deccanchronicle.com/क्लाउड अर्पी
पश्चिमी तिब्बत की अपनी एक समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। विशेष रूप से भारत, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं के संगम के निकट कैलाश शिखर की। यहां हम बात कर रहे हैं यहां से कुछ किलोमीटर दूर स्थित पुरंग/ तकलाकोट और टोयो नामक स्थान की, जो जनरल ज़ोरावर सिंह के डोगरा सैनिकों और तिब्बती सैनिकों के बीच हुए ऐतिहासिक युद्ध के लिए दर्ज हो गया है। हाल ही में पश्चिमी तिब्बत (जिसे न्गारी के नाम से जाना जाता है) पर विजय प्राप्त करने वाले डोगरा सैनिक दिसंबर १८४१ में तिब्बतियों से हार गए थे। साथ ही यहां की सर्दियों से भी वे मात खा गए।
महान तिब्बती इतिहासकार छेपोन शाकबपा ने तकलाकोट/टोयो की लड़ाई का वर्णन इस प्रकार किया, ‘तिब्बती सरकार ने तुरंत कैबिनेट मंत्री पेलहुन के नेतृत्व में दापोन (जनरल) शेड्रा वांगचुक ग्यालपो और छांग (मध्य तिब्बत) मिलिशिया को कैबिनेट मंत्री पेल्हुन के नेतृत्व में रवाना किया। जब वे न्गारी पहुंचे तो विदेशी सेना (डोगरा) की एक रेजिमेंट रुतोक (पैंगोंग-छो के पास) में, दूसरी रेजिमेंट ट्रैशिगांग (लद्दाख सीमा पर डेमचोक के पास) में और तीसरी रूपशो (लद्दाख) में मोर्चा संभाले हुए थी। प्रत्येक (डोगरा) इकाई का सामना करने के लिए तिब्बती सैनिकों को गुप्त तैयारी थी। तकलाखार (तकलाकोट) कैसल (वास्तव में टोयो में) में तैनात जोरावर सिंह और सबसे अनुभवी (डोगरा) सैनिकों का मुकाबला तिब्बती सैनिकों से हुआ। ग्यारहवें महीने (दिसंबर १८४१) के वर्ष के सबसे ठंडे मौसम के दौरान तिब्बती सैनिकों ने सभी दिशाओं से एक साथ हमला किया।
शाकबपा के अनुसार, ज़ोरावर सिंह और उनके सैनिकों का भाग्य कुंद हो गया था, ‘लड़ाई शुरू होने के तीन दिन बाद भारी बर्फबारी हुई। इस प्रकार, तकलाकोट में मौजूद सिख सैनिक जहां के तहां ठहर गए। अपनी कठिनाइयों और ठंड से कांपते हुए सिख सैनिकों पर तिब्बतियों द्वारा भयानक हमला किया गया। आमने-सामने की सीधी लड़ाई शुरू हो गई। जब अपने घोड़े पर सवार जोरावर सिंह आगे-पीछे दौड़ रहे थे, उस समय उन्हें मिकमार नामक एक यासोर सैनिक ने पहचान लिया। उसने उन पर भाला फेंका और जोरावर सिंह घोड़े से गिर गए। अपने घोड़े से छलांग लगाकर मिकमार ने सिंह का सिर काट दिया और उसे तिब्बती शिविर में ले आया। इसे सिख (डोगरा) सैनिकों ने देखा और वे जहां मौका मिला, भाग खड़े हुए।‘
कुछ महीने बाद महाराजा गुलाब सिंह ने लद्दाख पर आक्रमण करने की कोशिश कर रही तिब्बती सेना को कुचल दिया। दापोन ज़ुरखांग और दापोन पेल्ज़ी को पकड़ लिया गया और लेह ले जाया गया। वहां पर डोगरा और तिब्बतियों के बीच एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इससे एक बार फिर लद्दाख और तिब्बत के बीच पारंपरिक सीमा निश्चित हुई। हाल ही में अलग-अलग कारणों से चर्चा में आए टोयो में जोरावर सिंह की कब्र आज भी मौजूद है।
चीनी मीडिया के एक लेख में टोयो में एक नवनिर्मित गांव का उल्लेख किया गया है, ‘चीन ग्रामीण जीवन के माहौल में सुधार को बढ़ावा दे रहा है, हरियाली (क्षेत्र), सौंदर्यीकरण और (जल) शुद्धिकरण पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। टोयो में परिवर्तन एक सुंदर और रहने योग्य ग्रामीण इलाके के निर्माण के लिए न्गारी क्षेत्र के प्रयासों की एक ठोस अभिव्यक्ति है।‘
कम्युनिस्ट पार्टी के एक स्थानीय कैडर बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में अकेले पश्चिमी तिब्बत में रहने योग्य, औद्योगीकृत और सुंदर गांव बसाने के लिए कुल ३१ परियोजनाएं लागू की गई हैं। उनके शब्दजाल के अनुसार इसे यूं कहा जाएगा- ‘साफ सुथरे गांवों के सिद्धांतों के अनुरूप सुंदर आरामदायक गांव, खुशहाल और रहने योग्य गांव।‘ लेकिन असली सवाल ज्यों का त्यों है कि टोयो में एक नया गांव क्यों?
