सात राष्ट्रों के समूह के नेताओं का कहना है कि तिब्बत में मानवाधिकार की स्थिति ‘हमारे लिए प्रमुख चिंता’ है और वे इसके बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त करना जारी रखेंगे।
समूह के हाल ही में संपन्न वार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद एक विज्ञप्ति में जी- ७ नेताओं ने कहा कि, ‘हम तिब्बत और झिंझियांग सहित चीन में मानवाधिकारों की स्थिति के बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त करते रहेंगे, जहां जबरन श्रम कार्यक्रम हमारे लिए प्रमुख चिंता का विषय है। ‘ तिब्बत के लिए मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने वाले एक समूह- इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत- ने कहा, ‘जी-७ नेताओं की यह विज्ञप्ति दर्शाती है कि तिब्बत में चीन के दुर्व्यवहार इस धरती पर कुछ सबसे प्रभावशाली नेताओं की नजरों से ओझल नहीं हैं।‘
‘तिब्बतियों पर अपने दमन को छिपाने की कोशिश करने या विदेशी सरकारों की आलोचनाओं का खंडन करने के बजाय बीजिंग में सरकार को बातचीत की मेज पर वापस आना चाहिए और दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती नेतृत्व की पहल का सकारात्मक जवाब देना चाहिए, ताकि लंबे समय से चले आ रहे तिब्बत-चीन संघर्ष का शांतिपूर्वक समाधान किया जा सके।‘
जी- ७ में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं, जिसमें यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि भी पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होते हैं।
जी- ७ नेताओं ने हिरोशिमा में १९-२१ मई तक अपने वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए बैठक की।
तिब्बत में मानवाधिकार हनन
चीन ने ६० से अधिक वर्षों से तिब्बत पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। इस कारण दलाई लामा को १९५९ में निर्वासन में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
वाचडॉग ग्रुप ‘फ्रीडम हाउस’ की वैश्विक रैंकिंग के अनुसार, आज चीनी शासन के तहत तिब्बत दक्षिण सूडान और सीरिया के साथ पृथ्वी पर सबसे कम आजाद देश है।
हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग की एक रिपोर्ट में पिछले साल तिब्बत में भिक्षुओं, भिक्षुणियों और आम नागरिकों को भी केवल धार्मिक आधार पर बिना सुनवाई के जबरन लापता होने, गिरफ्तारी, शारीरिक शोषण और लंबे समय तक हिरासत में रखने के आरोपों का जिक्र किया गया है।
इसके अलावा, चीनी सरकार ने कथित तौर पर लगभग १० लाख तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर दिया है और उन्हें औपनिवेशिक शैली के आवासीय स्कूलों में भेज दिया है। वहां पर उन्हें चीनी संस्कृति में ढालने का उपक्रम किया जाता है और पाठ्यक्रम में मंदारिन लिपि वाली चीनी भाषा सीखने के लिए मजबूर किया जाता है। २००९ के बाद से लगभग १६० तिब्बतियों ने अपने लोगों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए तिब्बत और चीन में आत्मदाह कर लिया है।
जबरन मजदूरी
तिब्बत में चीन के शासन का एक और परेशान करने वाला पहलू तिब्बतियों से कथित तौर पर जबरन श्रम करवाना है।
रिपोर्टों के अनुसार, २०१५ के बाद से कथित ‘स्वैच्छिक कार्यक्रम’ के माध्यम से लाखों तिब्बतियों को अपने पारंपरिक ग्रामीण जीवन शैली को छोड़ने और अकुशल श्रमिकों के तौर पर कम-वेतन वाली नौकरी के लिए मजबूर किया गया है।
२०२० में स्कॉलर एड्रियन ज़ेनज़ ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे कार्यक्रम का दस्तावेजीकरण करते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट के अनुसार यह कार्यक्रम तिब्बत के लगभग आधे हिस्से में चलाया जा रहा है। इसमें २०२० के शुरुआती सात महीने में ही पांच लाख से अधिक ग्रामीण तिब्बतियों को उनकी भूमि से बेदखल कर सैन्य-शैली के प्रशिक्षण केंद्रों में धकेल दिया गया है।
अभी पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र के छह स्वतंत्र स्पेशल रिपोर्टियरों ने एक बयान जारी कर चिंता व्यक्त की कि तिब्बत में चीन के कथित ‘श्रमिक स्थानांतरण और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम’ का इस्तेमाल तिब्बत के धर्म, भाषा और संस्कृति को कमजोर करने और तिब्बतियों की निगरानी करने और उन्हें राजनीतिक रूप से स्वामिभक्त बनाने’ के लिए किया जा रहा है।‘
विशेषज्ञों ने चीनी सरकार से जबरन श्रम और तस्करी को रोकने के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पालन करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की व्याख्या करने और ऐसे कार्यक्रमों से पीड़ित हुए लोगों के लिए उपचार और मुआवजा सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।
तिब्बत समस्या का समाधान
जी-७ देशों ने हाल के वर्षों में तिब्बतियों का समर्थन करने के लिए कई कदम उठाए हैं। २०२२ में जर्मनी में आयोजित शिखर सम्मेलन में जी-७ नेताओं ने कहा, ‘हम चीन में मानवाधिकारों की गिरती स्थिति को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं। हम सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देना जारी रखेंगे। हम चीन से सार्वभौमिक मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान करने का आह्वान करते हैं। इसके तहत हम मुख्य रूप से तिब्बत और झिंझियांग में जबरन श्रम कार्यक्रम को लेकर चिंतित है।
इसी तरह जी-७ के विदेश मंत्रियों ने भी २०२२ में कहा था, ‘हम चीन, खासकर झिंझियांग और तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति से बहुत चिंतित हैं।‘ उन्होंने कहा, ‘हम चीनी अधिकारियों से स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को झिंझियांग और तिब्बत में तत्काल सार्थक और निर्बाध रूप से जाने की अनुमति देने का आग्रह करते हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार मामलों के उच्चायुक्त की संभावित यात्रा भी शामिल है। ‘फरवरी २०२३ में अमेरिकी संसद के दोनों सदनों में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन- दोनों दलों ने ‘रिसॉल्यूशन टू द तिब्बत-चाइना कंफ्लीक्ट (तिब्बत-चीन संघर्ष समाधान अधिनियम)’ नामक प्रस्ताव को फिर से पारित कराने की प्रक्रिया शुरू किया है। यह एक ऐसा विधेयक है, जो चीन के प्रतिनिधियों और दलाई लामा के दूतों के बीच बातचीत को फिर से शुरू कराने के लिए चीन पर दबाव डालेगा। दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही थी जो २०१० से ठप पड़ी हुई है। द्विदलीय कानून में यह सुनिश्चित किया जाना है कि तिब्बतियों को आत्मनिर्णय का अधिकार है और तिब्बत की कानूनी स्थिति अभी अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत निर्धारित की जानी है।