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२८ फरवरी, २०२३
थेगछेन छोएलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज २८ फरवरी की प्रातः परम पावन दलाई लामा ने अपने आवास से सटे मुख्य तिब्बती मंदिर छुगलगखंग के प्रांगण में हाल ही में स्नातक हुए १२० भारतीय कॉलेज छात्रों और एम३एम फाउंडेशन के सदस्यों का अभिनंदन किया।‘एम३एम इंडिया’ समूह द्वारा स्थापित ‘एम३एम फाउंडेशन’ उज्जवल भारत बनाने के लिए एकसमान विकास सुनिश्चित पर काम कर रहा है। इसका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और पर्यावरण के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करके सतत विकास करना और वंचित समुदायों को सशक्त बनाना है। फाउंडेशन अपनी देखरेख में छात्रों में जीवन कौशल को बढ़ावा देता है। उन्हें समानता, सहानुभूति, समावेश, सहयोग और विश्वास को महत्व देने के लिए प्रोत्साहित करता है।
परम पावन ने जब अपना आसन ग्रहण कर लिया, तब एम३एम के अध्यक्ष ने उन्हें टोपी और शॉल भेंट करते हुए पारंपरिक हिमाचली स्वागत किया। पांच गायों को बछड़ों के साथ पास में बंधे होने की ओर संकेत देते हुए उन्होंने परम पावन को सूचित किया कि इनमें से चार गायें चार विधवाओं को और एक गाय स्थानीय स्कूल को दी जानी हैं। सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने प्रवचन शुरू किया :
‘मनुष्य के रूप में हम सभी भाई-बहन हैं। लेकिन इसके अलावा हम तिब्बतियों के भारत के साथ लंबे समय से विशेष संबंध रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘सातवीं शताब्दी में तिब्बती राजा छोंगत्सेन गम्पो ने एक चीनी राजकुमारी से शादी की और मुझे यकीन है कि उन्हें चीनी भोजन बहुत पसंद आया। हालांकि, एक बार जब उन्होंने यह तय कर लिया कि तिब्बतियों को अलग लिपि की जरूरत है, तो उन्होंने चीनी वर्णों की बजाय भारतीय देवनागरी वर्णमाला पर आधारित नई तिब्बती लिपि तैयार करवाई।
‘एक शताब्दी बाद एक अन्य तिब्बती राजा ठिसोंग देचेन ने नालंदा विश्वविद्यालय के अग्रणी विद्वानों में से एक आचार्य शांतरक्षित को तिब्बत आमंत्रित किया। शांतरक्षित ने अपने बौद्ध-धर्म के विशाल ज्ञान का परिचय दिया, जिसमें छोटे से छोटे कण से लेकर अंतरिक्ष और चित्त के कार्यकलापों तक- सब कुछ की समझ शामिल थी।’
परम पावन ने कहा, ‘कभी-कभी मैं मज़ाक में कहता हूं कि अतीत में हम तिब्बती चेला थे और आप भारतीय गुरु थे। पर जब भारतीय लोग पश्चिमी विचारों से प्रभावित होकर उसके अधिक निकट आ गए, तो हम तिब्बतियों ने ही प्राचीन भारतीय ज्ञान और मूल्यों को संजोकर रखा है। अनिवार्य रूप से इसमें करुणा और अहिंसा का मूल्य शामिल है। ध्यान रहे, यद्यपि हम करुणा और अहिंसा को महत्व देते हैं, इसलिए हम तिब्बती शक्तिशाली और मजबूत बने हुए हैं। करुणा आंतरिक शक्ति लाती है जिससे आंतरिक शांति, अधिक आत्मविश्वास और मुस्कुराने की क्षमता आती है। यह इसलिए है क्योंकि मैं करुणा की साधना करता हूं। उन्होंने हंसते हुए कहा, इसीलिए ‘मैं हमेशा मुस्कुराता रहता हूं।’
परम पावन ने आगे समझाया कि एक दार्शनिक और तर्कशास्त्री के रूप में आचार्य शांतरक्षित का बौद्ध धर्म के प्रति दृष्टिकोण कारण और तर्क की क्रमिक समझ विकसित करने पर आधारित था। उसी समय तिब्बत में चीनी भिक्षु शिक्षा दे रहे थे कि शांत ध्यान अधिक प्रभावी दृष्टिकोण है। राजा ठिसोंग देचेन ने चीनी भिक्षु हशांग और शांतरक्षित के शिष्य कमलशील के बीच शास्त्रार्थ का आयोजन कराया। इस शास्त्रार्थ में भारतीय विद्वान को विजेता घोषित करते हुए उन्होंने उनकी अध्ययनशील, शोधपरक और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को स्वीकृति प्रदान की। परम पावन ने उल्लेख किया कि उन्होंने केवल चार या पांच वर्ष की आयु में चित्त और भावनाओं के कार्य के बारे में सीखना प्रारंभ किया तो उनका लालन-पालन भी इसी दृष्टिकोण के तहत हुआ था।
