शेवात्सेल, लेह, लद्दाख, भारत।परम पावन दलाई लामा ने आज १० अगस्त की सुबह लद्दाख में एसईई लर्निंग की कोर टीम के ३०सदस्यों से मुलाकात की। कोर टीम के सदस्यों ने परम पावन को बताया कि एक साल पहले लद्दाख में यहकार्यक्रम शुरू हुआ था। इसके बाद सेअब तक उन लोगों ने स्कूलों में ५०० शिक्षकों को सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक रूप से प्रशिक्षित किया है। इससे पहले०९ अगस्त को लेह और कारगिल के १५० शिक्षकों ने इस कार्यक्रम के तहत काम करने के अपने अनुभव पर विचार- विमर्श करने के लिए परम पावन से मुलाकात की थी। उनके प्रवक्ता ने एसईई लर्निंग को प्रोत्साहित करने के लिए परम पावन को धन्यवाद दिया।
इस अवसर पर परम पावन ने कहा, ‘मुझे आपसे मिलकर प्रसन्नता हुई है। हम तिब्बती जब से भारत में निर्वासन में आए हैं, तब से हमने यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था को देखा है। हमने यहां कुछ लोग ऐसे भी देखेहैं,जिनके मन में धर्म के प्रति बहुत कम आकर्षण है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि धर्म का पालन करना बहुत मददगार हो सकता है, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो दूसरों के साथ विवाद और झगड़ा करने के लिए बहाने के रूप में धर्म का इस्तेमाल करते हैं।‘उन्होंने आगे कहा कि ‘मैंने सक्या, काग्यू और निंगमा परंपराओं के साथ ही गेलुक परंपरा की शिक्षाएं प्राप्त की हैं और मैं उन सभी का पालन करता हूं। लेकिन इस तरह का धर्म हर किसी के पालन करने के लिए नहीं है। इसमेंसबसे महत्वपूर्ण बातयह है कि हम लोगों को धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण के आधार पर अपने अंदर प्रेम और करुणा जैसे सकारात्मक गुणों को विकसित करने के लिए प्रेरित करने के तरीके खोजें।‘परम पावन ने कहा,’जन्म से ही हमारा पालन-पोषण मां की स्नेहमयी ममता की छांव में होता है। मां के साथ हमारा जुड़ाव कुदरती होता है। इसमें धर्म की कोई भूमिका नहीं होतीहै। प्यार और स्नेह का यह अनुभव कुछ मायनों में तोअनुराग और आसक्ति के रंग में रंगा होता है, लेकिन आमतौर पर यह एक प्राकृतिक स्वभाव भर है।‘
उन्होंने कहा,‘पहले और दूसरे विश्व युद्ध में बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने के बावजूद ऐसे बहुत लोग हैं जो आज भी लड़ने को उद्धत रहते हैं, भले ही यह लड़ाई तीसरे विश्व युद्ध का रूप क्यों न ले ले। वे संहारक हथियार विकसित करने में लगे रहते हैं। ऐसे लोग इस तथ्य से बेखबर कि यदि वेपरमाणु हथियारों का उपयोग करेंगे तो वेहभी नष्ट हो जाएंगे। इसलिए,यदि हम शांति स्थापित करने के लिए प्रयास नहीं करेंगे तो पूरी मानवता खत्म हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि लोग किसी धर्म का पालन करते हैं या नहीं। लेकिन हम सब में प्रेम और करुणा का होना बहुत आवश्यक है। नैतिकता का मूल इसी में निहित है। वास्तविकता यह है कि प्रेम और करुणा की कमी के कारण युद्धलड़े जाते हैं।‘उन्होंने कहा,‘मैं बौद्ध धर्म का अनुयायी हूं।