देशबंधु, 16 सितंबर 2013
धर्मशाला | चीन की सरकार ने तिब्बती कलाकारों व बुद्धिजीवियों पर अपनी कार्रवाई तेज कर दी है। यह उनकी भाषा और संस्कृति को कुचलने की एक चाल है। यह कहना है यहां रह रहे निर्वासित तिब्बतियों का।
वे कहते हैं कि चीनी अधिकारियों ने उन गीतों पर भी प्रतिबंधित लगा दिया है जो या तो आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की प्रशस्ति में लिखी गई है या उनकी आकांक्षाओं को मुखरित करते हैं। धर्मशाला स्थित ह्यूमन राट्स वाचडॉग तिब्बतन सेंटर फॉर ह्यूमन राट्स एंड डेमोक्रेसी (टीसीएचआरडी) ने आईएएनएस को बताया कि हाल ही में तिब्बती गायक शावो ताशी चीनी अधिकारियों की मनमानी के शिकार हुए हैं। उन्हें मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया और सजा सुनाई गई। सजा काट रहे ताशी को पारंपरिक तिब्बती संगीत में गहरी दिलचस्पी रखने के लिए जाना जाता है।
इसके अलावा मशहूर तिब्बती लेखक गैंगक्ये ड्रपा क्याब को भी राजनीतिक गतिविधियां चलाने के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। वहीं, ‘समकालीन तिब्बत की युवा कोयल’ के नाम से जाने जाने वाले गायक केलसैंग यारफेल को भी पिछले माह एक संगीत कार्यक्रम में ‘सत्ता परिवर्तन’ का एक गाना गाने पर जेल में डाल दिया गया था। तिब्बती संगीत पुरस्कार से सम्मानित निर्माता-निर्देशक लोबसांग वांग्याल ने आईएएनएस को बताया, “हमारे पास रपट है कि अभी तक हजारों लोगों को हवालात में डाला जा चुका है। इनमें से अधिकांश को अज्ञात जगहों पर रखा गया है।” वांग्याल के मुताबिक, निर्वासन के बावजूद तिब्बती लोग कला और मीडिया का अधिकाधिक उपयोग कर आजाद होने की अपनी इच्छाओं को व्यक्त कर चुके हैं। उन्होंने कहा, “यूट्यूब, फेसबुक और विकीपीडिया जैसी वेबसाट्स उनकी सक्रियता और जागरूकता का प्रचार करने के उनके प्रमुख औजार हैं।” वांग्याल स्वयं ‘सिंग फॉर तिब्बत’ सरीखे विविध कला आयोजनों के जरिए साथी तिब्बतियों को आश्वस्त कर चुके हैं कि तिब्बत के दुखों का अंत होगा।
तिब्बत के निर्वासित प्रधानमंत्री लोबसांग सांगे ने आईएएनएस को बताया, “पेमा त्रिनले और चाकदोर जैसे गायकों द्वारा गानों में व्यक्त किए गए दर्द को हम निर्वासित तिब्बती महसूस कर सकते हैं।”वर्तमान में करीब 140,000 तिब्बती निर्वासित हैं। इनमें से 100,000 भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं। तिब्बत में छह लाख से अधिक लोग रहते हैं। निवार्सित सरकार को किसी भी देश से मान्यता नहीं है।