वाराणसी । जिस तरह के संकटो से पूरी दुनिया आज जूझ रही है उसका हल मानवीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा में निहीत है । अगर हम शांति , करुणा , प्रेम , सहिष्णुता पर आधारित विश्व चाहते है तो शिक्षा में हमें मानवीय मूल्यों के साथ-साथ धर्मनिरपेक्षता को भी आत्मासात करना होगा। सोमवार को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविधालय में लगभग तीन दशक बाद आए परम पावन दलाई लामा ने उक्त बतें कही । विश्व विघलाय के शताब्दी भवन सभागार में आय़ोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय परिसंवाद गोष्ठी और अपने आभिनंदन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि परम पवान ने कहा कि पिछले एक हजार वर्षों से सत्य, अहिंसा , करुणा , मैत्री , प्रेम का संदेश देने वाला भारत दुनियां को रास्ता दिखा रही है । इसकी धर्म निरपेक्ष संस्कृति पूरी दुनियां के लिए मिसाल है । आज पूरी दुनियां में धर्म को लकेर जिस तरह का माहौल है ऐसे में अहिंसा , करुणा, मैत्री को बढावा देने से ही शांति मिलेगी । उन्होंने कहा कि धर्म को मानने के साथ धर्म निरपेक्ष होना जरुरी है। आज पूरी दुनियां में करोडों बिना धर्म का माने नैतिक चरित्र के आधार पर अच्छा जीवन जी रहे है । इसके लिए बेहद जरुरी है कि धर्म निपेक्षता नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा की । उन्होंने इस तरह की शिक्षा देने के लिए गुरुजनों से आगे आने की अपील की । परम पावन ने अहिंसा को परिभाषित करते हुए कहा कि आहिंसा का मतलब दिन हीन होना नहीं है बल्कि समस्याओं का सामना कर इसे समस्याओं के जरिए सुलझाए जाएं। गुरु -शिष्य परम्पारा पर सहज हास्य बिखेरते हुए कहा कि संस्कृत में धारा प्रवाह भाषण करने वाले सभी लोग मेरे गुरु है और मै उनका विश्वसनीय चेला हूं। कहा कि जब पूरी दुनियां में धर्म को लेकर उथल -पुथल मचा हुआ था तो तिब्बत मे हमने भारतीय संस्कृति को संरक्षित किया था। उन्होंने कहा कि संरक्षित किया था । उन्होंने कहा कि अच्छा बनने के लिए जरुरी नही की हम धार्मिक हो बल्कि एक अच्छा इंसान बने रहना धार्मिक बने रहने से कही ज्यादा जरुरी है । आभिनंदन समारोह में बतौर विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी काशी विधापीठ के कुलपति प्रो. अवध राम केन्द्रीय तिब्बति अध्ययन विश्वविधालय के कुलपति पदमश्री प्रो. राम शंकर त्रिपाठी ने गरिमामय उदबोधन किया । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्व विधालय के कुलपति प्रो. बी. कुटुम्ब शास्त्री में परम पावन को विश्व गुरु का दर्जा देते हुए कहा कि हम धर्म , संस्कृति सदाचार के शिखर पुरष रहे गुरुओं की जीवन वृत्त पढते रहे है परम पावन इसके जिवन्त स्वरुप और करुणा , प्रेम के मूर्त रुप है । जो पूरी दुनियां को शांति एंव अहिंसा का संदेश दे रहे है। इस मौके पर विश्वविधालय के कुलपति प्रो. शास्त्री ने परम पावन का मालर्यापण , अंग वस्त्रम पहना स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इसके पहले कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक मंगला चरण और पाली मंगलाचरण से हुआ । स्वागत आभिनंदन प्रतिकुलपति प्रो. नेरन्द्र नाथ पाणडेय संचालन प्रो. रमेश द्विवेदी ने किया।
एक अच्छा इंसान बनना धार्मिक बने रहने से कहीं ज्यादा जरुरी । दलाई लामा
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