लेकिन, मैं प्रेम और करुणा विकसित करने के गुर को सीखकर उन्हें धर्मनिरपेक्षता के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूं। धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को अपनाने से हमें अपनी माताओं से प्राप्तकरुणा और स्नेह को और मजबूत करने और आगे बढ़ाने में मदद मिलती है। जानवरों को देखो, वे बिना किसी धर्म के हस्तक्षेप के एक-दूसरे के प्रति स्वाभाविक स्नेह का निर्वाह करते हैं। इसी तरह से बच्चे एक-दूसरे के प्रति नैसर्गिकस्नेह रखते हैं,चाहे वे किसी भी धर्म, राष्ट्र या जाति के हों।बच्चे उन्मुक्त मित्रता का प्रदर्शन करते हैं। इसलिए वयस्कों के लिए इसका अनुकरण करना बेहतर रहेगा। ‘उन्होंने कहा,‘हमें विभाजनकारी तत्वों पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। इसकी बजाए हमें मानवता की एकता की भावना विकसित करने की आवश्यकता है। हमें इस बात के लिए जागरुक होने की जरूरत है कि मनुष्य के रूप में हम सब एक समान हैं। हमें पूरी दुनिया में सद्भाव कायम करने के लिए प्रयास करना चाहिए। मनुष्य के रूप में हम सभी का चेहरा एक ही प्रकार का होता है। यानि,दो आंखें, एक नाक और एक मुंह होता है। यदि हम किसी तीसरी आँख वाले व्यक्ति से मिलें, तो यह सचमुच अजीब होगा।‘
परम पावन ने आगे बताया कि‘जब हम तिब्बती लोग निर्वासित होकर यहां आए और अलग-अलग संस्कृति, क्षेत्र और मूल के लोगों से मिलेतो पता चला कि हम बिल्कुल उनके जैसे ही थे। हालांकि चीनी कम्युनिस्ट शासन के हमले के कारण हमें बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। लेकिन फिर भी आज जब बड़े पैमाने पर चीनी लोग बाढ़ से पीड़ित हैं, हम उनके लिए सहानुभूति और चिंता प्रकट करते हैं। ऐसी आपदाएं जलवायु संकट का लक्षण हैं। मुझे आशा है कि चीनी लोगों के साथ एकजुटता प्रकट करते हुए मैं राहत प्रयासों के लिए दान देने में सफल हो सकूंगा।‘
इस अवसर पर बौद्ध साधक होने के तौर पर हम प्रार्थना करते हैं,
सभी प्राणियों को आनंद की प्राप्ति हो
और इस आनंद के कारण
सभी जीव दुखों और
दुख के कारणोंसे मुक्त हों
उन्होंने कहा,हमारे पास भव्य प्राणियों के बारे में केवल अनुमानित अवधारणा है, फिर भी हम कम से कम इस पृथ्वी पर सभी प्राणियों के कल्याण की बात कर सकते हैं।
मेरे मन में बाढ़ से जूझ रहे चीन के लोगों के प्रति बहुत सहानुभूति है और मुझे आशा है कि वेअपने सामने आने वाली इन चुनौतियों से पार पाने में सक्षम हो जाएंगे। हमारे धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि दुनिया अंततः पानी, आग या हवा से नष्ट हो जाएगी और वर्तमान में हमारे सामने उपस्थित ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह के आग का आभास देती है।
उन्होंने याद करते हुए कहा,‘जब मैं पहली बार लद्दाख आया था तो मेरा एक साथी इस बात से व्यथित था कि पहाड़ियां कितनी बंजर हैं। लेकिन पेड़-पौधे लगाने आदि गतिविधियों समेत आपके द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के कारण चीजें अबबदल गई हैं।‘
उन्होंने कहा,‘साल के इस समय में धर्मशाला और भारत के मैदानी इलाकों में बारिश के साथ उमस और नमी होती है। जब मैं लद्दाख आता हूं तो मैं इस बात की सराहना करता हूं कि यहां का मौसम शुष्क है और तापमान मध्यम है। मैं उस प्रेम के लिए भी यहां के लोगों के प्रति आभारी हूं जो उनके द्वारा मेरे प्रति दिखाया गया है। धन्यवाद।‘
