बतियों पर थोपी गई क्रूर नीतियों पर बात की। इसके बाद उन्होंने जनता द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब दिया।
उस दिन बाद मेंसांसदों ने भारतीय सेना के पूर्व उप प्रमुख रह चुके उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंहसे शिष्टाचार भेंट की और तिब्बती संसद की ओर से उन्हें एक स्मारिका भेंट की। उन्होंने ६० से अधिक वर्षों से तिब्बतियों को भारत के अटूट समर्थन के लिए राज्यपाल का आभार व्यक्त किया। तिब्बती सांसदों ने २०१४ की तिब्बती पुनर्वास नीति के कार्यान्वयन के लिए भी राज्यपाल से आग्रह किया। इस पर राज्यपाल ने जो कुछ हो सकता है, वह करने का आश्वासन दिया और तिब्बती सांसदों के साथ संपर्क फोन नंबरों का आदान-प्रदान किया।
अगले दिन, सांसदों ने देहरादून में मठों, संगठनों और गैर सरकारी संगठनों का दौरा किया और स्थानीय नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों के साथ आंतरिक बैठक की। इसके बाद संसद सदस्यों ने एक बैठक में तिब्बत के मुद्दे पर गहन चर्चा की, जिसमें प्रो. सुरेखा डंगवाल (दून विश्वविद्यालय, देहरादून की कुलपति), प्रो. दिनेश शास्त्री (संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति), प्रो. पी. डी. जुयाल (भारत तिब्बत समन्वय संघ-बीटीएसएस- के अध्यक्ष), प्रो. विजय कौल, कर्नल थपग्याल (सेवानिवृत्त), डॉ. सूरज कुमार प्राचा, डॉ. अरुण मिश्रा, डॉ. पुरोहित, श्री मनोज गहटोरी, श्री जी.एस. नेगी (देहरादून बीटीएसएस के अध्यक्ष), कमांडेंट हिमांशु (सेवानिवृत्त), श्री सेमवाल, श्री आशीष सेमवाल, श्री रतूड़ी, देहरादून तिब्बती महिला संघ और दून विश्वविद्यालय में तिब्बती सेटलमेंट कार्यालय के कर्मचारी उपस्थित रहे। बैठक में सांसद खेंपो जम्फेल तेनज़िन ने सदियों से साझा संस्कृति, धर्म और भाषा के साथ भारत और तिब्बत के बीच विशेष संबंधों पर बात की। जबकि सांसद यूडोन औकात्सांग ने एक प्रस्तुति के साथ तिब्बत में हो रहे पर्यावरण क्षरण को समझाया। बैठक मेंउपरोक्त कुलपतियों और प्रोफेसरों द्वारा तिब्बत पर बातचीत के बादइस महीने से दून विश्वविद्यालय और संस्कृत विश्वविद्यालय में तिब्बती भाषा के अध्ययन के अवसर प्रदान करने का निर्णय लिया गया।
०४ सितंबर कोतिब्बती सांसदों नेउत्तराखंड भारत-तिब्बत सहयोग मंच (बीटीएसएम) के अध्यक्ष श्री अनिल चौधरी और बीटीएसएम के सदस्यों से मुलाकात की और तिब्बत के मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की।