०२ अगस्त, २०२२
विजय क्रांति, चेस
(चीनी कम्युनिस्ट पार्टी तिब्बती आबादी को बढ़ने से रोकने के लिए जबरन नसबंदी और सांस्कृतिक संहार के उपकरण के रूप में तिब्बत में बसने वाले हान मूल के लोगों के साथ तिब्बती लड़कियों के विवाह को प्रोत्साहित कर रही है)
नई दिल्ली, मिलानो, ताइपे, धर्मशाला। ३०जुलाई को ‘चीन के औपनिवेशिक शासन के तहत तिब्बती महिलाएं और मानवाधिकार’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में विशेषज्ञों ने तिब्बती महिलाओं के जबरन गर्भपात और सामान्य कार्यक्रम के रूप में जबरदस्ती नसबंदी करने, तिब्बत के लोगों पर परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण लागू करने के लिए चीन और उसकी कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना की। विशेषज्ञों ने सरकार द्वारा प्रायोजित तिब्बत में आगत हान पुरुष बाशिंदों और स्थानीय तिब्बती महिलाओं के बीच विवाह को सांस्कृतिक संहार का एक और उपकरण बताया जो तिब्बत में निरंतर प्रगति पर है। उन्होंने इसके माध्यम से विवाह संस्था के राजनीतिकरण का भी आरोप लगाया। विशेषज्ञ तिब्बती महिलाओं द्वारा प्रदर्शित दृढ विश्वास और उनके साहस की भी सराहना कर रहे थे।विशेष रूप से कब्जे वाले तिब्बत के अंदर रहने वाली महिलाओं नेऔपनिवेशिक चीनी शासन से तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए चल रहे संघर्ष में अपना दृढ विश्वास और साहस बनाए रखी है।
वेबिनार का आयोजन ३०जुलाई की शाम को नई दिल्ली के सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट (चेस) और धर्मशाला स्थित तिब्बती युवा कांग्रेस द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। मुख्य विशेषज्ञ वक्ताओं में मिलानो इटली से ‘बिटर विंटर’ पत्रिका के प्रभारी निदेशक श्री मार्को रेस्पिंटी, ताइवान के सिंचु में नेशनल यांग-मिंग चियाओ तुंग विश्वविद्यालय में मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर मेई-लिन पैनऔर धर्मशाला से ‘स्टूडेंट्स फ़ॉर ए फ्री तिब्बत’ की कार्यक्रम निदेशक सुश्री तेनज़िन पासांग शामिल हुईं। चेस के अध्यक्ष और सह-मेजबान श्री विजय क्रांति ने वेबिनार का संचालन किया। जवाहर लाल विश्वविद्यालय, नई दिल्ली की प्रो. आयुषी केतकर ने प्रश्न-उत्तर सत्र का संचालन किया और टीवाईसी के महासचिव और सह-मेजबान श्री सोनम छेरिंगने धन्यवाद ज्ञापित किया।
चीनी औपनिवेशिक शासन के तहत तिब्बती महिलाओं की स्थिति के बारे में अपनी प्रस्तुति में युवा तिब्बती महिला कार्यकर्ता तेनजिन पासांग ने कालानुक्रम से विवरण दिया कि कैसे तिब्बती महिलाओं ने १९५१ में तिब्बत पर कब्जे के बाद से तिब्बत की आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई है और ऐसा करके उन्होंने चीनी सरकार के गुस्से को आमंत्रित किया गया है। उन्होंने कहा कि तिब्बती महिलाओं को चीनी जेलों में लंबे कारावास के अलावा, गंभीर शारीरिक हिंसा, यातना और जेल अधिकारियों द्वारा बलात्कार जैसी अन्य संगीन जुर्मों का सामना करना पड़ता है। जेल के बाहर तिब्बत में भीचीनी अधिकारी जनसंख्या नियंत्रण को लागू करने के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। तिब्बत में खासकर १९९२ से चीन की परिवार नियोजन नीति बहुत ही दखल देने वाली, विकृत और हिंसक है। ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें वे कुछ तुच्छ आधारों पर पति को जेल में डालकर महिला को गर्भपात या नसबंदी के लिए ब्लैकमेल और मजबूर करते हैं। महिलाओं को ‘अनियोजित रूप से’ बच्चे को जन्म देने की स्थिति में सरकारी प्रतिबंधों के लिए गंभीर आर्थिक प्रतिबंधों से गुजरने के लिए मजबूर किया जाता है। जुर्माना परिवार की पूरे साल की आय के बराबर हो सकता है। पासांग ने कहा कि यदि कोई बच्चा ‘अनियोजित रूप से’ पैदा होता हैतो बच्चे की चिकित्सा देखभाल और शिक्षा जैसी सभी महत्वपूर्ण सुविधाएं वापस ले ली जाती हैं। यह तिब्बती महिलाओं पर गंभीर वित्तीय, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक तनाव का कारण बनता है।
अतीत में तिब्बत से भागने में सफल होने वाली तिब्बती महिलाओं की कई गवाहिओं का उल्लेख करते हुए, पासांग ने कहा कि चीनी अधिकारियों और चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा परिवार नियोजन योजनाओं को लागू करने के लिए तिब्बती महिलाओं के खिलाफ भ्रामक तरीकों का इस्तेमाल करना आम बात है। प्रसव से इतर बीमारियों की चिकित्सा के लिए चीनी चिकित्सा केंद्र में जानेवाली महिलाओं की आम शिकायतें रहीं हैं कि उन्हें गर्भपात के लिए दवाएं दी गईं। कई मामलों में इससे महिला की मौत भी हुई है।‘
“एक ऐसे समाज में जहां पहले से ही बड़ी संख्या में भिक्षु और भिक्षुणियां हैं जो जनसंख्या वृद्धि में योगदान नहीं देते हैं, तिब्बती महिलाओं को ‘एक बच्चा’नीति के लिए मजबूर करने से तिब्बती समाज गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। पासांग ने कहा कि तिब्बत में बड़ी संख्या में हान पुरुषों को बसाने की चीन की नीति और तिब्बती महिलाओं और हान पुरुषों के बीच विवाह के लिए विशेष आर्थिक और अन्य प्रोत्साहन देने की नीति ने इसे और भी बदतर बना दिया है। यह सब विवाह को एक राजनीतिक हथियार और तिब्बती राष्ट्रीयता और संस्कृति को कमजोर करने के साधन के रूप में परिवर्तित करने के बराबर है।‘
अपनी प्रस्तुति को समाप्त करते हुए पासांग ने कहा कि तिब्बत में चीन की ये सभी कार्रवाइयां सांस्कृतिक संहार के समान हैं और संयुक्त राष्ट्र संहार सम्मेलन के खिलाफ हैं, जिस पर चीनी सरकार ने भी हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने घोषणा की, ‘लेकिन तिब्बत के औपनिवेशिक आकाओं के इस अन्याय, हिंसा और दमन के बावजूद तिब्बती महिलाओं ने आजादी की उम्मीद नहीं खोई है और उन्होंने अपने देश पर चीनी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष जारी रखा हुआ है।‘
चीन की कम्युनिस्ट सेना द्वारा तिब्बतियों की सामूहिक हत्याओं को याद करते हुए श्री मार्को रेस्पिंटी ने कहा, ‘जब चीनी कम्युनिस्ट शासन जैसी सरकार अपनी सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक और नस्लीय पहचान से जाना जाने वाले तिब्बतियों जैस मानव समूह को निशाना बनाती है तो यह पूरी तरह से इस समूह को अपने में विलीन कर लेने,इसकी विशिष्टता को अस्वीकार करने, इसकी मान्यताओं, रीति-रिवाजों और भाषा को बदनाम करने और इसके धर्म को तोड़ने के साथ धार्मिक और नस्लीय सफाए और संहार का मामला बनता है। यह एक व्यापक संहार है, भले ही सड़कों पर लाशों के ढेर न दिखें। उन्होंने चेतावनी दी कि वास्तव में, अगर चीन के इस अभियान को नहीं रोका गयातो एक समय ऐसा आएगा जब कोई तिब्बती नहीं बचेगा और वे एक नस्ल के तौर पर विलुप्त हो जाएंगे।‘
