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गेंदुन दपाका को २०१५ में ‘अलगाववाद उकसाने’ के आरोप में मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया था
सूत्रों ने फ्री तिब्बत को पुष्टि की है कि २०१५ में थांगकोर सोकत्सांग मठ से मनमाने ढंग से गिरफ्तार किए गए तिब्बती भिक्षुओं में से एक को ‘अलगाववाद उकसाने’ के आरोप में पांच साल की जेल की सजा काटने के बाद रिहा कर दिया गया है।
४५ वर्षीय गेंदुन दपाका रिहा होने के बाद अगस्त २०२१ में अपने घर लौट आए, लेकिन तब से खराब स्वास्थ्य के कारण अस्पताल में भर्ती हैं। संचार माध्यमों पर लगे कठोर प्रतिबंधों के कारण उनकी स्थिति के बारे में और जानकारी प्राप्त करना असंभव हो गया है।
रिहाई के बावजूद गेंदुन दपाका की स्वतंत्रता सशर्त है। अनिश्चितकालीन पैरोल पर उन्हें हर महीने पुलिस स्टेशन में हाजिरी लगाने की आवश्यकता होती है और वह और उसका परिवार दोनों सरकारी निगरानी के अधीन हैं।
२४ अगस्त २०१५ को चीनी सशस्त्र पुलिस ने थांगकोर सोक्त्सांग मठ, न्गाबा पर छापा मारकर गेंदुन दपाका और लोबसंग शेरब को कमरे से जबरन हिरासत में ले लिया था।
एक साल से अधिक समय तक हिरासत में रहने के बाद दोनों भिक्षुओं को ‘अलगाववाद उकसाने’ और ‘निर्वासित तिब्बतियों को जानकारी लीक करने’ के आरोप में गुप्त मुकदमे में सजा सुनाई गई थी। इस जोड़ी को क्रमशः पांच और चार साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। सुनवाई के दौरान न तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत आवश्यक कानूनी मदद दी गई और न ही उन्हें अपना बचाव करने का अवसर दिया गया।
गुप्त रूप से चली सुनवाई में इन भिक्षुओं के परिवार के सदस्यों में से किसी को भी उन्हें देखने की अनुमति नहीं थी और जो पर्यवेक्षक उपस्थित हुए थे, उनकी कड़ी जांच की गई थी।
उन पर जिस कथित अलगाववाद को उकसाने का आरोप लगाया गया था, वह असल में २०१५ में तिब्बती खानाबदोशों द्वारा आयोजित शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन था। भर्मा गांव, न्गाबा में सरकारी भूमि जब्ती के विरोध में आयोजित विरोध-प्रदर्शन में शामिल होने का आरोप इन दोनों भिक्षुओं पर नहीं लगाया गया था। बल्कि इन पर आरोप यह था कि इन्होंने बाहरी लोगों को इन विरोध-प्रदर्शनों की जानकारी लीक की है।
ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण के अधिक अनुकूल गांवों के निर्माण के उद्देश्य से २०१० में सरकारी भूमि अधिग्रहित की गई थी। इससे ४०० एकड़ जमीन और २० परिवारों के घर इसके दायरे में आ गए और उन्हें विस्थापित होना पड़ा था। हालांकि, बाद में इन योजनाओं को छोड़ दिया गया था। लेकिन जमीन उनके मूल निवासियों के सौंपने की बजाय चीनी अधिकारी निजी निगमों को भूमि पट्टे पर दे रहे हैं।
सूचना Tibet Watch से मिली।