तिब्बत पर डॉ० भीमराव अंबेडकर (भारतीय संविधान के जनक) के विचार (वर्ष १९५४ मे संसद में पंचशील समझौते पर बहस)
यदि भारत ने १९४९ मे चीनी गणराज्य को मान्यता देने की बजाय तिब्बत को मान्यता प्रदान की होती तो आज भारत-चीन सीमा विवाद होता ही नहीं। पंचशील बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि श्री माओ को पंचशील में रत्ती भर भी विश्र्वास होता तो वह अपने देश में रहने वाले बौद्धों के साथ अच्छा व्यवहार करते। राजनीति में पंचशील का कोई स्थान नहीं होता। पंचशील में निहित सच्चाई यह हैं कि नैतिकता का मापदंड लगातार बदलता जा रहा है। आचार नीति या नैतिकता कहलाने वाली कोई चीज नहीं है। आज की आचारनीति के लिहाज से आप अपने किसी वादे से बंधे रह सकते हैं लेकिन इसी आधार पर आप अपने वादे को आसानी से तोड़ सकतें हैं क्योकि कल की आचारनीति आपसे कुछ और अपेक्षा करेगी। मैं वास्तव में यह नहीं जानता कि आगे क्या होने जा रहा है। चीन के द्वारा ल्हासा (तिब्बती राजधानी) के ऊपर नियंत्रण करने का विरोध न करके हमारे प्रधानमंत्री नेक तरीके से चीनियों का इस बात के लिए सहयोग किया है कि वह अपनी फौजों को भारतीय सीमा तक ला सकें। कशमीर में दाखिल होने वाला कोई भी विजेता सीधे पठानकोट तक पहुंच सकता है और मैं यह भी समझता कि निशिचत रूप से वह हमारे प्रधानमंत्री के घर तक भी पहुंच सकता है।
डॉ० भीमराव अंबेडकर
विशेष पोस्ट
संबंधित पोस्ट