छोकत्रुल दावा रिन्पोछे को चीनी शासन का विरोध करने के लिए वर्षों तक जेल में रखा गया था।
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रेडियो फ्री एशिया के अनुसार इस साल की शुरुआत में चीनी पुलिस ने उन लोकप्रिय तिब्बती लामा के अंतिम संस्कार को प्रतिबंधित कर दिया था, जिन्होंने भक्तों को ऑनलाइन पोस्ट किए गए धार्मिक नेता की तस्वीरों को हटाने से रोक दिया था।
तिब्बत से मिली एक स्त्रोत ने बताया कि ८६ वर्षीय छोकत्रुल दावा रिनपोछे की ३० जनवरी को तिब्बत की राजधानी ल्हासा में अपने निवास पर मृत्यु हो गई और उसके तुरंत बाद वह ठुकदम में प्रवेश कर गए। इसे यह माना जाता है कि एक मृत शरीर ध्यान चेतना में कुछ समय के लिए शरीर में बनी रहती है।
आरएफए के सूत्र ने सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘लेकिन चीनी सरकार ने रिनपोछे के निधन को यथासंभव गुप्त रखने की कोशिश की और लोगों को उनकी निधन की खबर ऑनलाइन साझा न करने की चेतावनी दी।’
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा पहले से ही ऑनलाइन में जारी रिनपोछे की तस्वीरें और वीडियो चीनी सरकार द्वारा जल्दी से हटा दिए गए थे।’
तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में नाग्चु (चीनीः नैकू) काउंटी में गदेन दरग्यलिंग मठ के वरिष्ठ शिक्षक छोकत्रुल दावा रिनपोछे को भारत में निर्वासन में रह रहे तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के साथ अपने मठ में मामलों पर चर्चा करने के लिए २०१० में सात साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।
सूत्र ने कहा, ‘और उनकी रिहाई के बाद उन्हें जीवन भर के लिए चीनी अधिकारियों द्वारा लगातार निगरानी के दायरे में रखा गया।’
स्रोत के अनुसार, जब १३ जनवरी को रिनपोछे का ठुकदम समाप्त हुआ तो चीनी सुरक्षा अधिकारियों को उनके आवास की रक्षा के लिए भेजा गया और भक्तों को उनके सम्मान में प्रार्थना सभा आयोजन करने से रोक दिया, केवल ल्हासा के निवासियों को घर में प्रवेश करने की अनुमति दी गई।
फिर रिनपोछे के छात्रों की कई अपीलों के बाद, चीनी सरकार ने उनके शरीर को ल्हासा से १८ जनवरी को नागचू में गदेन दरग्यलिंग मठ ले जाने की अनुमति दी। हालांकि, केवल दो वाहनों को उन्हें वहां ले जाने की अनुमति दी गई थी।
सूत्र ने कहा, बाद में केवल कुछ तिब्बतियों को उनके अंतिम संस्कार में भाग लेने की अनुमति दी गई, जिसके कारण तिब्बती भक्तों और चीनी पुलिस के बीच झड़प भी हो गई।
उन्होंने कहा कि केवल रिनपोछे के अपने मठ के भिक्षुओं को ही २५ जनवरी को उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी गई थी और समारोह से पहले सेल फोन की तलाशी ली गई ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई तस्वीर नहीं ली गई हैं।
१९३७ में नागचू में जन्मे छोकत्रुल दावा रिनपोछे को १९६० में तिब्बत पर चीन के कब्जे का विरोध करने के लिए पांच साल की सजा सुनाई गई थी। यह सजा पूरी हुई नहीं कि चीन की सांस्कृतिक क्रांति (१९६६-१९७६) के दौरान फिर से सात साल के लिए जेल में बंद कर दिया गया था।
तिब्बत पर ७० साल पहले जबरन आक्रमण किया गया था और इस स्वतंत्र देश को चीन में शामिल किया गया था। इसके बाद से तिब्बत में रहने वाले तिब्बती अक्सर चीनी अधिकारियों द्वारा भेदभाव और मानवाधिकारों के हनन की शिकायत करते रहे हैं। चीनी सरकार की नीतियों का उद्देश्य तिब्बत की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान को मिटाना है।