न्यूज़वीक कहता है, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि चीन ने देश के दक्षिण-पश्चिमी सीमा क्षेत्रों में एक बांध का निर्माण कर लिया है। यह एक ऐसी परियोजना है, जिसका दूरगामी रणनीतिक प्रभाव उसके दक्षिणी पड़ोसियों- भारत और नेपाल पर हो सकता है।‘ मापचा सांगपो (या पीकॉक नदी, जिसे भारत में घाघरा और सरयू तथा नेपाल में करनाली कहा जाता है) पर निर्मित यह बांध निचले इलाके की आबादी के लिए ताजे पानी की आपूर्ति का बारहमासी स्रोत है।
अजीब बात है कि भारतीय सीमा के करीब निर्मित इस जलविद्युत संयंत्र के बारे में पहले किसी भी प्रकाशित चीनी योजना में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि सैटेलाइट इमेजरी में केवल बीच की नदी पर बांध दिखाई पड़ता है। इसमें कोई बड़ा जलाशय नहीं है। निचले इलाके में बसे भारत को चिंतित होना चाहिए। लेकिन बात इसके आगे और भी बहुत कुछ है।
जलविद्युत संयंत्र और ‘मॉडल’ गांव से कुछ किलोमीटर उत्तर में एक नया हवाई अड्डा बन रहा है। जून २०१८ में चीन के नागरिक उड्डयन प्रशासन ने घोषणा की थी कि तिब्बत में जल्द ही तीन नए हवाई अड्डे बनेंगे। चीनी भाषा के प्रेस ने इन तीन हवाई अड्डों के स्थान के बारे में कुछ जानकारी दी थी- एक अरुणाचल प्रदेश के उत्तर में लुनछे में, दूसरा नेपाल के साथ सीमा चौकी के उत्तर में और आखिरी पुरंग में बनना था।
चीनी वेबसाइट Seetao.com के अनुसार, ‘इन तीन हवाई अड्डों का उपयोग शांतिकाल में नागरिक उपयोग, तिब्बत पठार पर सैन्य विमान प्रशिक्षण के लिए किया जा सकता है। जबकि युद्धकाल में प्रत्यक्ष सैन्य उपयोग, सैन्य अभियान के साथ बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।‘
हालांकि भारत में कई लोग इस घोषणा के बारे में भूल गए हैं कि हवाई अड्डा अब सक्रिय हो चुका है। नवनिर्मित हवाई क्षेत्र के १० नवंबर, २०२३ को वीडियो चीनी सोशल मीडिया पर दिखाई दिए। इन तीन निर्माणों (मॉडल गांव, जलविद्युत स्टेशन और हवाई अड्डे) को एक के रूप में देखा जाना चाहिए। निस्संदेह ये सभी दोहरे (नागरिक और सैन्य) उपयोग के लिए हैं।
एक और घटना पर ध्यान देने की जरूरत है, वह यह है कि भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए कैलाश यात्रा का बंद हो गई है। ६६३८ मीटर ऊंचे हीरे के आकार के पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है और यह जैन, बौद्ध और बॉन धर्मों में सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। सदियों से भारत से तीर्थयात्री यहां दर्शन करने आते हैं। १९९० के दशक से भारत के यात्री पिथौरागढ़ जिले में लिपुलेख दर्रे से तिब्बत में प्रवेश कर सकते थे और बाद में सिक्किम में नाथू-ला से तिब्बत में प्रवेश कर सकते थे। २०१७ में डोकलाम घटना के बाद भारतीय यात्रियों को अब इन मार्गों का उपयोग करने की अनुमति खत्म हो गई है।
चूंकि बीजिंग ने कैलाश शिखर के हवाई दर्शन की अनुमति देने के काठमांडू के अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया, इसलिए नेपाली टूर ऑपरेटरों ने यात्रियों को एक विकल्प देने का फैसला किया और बड़ी संख्या में भक्तों ने चार्टर्ड हेलीकॉप्टरों द्वारा सिमिकोट से पुरंग तक नेपाल मार्ग का उपयोग करना शुरू कर दिया। दुर्भाग्य से यह योजना बाद में कोविड-१९ महामारी के कारण बंद कर दी गई।
चीनी अधिकारियों ने २०२२ में नेपालियों के लिए योजना फिर से खोलने के बाद भी भारतीय यात्रियों को पुरंग जाने की अनुमति नहीं दी। हालांकि पिछले साल अकेले, नेपाली टूर ऑपरेटरों को पवित्र तीर्थयात्रा के लिए भारतीय तीर्थयात्रियों से ५०,००० से अधिक बुकिंग प्राप्त हुईं।
काठमांडू पोस्ट के अनुसार, एक नया विकल्प खोजा गया है। एक उड़ान नेपाली क्षेत्र में हो सकती है और पवित्र शिखर का दूर से दर्शन करा सकती है। पिछले सप्ताह एक विज्ञप्ति में बताया गया कि श्री एयरलाइंस ने पवित्र शिखर की अपनी तरह की पहली हवाई तीर्थ यात्रा संचालित की है। यह विकल्प चीनी वीज़ा के बिना भारतीय तीर्थयात्रियों के सपने को साकार कर रहा हैं। यह स्पष्ट है कि चीन नहीं चाहता कि भारतीय पवित्र शिखर के वास्तविक दर्शन करें या उस स्थान के करीब भी जाएं जहां ज़ोरावर सिंह को दफनाया गया है। क्षेत्र के नवीनतम घटनाक्रम इसकी गवाही दे रहे हैं।
क्लाउड अर्पी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर द हिमालयन स्टडीज, शिव नादर इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस (दिल्ली) में प्रतिष्ठित फेलो हैं और भारत- तिब्बत और भारत-फ्रांस संबंधों पर लिखते रहते हैं।