उन्होंने कहा, ‘जब से मैं भारत में रहने आया हूं, मैं उन सभी विद्वानों और वैज्ञानिकों सहित सभी प्रकार के लोगों से मिलता-जुलता रहा हूं, जो चित्त की शांति प्राप्त करने की विधियों में रुचि रखते हैं। जिन्हें हमने जीवित रखा है। मुझे विश्वास है कि यदि हम दिमाग की बेहतर समझ के साथ तकनीकी विकास को जोड़ने में सक्षम हो जाते हैं, तो हम उचित, स्वस्थ तरीके से प्रौद्योगिकी को नियोजित करने में भी सक्षम हो जाएंगे। उदाहरण के लिए अत्याधुनिक और परिष्कृत हथियारों के विकास में तकनीकी कौशल का उपयोग करना गलत है। विज्ञान का बेहतर उपयोग शांति की खोज में किया जाना चाहिए।
‘आज जीवित सभी आठ अरब मनुष्य शांति से रहना चाहते हैं। स्नेहशील होना मानव का मूल स्वभाव है। जब हम पैदा होते हैं तब हम अपनी मां की गोद और देखभाल के तहत रहते हैं और शांति पाते हैं। फिर, बचपन में हम दूसरों को वैसे ही देखते हैं जैसे वे हैं। हम अपने बीच विभेदों की पहचान नहीं करते हैं। इस तरह का भेदभाव करना हम बाद में सीखते हैं जब हम स्कूल जाते हैं। स्कूल का माहौल हमें ‘हम’ और ‘उन’ के आधार पर भेदभाव करने के लिए प्रेरित कर सकता है।’
‘चूँकि हम सभी मनुष्य हैं, हमें एक-दूसरे को भाई-बहन के रूप में देखने की आवश्यकता है। लड़ने और मारने के लिए हथियारों पर निर्भर रहने से विनाश के अलावा कुछ नहीं मिलता। धर्म के नाम पर लड़ना विशेष रूप से दुखद है, क्योंकि सभी धर्म अपने मूल में करुणा और प्रेम-कृपा ही सिखाते हैं।’
‘यदि हम मानवता की एकता के संदर्भ में सोचते हैं तो हम हथियारों से दूर हो सकते हैं और अपने बीच किसी भी मतभेद को बातचीत और चर्चा के माध्यम से हल कर सकते हैं। हमें खुद को याद दिलाना होगा कि हमारे पास क्या समान है। हम सभी एक ही तरह से पैदा हुए हैं और हम सभी एक ही तरह से मरते हैं। मुझे उम्मीद है कि मेरे जीवनकाल में हम हथियारों और हिंसक संघर्षों से मुक्त एक वास्तविक शांतिपूर्ण दुनिया बना सकते हैं।’
‘अधिक क्या कहना। चूंकि ग्लोबल वार्मिंग इतनी गंभीर होती जा रही है, इसीलिए जब तक हम कर सकते हैं, हमें एक-दूसरे की मदद करते हुए एक साथ खुशी से रहना सीखना चाहिए।’
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर में परम पावन ने इस बात की सराहना की कि भारत में कितने विविध रीति-रिवाज और दृष्टिकोण साथ-साथ फलते-फूलते हैं। जो लोग इस विविधता को स्वीकार करते हैं, वे शांतिपूर्वक एकसाथ रहते हैं। उन्होंने कहा, यह कुछ ऐसी बातें हैं, जिसे दुनिया सीख सकती है।
उन्होंने छोटे बच्चों को ‘मैं’ भाव को कम और ‘हम’ भाव को अधिक आत्मसात करने के लिए प्रोत्साहित करने पर जोर दिया। उन्होंने दोहराया कि जलवायु परिवर्तन के कारण हम जिन गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उनका मतलब है कि हमें सहयोग करना होगा और साथ मिलकर काम करना होगा। ‘हम’ और ‘वे’ के विचार पुराने हो चुके हैं।
अंत में, यह पूछे जाने पर कि आध्यात्मिक विकास कैसे प्राप्त किया जाए, परम पावन ने कहा:
‘हमारे मन को कई अलग-अलग भावनाएं प्रभावित करती हैं। इनमें से कुछ क्रोध और भय जैसी भावनाएं परेशान करने वाली होती हैं, जबकि सहानुभूति और करुणा जैसी कुछ अन्य भावनाएं आनंद प्रदान करती हैं। सकारात्मक भावनाओं का पोषण स्वाभाविक रूप से विनाशकारी भावनाओं को कम करने में मदद करता है। जैसा कि मैंने पहले ही उल्लेख किया है, यह करुणा ही है जो आंतरिक शक्ति और मन की शांति की ओर ले जाती है। इसलिए, हमें अपने आप को लगातार याद दिलाना है कि एक ही मानव परिवार के सदस्य के रूप में हम भाई-बहन हैं। और हमें उन अच्छे लोगों के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए जो शांति के लिए काम करते हैं न कि वैसे लोगों का, जो लड़ते और मारते हैं।’
जब वह अपने आवास जाने लगे तो गोल्फ-कार्ट में चढ़ते से पहले परम पावन उन गायों का निरीक्षण करने के लिए रुके, जिनको दान के रूप में दिया जानेवाला था। उन्हें देखकर परम पावन ने उनके प्रति कुछ दयापूर्ण शब्द कहे।