दैनिक जागरण, 7 जनवरी 2013
वाराणसी : तिब्बतियों के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाईलामा रविवार को अपराह्न 3.22 बजे सारनाथ स्थित केंद्रीय तिब्बती संस्थान पहुंचे। पांच घंटों का लंबा इंतजार लेकिन अनुयायियों की खुशी का पारावार न था। तथागत की उपदेश स्थली में गुरु का वंदन अभिनंदन किया। पारंपरिक परिधानों में सजे अपने पारंपरिक वाद्ययंत्र पर धुन बजाई और खाता भेंट किया। चेहरे पर बालसुलभ मुस्कान समेटे परम पावन ने एक-एक कर लोगों से हाल जाना, आशीष भी दिया।
केंद्रीय तिब्बती संस्थान की ओर जाने की राह सुबह से ही अनूठे जज्बात में बावरी हुई जा रही थी। पूरी तरह तिब्बत के रंग ढंग में सराबोर। आस्था की डोर में बंधे बौद्ध धर्मावलंबी यहां अपने सर्वोच्च धर्मगुरु परमपावन दलाईलामा के दीदार को खिंचे चले आए थे। रविवार को पूर्वाह्न 11.00 बजे से ही पलक पांवड़े बिछाए संस्थान के गेट पर जमे तो कई सड़क किनारे ही रमे।
इसमें रोड़ा बनी कोहरे की चादर और दृश्यता की कमी। अब आए तब आए की उम्मीद भरी चर्चाओं के बीच अपराह्न 2.40 बजे दलाईलामा का चार्टर्ड प्लेन बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतरा और ठीक 3.22 बजे वाहनों का काफिला केंद्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार से प्रवेश कर गया। गेट पर हाथ हिलाकर दलाईलामा ने अनुयायियों पर स्नेह वर्षा की तो सभी मुस्कुराकर गदगद कर गए। परिसर में पहुंचते ही कुलपति प्रो. गेशे नवांग समतेन, वज्र विद्या संस्थान के संस्थापक ठंगू रिनपोछे, पद्मश्री प्रो. रामशंकर त्रिपाठी, प्रो. कामेश्वरनाथ मिश्रा, प्रो. एशे थपके आदि ने फूल व खाता भेंट कर पारंपरिक ढंग से धर्मगुरु का स्वागत किया। अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सजे तिब्बतियों ने वाद्ययंत्र (तुंग) बजाकर अगवानी की। दलाईलामा परिसर में बने विशेष भवन में विश्राम के लिए चले गए।
वह यहां सात दिनों तक रहेंगे, 13 जनवरी को वह दिल्ली होते हुए धर्मशाला के लिए प्रस्थान कर जाएंगे। यहां प्रवास के दौरान वह नालंदा के आचार्य शांतिदेव कृत बोधिचर्यावतार नामक ग्रंथ पर आधारित प्रवचन करेंगे, व्याख्यान देंगे। इसे सुनने के लिए लेह-लद्दाख, किन्नौर, हिमांचल, अरुणांचल, मेघालय, सिक्किम, दार्जिलिंग के साथ ही आस्ट्रेलिया, रूस, चीन, भूटान, नेपाल, अमेरिका सहित कई देशों के सैकड़ों अनुयायी भी यहां आए हुए हैं। विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ इन लोगों ने भी कतारबद्ध होकर परम पावन का दर्शन किया और आशीष लिया।