टोरंटो। उत्तरी अमेरिका में 2018 के चुनाव में जीतकर तिब्बती मूल की पहली जन प्रतिनिधि बनकर इतिहास रचने वाली तिब्बती-कनाडाई एमपीपी भूटिला कारपोचे ने परमपावन दलाई लामा को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने की 30वीं वर्षगांठ और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर 10 दिसंबर को ओंटारियो की असेंबली में तिब्बत में मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति का मुद्दा उठाया।
10 दिसंबर तिब्बतियों के लिए ऐतिहासिक महत्व का दिन है, क्योंकि इसी तारीख को 1989 में तिब्बती आध्यात्मिक नेता परम पावन दलाई लामा को तिब्बत मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों के लिए शांति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई थी।
एमएमपी भूटिला कारपोचे ने अपने भाषण में कहा, ‘परमपावन 14वें दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की 30वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मैं आज तिब्बती-कनाडाई के रूप में गर्व का अनुभव कर रही हूं। यह सम्मान परम पावन को 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर तिब्बत की मुक्ति के लिए संघर्ष और हिंसा का उपयोग करने के बजाय शांतिपूर्ण समाधान के प्रयासों के लिए दिया गया है।‘
हालांकि उन्होंने कहा कि तिब्बत में हालात बिगड़ रहे हैं और चीन सरकार द्वारा मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि ‘तिब्बती लोगों को अपनी खुद की भाषा सीखने के अधिकार के पक्ष में खड़े होने पर पर्यावरण कार्यकर्ता अन्या सेंगद्रा और तेनजिन वांगचुक की गैरकानूनी कैद और तिब्बत पर अवैध चीनी कब्जे और उनकी दमनकारी नीतियों के विरोध में 2009 के बाद से 150 से अधिक आत्मदाह की घटनाएं हो चुकी हैं।‘
एमएमपी ने कहा कि चीन के मानवाधिकारों का उल्लंघन केवल तिब्बत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूर्वी तुर्किस्तान और हांगकांग तक हो रहा है। हाल ही में लीक हुए दस्तावेज से स्पष्ट होता है कि उइगरों को सामूहिक हिरासत में शिविरों में रखा जा रहा है और उनसे जबरन कठोर श्रम करवाया जा रहा है। इसी तरह हांगकांग में लोकतंत्र के लिए चल रहा आंदोलन चीनी सरकार द्वारा सामूहिक गिरफ्तारियों और हिंसा करवा कर इसे बंद करने के प्रयासों के बावजूद सातवें महीने में पहुंच गया था।‘
दलाई लामा के नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के समय के भाषण को उद्धृत करते हुए उन्होंने कनाडाई लोगों से स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के पक्ष में तिब्बतियों, उइगरों और हांगकांग के लोगों का समर्थन करने का आग्रह किया।
परम पावन ने उस समय अपने भाषण में खुद का भाग्य विधाता बनने के लिए लोगों के व्यक्तिगत अधिकार और स्वतंत्रता की वकालत की थी।
उन्होंने अपना भाषण समाप्त करते हुए कहा, ‘हमलोग जो आज स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं, हमारी यह भी जिम्मेदारी है कि दूसरों की आजादी के लिए लड़ाई का समर्थन करें।‘