निर्वासित तिब्बत सरकार, जो कि व्यवहार में तिब्बतियों की लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार है, के सिक्योंग पेंपा छेरिंग के संदेश में मध्यममार्ग के आधार पर चीन सरकार के साथ फिर वार्ता के प्रारंभ की मांग को अन्तरराश्ट्रीय समर्थन बढ़ते जाना उत्साहवर्धक है। तिब्बती जनक्रांति दिवस (१० मार्च,२०२२) पर आयोजित समारोह में सरकार के साथ परम पावन दलाई लामा तथा निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता पुनः प्रारम्भ कराने की मांग प्रशंसनीय है। तिब्बत समस्या का शांतिपूर्ण एवं सर्वस्वीकार्य समाधान पारस्परिक संवाद से ही होगा। इस वार्ता का आधार हो “मध्यम मार्ग” नीति। इस नीति के अनुसार चीन सरकार अपनी भौगोलिक एकता-अखंडता एवं संप्रभुता का संरक्षण करते हुए तिब्बत को ”वास्तविक स्वायत्तता“ प्रदान करे। इससे तिब्बतियों को चीन के अधीन स्वयशसन का अधिकार मिल जायेगा। तिब्बत की वैदेशिक तथा प्रतिरक्षा व्यवस्था चीन सरकार संभालेगी। कृशि, शिक्षा आदि अन्य विशय तिब्बतियों को सौंपे जायेंगे। यह मध्यम मार्ग नीति चीन के संविधान और राश्ट्रीयता कानून के अनुकूल है। दलाई लामा और निर्वासित तिब्बत सरकार तिब्बत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग छोड़कर सिर्फ वास्तविक स्वायत्तता के लिए संघर्शषील हैं। उनका मत है कि तिब्बत की पहचान बचाने के लिए एकमात्र उपाय यही है।
चीन के वुहान से विश्वभर में फैली कोरोना महामारी में थोड़ी कमी आने के बाद तिब्बती जनक्रांति दिवस का सार्वजनिक आयोजन दलाई लामा के हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला स्थित मंदिर- प्रागण में संभव हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद से चेक गणराज्य की सीनेट के उपसभापति ने तिब्बतियों एवं तिब्बत समर्थकों को आष्वस्त किया कि उनका देश चीनी दबाव के बावजूद अपना सहयोग जारी रखेगा। वे यही बताने चेक गणराज्य से धर्मशाला आये हैं। कार्यक्रम के विषेश अतिथि एवं राज्य सभा सांसद अमरेंद्रधारी सिंह की उपस्थिति से पुनः प्रमाणित हो गया कि तिब्बत का सवाल तिब्बत के पड़ोसी भारतीयों का सवाल बन चुका हैं।
विश्व जनमत का चीनी हठधर्मिता तथा तिब्बत में जारी दमन के विरोध में प्रभावी होना चीन के लिये नुकसानदेह है। तिब्बत में चीन की अमानवीय दमनकारी नीति का ही परिणाम है कि गत कुछ वर्शों में ही डेढ़ सौ से ज्यादा तिब्बती आंदोलनकारी अपने हाथों अपने ही शरीर में आग लगाकर आत्मदाह कर चुके। मार्च २०२२ में भी प्रसिद्ध युवा तिब्बती गायक २५ वर्शीय छेवांग नोर्बू ने भी तिब्बत में दलाई लामा तथा लोकतंत्र की वापसी की मांग करते हुए आत्मदाह कर लिया। शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तिब्बती आंदोलनकारियों के आत्मबलिदान के बाद चीन सरकार उनके परिजनों को प्रताड़ित कर रही है तथा उन्हें जेल भेज रही है। दलाई लामा, निर्वासित तिब्बत सरकार तथा तिब्बत समर्थकों की लगातार अपील के बावजूद तिब्बत में आत्मदाह की घटनायें चीनी अत्याचार के प्रमाण हैं।
तिब्बत में मानवाधिकारों के संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधन एवं पर्यावरण की सुरक्षा के संदर्भ में जारी तिब्बतन एडवोकेसी कैम्पेन के परिणामस्वरूप विष्वस्तर पर चीन बेनकाब हो चुका है। तिब्बती सांसद भारत सहित विभिन्न देशो में उनके जनप्रतिनिधियों, विशेषज्ञों, मीडियाकर्मियों, नीतिनिर्माताओं, अधिकारियों तथा जनता को तिब्बत की दुर्दशा से अवगत करा रहे हैं। इस कैम्पेन से तिब्बत में चीनी साज़िश का पर्दाफास हो चुका है। तिब्बत में सुनियोजित चीनी वर्चस्व के कारण तिब्बती अल्पसंख्यक होकर चीनियों के गुलाम और मजदूर बन गये। तिब्बत स्थित बौद्ध स्थल बर्बाद हो गये। तिब्बतियों को पूजा-पाठ तथा दलाई लामा की तस्वीर रखने से भी वंचित होना पड़ा है। इस संकटपूर्ण स्थिति में भी तिब्बती जनक्रांति दिवस के अवसर पर विश्व के अनेक देशो में कई कार्यक्रमों के सफल आयोजन से स्पश्ट है कि संघर्श में विष्वसमुदाय तिब्बतियों के साथ है। भारत में चीनी दूतावास के समक्ष विरोध प्रर्दशन हुआ। व्याख्यान, सम्मेलन, अनशन आदि द्वारा भारतीय तिब्बत समर्थकों ने भी संकेत दे दिया कि भारतीय जनता चीनी अत्याचार के विरोध में एकजुट है। दलाई लामा भारत को तिब्बत का गुरु तथा तिब्बत को भारत का चेला कहते हैं, क्योंकि भारत से ही बौद्ध दर्शन तिब्बत गया था। इस प्रकार तिब्बत पर संकट भारत के लिये खतरा है।
तिब्बत पर अवैध चीनी आधिपत्य का ही दुश्परिणाम है कि भारत की शांति, सुरक्षा, समृद्धि और स्वाभिमान को चीन से खतरा है। स्वतंत्र तिब्बत को हड़पने के बाद साम्राज्यवादी चीन अपने अन्य पड़ोसी देषों के भू-भाग कब्जाने में लगा है। चीन की दीवार ही चीन की भौगोलिक सीमा है। इसके बाहर सब अवैध कब्जा है। वर्तमान भारत सरकार चीन को सटीक जवाब दे रही है। ऐसा करना जरूरी है। चीन के साथ पारस्परिक वार्ता में भारत सरकार तिब्बत के सवाल को अवष्य उठाये। भारत की शांति, सुरक्षा, समृद्धि और स्वाभिमान के लिये यह जरूरी है।
खुषी की बात है कि कोरोना महामारी के बाद दलाई लामा ने पहली बार मार्च २०२२ की पूर्णिमा को सार्वजनिक दर्शन-प्रवचन दिये हैं। उनकी प्रेरणा-प्रोत्साहन-आशीर्वाद से तिब्बती संघर्श अहिंसक एवं शांतिपूर्ण है। उन्होंने अपने आप को पूर्णतः स्वस्थ बताया तथा आष्वस्त किया कि वे सौ वर्श से अधिक जीवित रहेंगे। नोबल शांति पुरस्कार तथा विभिन्न देशो के सर्वोच्च पुरस्कारों और सम्मानों से अलंकृत दलाई लामा को उपनिवेषवादी चीन सरकार विघटनकारी एवं आतंककारी समझती है। वह उनके पुनर्जन्म और उत्तराधिकारी की चयन-प्रकिया के संबंध में पूर्णतः अस्वीकार्य अफवाहें फैलाती है।