savetibet.org, इंटरनेशनल कैंपेन फाॅर तिब्बत
ऐसे समय में जब तिब्बती लोग तिब्बती विद्रोह की 61 वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहे थे, चीनी सरकार ने सैन्य बल का एक विशाल प्रदर्शन कर तिब्बतियों के इस हिमालयी मातृभूमि पर अपने अटूट वर्चस्व को स्पष्ट करने का काम किया।
6 मार्च को तिब्बत की राजधानी ल्हासा के मध्य में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के “कंबैट रेडी” दस्ते के साथ पीपुल्स आर्म्ड पॉलिसी के अग्निशामकों और अधिकारियों को लेकर संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किया गया।
इस राजनीतिक रूप से संवेदनशील समय में यह सैन्य अभ्यास लगभग एक अनुष्ठान बन कर रह गया है, क्योंकि इसे लगभग खाली सड़कों पर आयोजित किया गया था। शहर में चीन का राजनीतिक लॉकडाउन पहले से लागू है जो इस साल कोरोना वायरस (कोविड-19) आपातकाल के कारण और भी बदतर हो गया है।
मार्च की वर्षगांठ
10 मार्च, 1959 को तिब्बतियों ने चीनी सैनिकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विदोह कर दिया क्योंकि चीन ने उनके देश पर हमला किया था और जाहिर तौर पर उनके आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को नुकसान पहुंचाने की योजना बना रहे थे।
कुछ दिनों के भीतर ही दलाई लामा निर्वासन में भागने को मजबूर कर दिए गए और ऐतिहासिक रूप से स्वतंत्र देश तिब्बत में आधिकारिक तौर पर चीनी शासन की शुरुआत हो गई।
2008 के बीजिंग ओलंपिक के समय तिब्बतियों ने मार्च के महीने में फिर से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया। इसके कारण तिब्बतियों पर भीषण दमन चक्र शुरू हुआ जो पिछले 12 वर्षों में बद से बदतर ही होता गया है।
तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में विशेष कर ल्हासा और पश्चिमी और मध्य तिब्बत के अधिकांश क्षेत्रों में इस वर्ष के सैन्य अभ्यास को चीन की सरकारी मीडिया ने “स्थिरता की संवेदनशील अवधि” की संज्ञा दी है।
तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के एक शहर नागचू (चीनीरू नाकू) में, स्वायत्त क्षेत्र पार्टी समिति की स्थायी समिति के सदस्य वांग वेदोंग ने एक बैठक में कहा, “मार्च में हमारा जिला स्थिरता के एक संवेदनशील दौर में पहुंच गया है।”
स्थिरता को बनाए रखना
चीन की सरकारी मीडिया में प्रसारित सैन्य अभ्यास की तस्वीरें और फुटेज चीन के “स्थिरता को बनाए रखने” के तंत्र को दर्शाती हैं। असल में यह तिब्बत में असंतोष को दबाने और उस पर नियंत्रण कठोर करने की सांकेतिक शब्दावली है। ये तस्वीरें इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि किस तरह से चीन ने उस तिब्बत में इतनी बड़ी संख्या में सैन्य बल का बेजा इस्तेमाल किया है, जहां की आबादी पहले से ही विरल है और जहां कोई हिंसक विद्रोह नहीं है। जहां तक तिब्बती प्रतिरोध का सवाल है, तो वह काफी हद तक अहिंसक रहा है।
एक सरकारी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, “विभागों और अन्य एजेंसियों के पास सामाजिक स्थिरता बनाए रखने के लिए एक मजबूत संयुक्त बल है और उन्हें हिंसक आतंकवादी अपराधों पर नकेल कसने का पूरा अधिकार मिला हुआ है।”
तस्वीरों में ल्हासा में इंटर कांटिनेंटल होटल के बाहर कुछ सैनिकों को देखा जा सकता है। इंटर कांटिनेंटल का दूसरा दरवाजा ल्हासा, गुत्सा का सबसे कुख्यात यातना केंद्र है, जिसमें तिब्बती भिक्षुओं, भिक्षुणियों और आम नागरिकों को कठोर यातनाएं दी जाती हैं।
स्थिरता को बनाए रखने की आक्रामकता पर पूरे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में जोर दिया जा रहा है, जिसमें शिगात्से (चीनीरू रिक्जे) और निंगेट्री (चीनीरू लिनझी) भी शामिल हैं, जो भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य की सीमा से लगती है। यहां पर भारी सैन्य जमाव किया गया है।
10 मार्च की सालगिरह से एक दिन पहले, ल्हासा में राष्ट्रीय सुरक्षा कमान ने क्षेत्र में सुरक्षा और सुरक्षा कार्य के अगले चरण की की व्यवस्था को लेकर एक वीडियो बैठक की थी।