रेस्पिंटी ने १९७९से २०१५तक ‘एक बच्चा’नीति, २०१५में लागू ‘दो बच्चा’ नीति और फिर हान आबादी के लिए २०२१ की ‘तीन बच्चा’ नीति के माध्यम से चीनी सरकार के परिवार नियोजन अभियानों के विकास और बदलाव को रेखांकित किया। लेकिन इन सभी अवधियों में तिब्बत, झिंझियांग और आंतरिक मंगोलिया के कब्जे वाले ‘स्वायत्त’ क्षेत्रों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की परिवार नियोजन की आक्रामक नीति बनी रही, जिसे जबरन नसबंदी और गर्भपात जैसी विधियों के माध्यम से पूरा किया गया।
ताइवान के सिंचु में नेशनल यांग मिंग चिआओ तुंग विश्वविद्यालय में मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर मेई-लिन पैनभारत, नेपाल और ताइवान में तिब्बती शरणार्थी महिलाओं की स्थिति का अध्ययन कर रही हैं।उन्होंने उनके साथ पंद्रह साल तक बातचीत की। तिब्बत से हाल ही में भागे लोगों के चीनी भाषा बोलने का लाभ उठाते हुए उन्होंने अपने अनुभव को साझा किया कि हर प्रकार की सामाजिक, शैक्षिक और व्यावसायिक स्थिति के बावजूद तिब्बती महिलाओं को अपने चीनी औपनिवेशिक आकाओं के हाथों किस प्रकार से दमन और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। पैन ने कहा कि चीन के परिवार नियोजन अभियान का पूरा दारोमदार तिब्बत की महिलाओं पर केंद्रित है। तिब्बती महिलाओं के जबरन गर्भपात और नसबंदी को जनसंख्या नियंत्रण के स्वीकृत साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और तिब्बती पुरुषों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। नतीजतन, यह अभियान तिब्बती महिलाओं के तिब्बत से भागने और भारत जाने के मुख्य कारणों में से एक बन जाता है।
इस संदर्भ में उन्होंने तिब्बती महिलाओं के दो उदाहरण प्रस्तुत किए।एक गरीब गृहिणी और दूसरी एक उच्च योग्य चिकित्सा सर्जन जिन्होंने चीन-नियंत्रित तिब्बत से भागने का फैसला किया और अपनी जान जोखिम में डाल कर भारत भागीं। दोनों ही मामलों में चीनी अधिकारी चाहते थे कि महिलाएं गर्भपात कराएं जबकि दोनों ने जोखिम उठाने का फैसला किया और निर्वासन में भाग गए। तिब्बती महिलाओं के साहस और दृढ़ संकल्प की प्रशंसा करते हुएतिब्बत के अंदर रहने वालों के साथ-साथ निर्वासन में रहने वालीप्रो पान ने कहा कि तिब्बत की महिलाएं पारिवारिक मोर्चे के साथ-साथ राष्ट्रीय संघर्ष में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
टीवाईसी के महासचिव और वेबिनार के सह-मेजबान श्री सोनम छेरिंग ने धन्यवाद ज्ञापति करते हुए तिब्बत पर चीनी कब्जे के खिलाफ राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में तिब्बती महिलाओं के शानदार, निरंतर और साहसी योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने १९५९में चीन के खिलाफ पहले राष्ट्रीय विद्रोह के दौरान ल्हासा की महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि,‘बाद के वर्षों में भी तिब्बत के भीतर तिब्बती महिलाओं ने पति और परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों को तिब्बत के कम्युनिस्ट शासकों द्वारा जेल भेजे जाने के बाद की संवेदनशील स्थिति में भी जेल जाने में साहस का प्रदर्शन किया है।‘