सहानुभूति और करुणा के बीच अंतर पूछे जाने परपरम पावन ने समझाया कि करुणा दूसरों को दुखों से छुटकारा दिलाने के लिए किए जानेवाले कार्यों को कहा जाता है। उन्होंने कहाकि दुख तीन प्रकार के होते है:-कष्टों से गुजरने का दुख,परिवर्तन का दुख और जनम-मरण के चक्र में व्याप्त दुख। उन्होंने कहा कि जब तक हम कर्म और मोह के चक्कर में फंसकर परिश्रम करते रहेंगे, तब तक हमें कष्ट होता रहेगा। ये वे परिस्थितियां हैं,जिनसे हम मुक्ति पाना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि उन्होंने बोधिचित्त और शून्यता को समझने वाले ज्ञान पर वर्षों तक चिंतन-मननकिया है। परिणामस्वरूप, कर्म संचय के मार्ग का अनुभव प्राप्त कर लिया है और बुद्धत्व के मार्गतक पहुंचने का रास्ता तलाश रहे है। देखने के मार्ग से आगे सम्यक्त्व की प्राप्ति और पहला बोधिसत्व मैदान है। वहां से बुद्धत्व की प्राप्ति उसके मार्ग पर बढ़ने और जमीन बनाने की बात है। जब आप देखते हैं कि इस वास्तविकता को हासिल करना संभव है तो इससे इस तरह का आत्मविश्वास आता है कि आपने अपना मानव जीवन सार्थक बना लिया है।
नशीली दवाओं के दुरुपयोग को कम करने के लिए किए जानेवाले कार्यों के बारे में पूछे जाने पर परम पावन ने उत्तर दिया कि यह अदूरदर्शिता से उत्पन्न हुई एक विकटसमस्या है।जो लोग नशीली दवाओं की ओर रुख करते हैं, दरअसल उन्हें अपनी समस्याओं का कोई अन्य समाधान नहीं दिखता है। इसलिए वे समस्या के तात्कालिक समाधान के लिए नशीली दवाओं की ओर आकर्षित होते हैं। असल में,युवाओं को अपने जीवन को व्यापक संदर्भ में देखने की जरूरत है। माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों और छात्रों को समझाएं और सही काम करने के लिए उनका निर्देशन करना चाहिए। वे बच्चों को बताएं कि इसके बारे में व्यापक और अधिक विस्तृत दृष्टिकोण अपनाएं।
अंत में, परम पावन से पूछा गया कि एसईई लर्निंग प्रोग्राम शुरू करने जा रहे एक शिक्षक को वह क्या सलाह देंगे?इस पर उन्होंने सुझाव दिया कि जब शिक्षा दी जाए तो पूर्व जन्म और अगले जन्म के अस्तित्व जैसे धार्मिक विचारों को पढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यहां और अभी अधिक तात्कालिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। समस्याओं पर काबू पाने के लिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को आधार बनाया जाए।
परम पावन ने एक बात बताई कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में बोधिचित्त के साथ-साथ शून्यता में अंतर्दृष्टि विकसित करने की कोशिश की है।लेकिन वह मानते हैं कि इस तरह का अनुभव हर किसी के लिए नहीं है। उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया है वह उनके निजी प्रयास का परिणाम है।
उन्होंने प्रमुख बिंदु के तौर पर बताया कि करुणा के अवतार चेनरेज़िग से प्रार्थना करना आंतरिक विकास का एक साधन है। इसी प्रकार मंजुश्री की अराधना करने से हमें अपने मन से अज्ञानता औरअंधेरे को दूर करके अपनी बुद्धि और विवेक को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।
उन्होंने कहा कि भावनाओं के कामकाज के बारे में प्राचीन काल में नालंदा परंपराने जो ज्ञान विकसित किया,बड़ी संख्या में आजकल के वैज्ञानिक इसपर ध्यान दे रहे हैंऔर उससे सीख रहेहैं।
इसके बाद उन्होंने यहां मिलने आने के लिए प्रतिनिधियों को धन्यवाद दिया।