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चीन के वुहान से चली कोरोना महामारी ने विश्व के सभी देशों को पूरी तरह झकझोर दिया है। संसार की सभी महत्वपूर्ण गतिविधियों एवं कार्यक्रमों को इसने अव्यवस्थित कर रखा है। कोरोना नामक विषाणु के संक्रमण से बचने के लिए लोग अपने परिवार में भी 2 फीट की दूरी रखने लगे हैं। भीड़ वाले सारे कार्यक्रम बंद हैं। सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक है। इसी प्रतिकूल वातावरण में गत 10 मार्च 2020 को तिब्बती जनक्रांति दिवस की 61वीं वर्षगाँठ विभिन्न देशों में मनाई गई। इस बार सार्वजनिक रूप से रैलियाँ नहीं निकलीं और विरोध प्रदर्शन भी नहीं हुए। इसके बावजूद विभिन्न देशों में तिब्बतियों एवं तिब्बत समर्थकों ने तिब्बती जनक्रांति दिवस के अवसर पर अपने संघर्ष के संकल्प को फिर से दोहराया है।
तिब्बती जनक्रांति दिवस के अवसर पर हिमाचल प्रदेश स्थित धर्मशाला के मैक्लोडगंज में आयोजित कार्यक्रम में चेक गणराज्य के दो सांसदों ने स्पष्ट शब्दों में मांग की कि चीन सरकार तिब्बत समस्या का शीघ्र हल निकाले। उन्होंने विश्वास दिलाया कि चेक गणराज्य तिब्बती संघर्ष में सदैव साथ रहेगा। मैक्लोडगंज का कार्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी मैक्लोडगंज में परमपावन दलाई लामा का निवास है। इसी में निर्वासित तिब्बत सरकार का मुख्यालय है जो कि लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार है। इस कार्यक्रम में चेक गणराज्य के सांसदों ने स्पष्ट किया कि तिब्बत पर चीन का नियंत्रण अवैध है। तिब्बत पहले भारत एवं चीन के बीच एक स्वतंत्र देश था। विश्व के अन्य देशों में भी तिब्बती जनक्रांति दिवस के अमर शहीदों को याद किया गया और उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए संकल्प लिया गया कि तिब्बत में चीनी अत्याचार को समाप्त करने के लिए और भी व्यवस्थित रूप से शांतिपूर्ण एवं अहिंसक आंदोलन को संचालित किया जाएगा।
चीन सरकार को तिब्बती जनक्रांति दिवस के स्पष्ट संदेश की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। परमपावन दलाई लामा, निर्वासित तिब्बती सरकार तथा तिब्बती आंदोलनकारी तिब्बत की पूर्ण आजादी की मांग छोड़कर सिर्फ वास्तविक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। प्रतिरक्षा और वैदेशिक मामले चीन सरकार के पास रहें। शेष विषयों पर कानून बनाने का अधिकार तिब्बत सरकार को मिले। ऐसी व्यवस्था चीन के संविधान और राष्ट्रीयता संबंधी कानून में मौजूद है। इससे चीन की संप्रभुता और तिब्बत को स्वशासन-दोनों एक साथ संभव है। तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता देने के नाम पर चीन ने अभी तिब्बत के भौगोलिक क्षेत्र को विकृत कर रखा है तथा पूरे क्षेत्र का साजिशपूर्वक चीनीकरण किया जा रहा है।
चूँकि चीन सरकार अपना हठ छोड़कर तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता देने को भी तत्पर नहीं है इसीलिए तिब्बत समर्थक तिब्बत की पूर्ण आजादी की मांग कर रहे हैं। उन्हें चीन की विस्तारवादी नीति पर रोक लगाने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मदद मिल रही है। मार्च में ही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के नियमित सत्र के दौरान तिब्बत में मानवाधिकार हनन का प्रश्न उठाया गया। दुनिया के सभी देश इस प्रश्न पर चीन की साम्राज्यवादी नीति से असहमत हैं।
अभी फ्रीडम हाउस की 2020 की रिपोर्ट में भी तिब्बत की आंतरिक स्थिति को बहुत खराब बताया गया है। इस अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार संसार में सबसे कम आजादी वाले देशों में तिब्बत दूसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर सीरिया है। तिब्बत लगातार पाँचवीं बार दूसरे स्थान पर है। चीन के चंगुल में फँसे तिब्बत को आजादी दिलाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न स्वतंत्र एजेंसियों को वहाँ जाकर मानवाधिकार संबंधी तथ्य जुटाने की अनुमति मिले। इसके लिए चीन सरकार पर दबाव बढ़ाया जाए।
विभिन्न तिब्बत समर्थक संगठन लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि विभिन्न देश चीन के साथ अपनी पारस्परिक वार्ता में तिब्बत के सवाल को प्रमुखता से उठायें। चीन सरकार और दलाई लामा तथा निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता प्रारंभ कराई जाये। दलाई लामा की ससम्मान तिब्बत वापसी हो। मीडिया कर्मियों तथा मानवाधिकार संगठनों को तिब्बत में स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने की अनुमति मिले। प्रसन्नता की बात है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन सरकार बेनकाब हो चुकी है। इसी का नतीजा है कि उसके विरोध के बावजूद विभिन्न देश एवं संगठन परमपावन दलाई लामा को सादर आमंत्रित कर रहे हैं। उनके प्रवचन सुन रहे हैं। उन्हें सम्मानित तथा पुरस्कृत कर रहे हैं। वे तिब्बती संघर्ष में भरपूर सहयोग और समर्थन दे रहे हैं। चीन सरकार की गलत नीति का पर्दाफाश हो जाने का ही परिणाम है कि कोरोना महामारी के चलते कई प्रतिबंधों एवं लाॅकडाउन के बावजूद भी तिब्बती आंदोलन की ऊर्जा बढ़ती जा रही है।
तिब्बत का पर्यावरण, प्राकृतिक संपत्ति तथा पारिस्थितिकी को चीन सरकार बर्बाद कर रही है। इससे पूरे विश्व को नुकसान है क्योंकि ग्लेशियर के मामले में तिब्बत को दुनिया की छत तथा तीसरा ध्रव कहा जाता है। इस प्रकार तिब्बत समस्या का समाधान संपूर्ण विश्व में शांति, समृद्धि तथा सुरक्षा के वातावरण को मजबूत करेगा। अंतरराष्ट्रीय कानून, लोकतंत्र, मानवता तथा तिब्बत के अस्तित्व की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि तिब्बती संघर्ष को निर्णायक मोड़ पर लाने हेतु सभी उपयोगी मंचो के माध्यम से चीन पर दबाव बढ़ाया जाये।