चीन की सख्त कोविड पाबंदियों के खिलाफ तिब्बत की राजधानी में विरोध–प्रदर्शन शुरू
तिब्बती निवासी लगभग १५ वर्षों के बाद सबसे बड़े प्रदर्शनों में ल्हासा की सड़कों पर उतरे।
rfa.org / २६ अक्तूबर, २०२२
रेडियो फ्री एशिया (आरएफए) की रिपोर्ट के अनुसार,तिब्बती क्षेत्रीय राजधानी ल्हासा में गुस्साए निवासियों ने कठोर कोविड-१९ लॉकडाउन के विरोध में बुधवार को सड़कों पर उतर आए। यह प्रतिबंध चीनी अधिकारियों ने उन पर दो महीने से अधिक समय पहले लगाया है।
हालिया विरोध-प्रदर्शन २००८ के तिब्बती विद्रोह के बाद से शहर में पहला बड़ा विरोध-प्रदर्शन है। चीनी सरकार द्वारा जातीय अल्पसंख्यक समूह पर दमन चक्र चलाने के खिलाफ उस समय प्रदर्शनों की लंबी शृंखला चली थी। चीनी पुलिस और सैन्य बलों ने उस विद्रोह को कुचल दिया था, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए।
आरएफए द्वारा प्राप्त वीडियो में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को सड़कों पर दिखाया गया है। दिन के समय के एक वीडियो में लोगों को ज्यादातर खड़े या एक- दूसरे से मिलते हुए दिखाया गया है, जबकि अधिकारी सफेद सुरक्षात्मक सूट में पास में खड़े हैं। रात के समय के दो वीडियो में भीड़ और कारें एक बड़ी सड़क को अवरुद्ध कर रही हैं और भीड़ नारे लगाते हुए आगे बढ़ जाती है।
वीडियो में प्रदर्शनकारियों को तिब्बती और मंदारिन चीनी दोनों भाषाओं में नारे लगाते हुए सुना जा सकता है।लेकिन वे क्या कह रहे थे, इसे समझना मुश्किल है।
सूत्रों ने आरएफए की तिब्बती सेवा को सूचित किया कि प्रदर्शनकारियों ने चीनी अधिकारियों को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने बीजिंग की शून्य-कोविड नीति के तहत लागू किए गए कोविड लॉकडाउन प्रतिबंधों को हटाने से इनकार कर दिया तो वे ‘आग लगा देंगे’।
प्रदर्शनकारियों की बातों से स्पष्ट नहीं हो रहा है कि वास्तव में उनके कहने का क्या मतलब था, लेकिन हो सकता है कि उन्होंने आत्मदाह का संकेत दिया हो।ज्ञात हो कि २००९ के बाद से १५०से अधिक आत्मदाह की घटनाएं हो चुकी हैं।
आएफए द्वारा जारी मानचित्रों में सड़क के संकेतों और रेस्तरां के नामों के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदर्शनकारी ल्हासा के शहर के पूर्वी हिस्से में चेंगगुआन जिले के ‘चकरोंग’क्षेत्रके साथ ही शहर के पाई क्षेत्र में सड़क पर दिखाई दे रहे हैं।
एक सूत्र ने आरएफए को यह भी बताया कि ल्हासा में तिब्बतियों को डर है कि नागरिकों और चीनी पुलिस के बीच हाथापाई हिंसक हो सकती है। ल्हासा में लॉकडाउन अगस्त की शुरुआत में शुरू हुआ क्योंकि वहां और पूरे चीन में कोविड की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी।
ल्हासा के निवासियों ने सोशल मीडिया पर कहा है कि तैयारी के लिए पर्याप्त समय के बिना लॉकडाउन का आदेश आया, जिससे कुछ निवासियों को भोजन की कमी हो गईऔर वायरस से संक्रमित लोगों के लिए पर्याप्त उपचार की व्यवस्था करना मुश्किल हो गया।
आरएफए ने पिछले महीने के अंत में बताया कि तिब्बत के अंदर एक स्रोत ने सोशल मीडिया पर रिपोर्ट की पुष्टि की कि ल्हासा में तिब्बती इमारतों से कूद रहे थे।
पूर्व में स्वतंत्र राष्ट्र तिब्बत पर ७० साल से अधिक समय पहले चीनी सरकार द्वारा आक्रमण किया गया था और बलपूर्वक इसे चीन में शामिल किया गया था। इसके बाद चीन के शासन के खिलाफ १९५९ के असफल राष्ट्रीय विद्रोह के बाद तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा और उनके हजारों अनुयायी भारत और दुनिया भर के अन्य देशों में निर्वासन में भाग गए थे।
चीनी अधिकारियों ने तिब्बतियों की राजनीतिक गतिविधियों और सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के संरक्षण के लिए शांतिपूर्ण विरेाध- प्रदर्शन और विचार-अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित कर दिया है। चीन शासन द्वारा तिब्बतियों को उत्पीड़न, यातना, कारावास दिया जाता है और उनकी बिना कोई मुकदमा चलाए न्यायेतर रूप से हत्या कर दी जाती है। ऐसा करके चीन ने इस क्षेत्र पर मजबूत पकड़ बना रखी है।
कठोर चीनी शून्य-कोविड लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों को झेलने वाले तिब्बती अकेले नहीं हैं।
आरएफए ने पिछले महीने बताया कि उत्तरी झिंझियांग के शहर गुल्जा में चीन की कोविड लॉकडाउन नीतियों के कारण कम से कम २२ लोगों की भुखमरी या चिकित्सा की कमी से मौत हो गई।
चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उग्यूरों द्वारा पोस्ट किए गए और सरकारी सेंसर द्वारा जल्दी से हटाए गए वीडियो में स्थानीय लोगों को सख्त शून्य-कोविड लॉकडाउन के तहत भोजन और चिकित्सा देखभाल तक पहुंचने के लिए संघर्ष करते हुए दिखाया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि परिवार के सदस्यों की भूख से मौत हो गई थी।