tibet.net
28 मार्च, 2021, नई दिल्ली। भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), उदयपुर के पब्लिक पॉलिसी ग्रुप ने चीन-भारत संबंधों पर एक ऑनलाइन चर्चा का आयोजन किया। बता दें कि प्रबंधन अध्ययन के लिए 2018 में स्थापित सबसे नवीनतम बी-स्कूल संस्थानों में से एक यह संस्थान एसीसीबी मान्यता प्राप्त है। इस आयोजन का उद्देश्य सार्वजनिक नीति मामलों का पता लगाना और उनका अध्ययन करना है, जो चीन-भारत संबंधों को समझने के लिए अपरिहार्य हैं। इस कार्यक्रम में दो अतिथि वक्ताओं- श्री राहुल कश्यप और श्री जिग्मे त्सुल्त्रिम के अलावा संकाय सदस्य डॉ. सौरभ गुप्ता को विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया था।
कार्यक्रम के बारे में श्री ऋषभ ने प्रस्तुति दी, जबकि अतिथियों के बारे में विस्तार से परिचय सुश्री करनप्रीत ने दिया। दोनों पब्लिक पॉलिसी ग्रंप के छात्र-संकाय के प्रतिनिधि थे। शुरू में श्री राहुल कश्यप ने सार्वजनिक नीति मामलों के गहन अध्ययन के साथ-साथ व्यावसायिक अध्ययन के प्रमुख तत्वों को विस्तार से बताया। उन्होंने संकेत दिया कि चीन-भारत संबंध अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन के दायरे में डरावने विषयों में से एक बना हुआ है। फिर भी छात्रों और पेशेवरों को इस मामले के हर पहलू का गहन अध्ययन करना चाहिए।
उन्होंने पिछले दो दशकों में और विशेषकर 2020 में चीन-भारत संबंधों में हुई घटनाओं की उन शृंखलाओं पर गौर किया, जो लद्दाख (वर्तमान संघशासित प्रदेश) से अरुणाचल प्रदेश तक फैली सीमा पर चीनी कम्युनिस्ट सरकार के नियंत्रण की उसके द्वारा की जा रही गलत व्याख्या को सही ठहराने के प्रयास के साथ हुई हैं। इस बीच श्री कश्यप ने अपनी हालिया पुस्तक का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने चीन के साथ 1962 के युद्ध और भारत सरकार की विफलताओं और उससे भारत को लगे मनोवैज्ञानिक आघात को दूर करने का प्रयास किया है। उन्होंने इन विषयों पर अकादमिक ज्ञान के लिए प्रतिष्ठित संस्थान के तौर पर स्थापित पब्लिक पॉलिसी ग्रुप द्वारा ऐसे उपक्रम करने के लिए इसकी टीम की सराहना की।
समन्वयक ने अपने संबोधन की शुरुआत चार बिंदुओं पर चर्चा के साथ की। ये चार बिंदू हैं- चीन और भारत के बीच व्यापार और वाणिज्य संबंध, सांस्कृतिक संबंध, भौगोलिक संबंध और अंत में राजनीतिक और सामाजिक संबंध। उन्होंने 2018 और 2019 के उन आंकड़ों को साझा किया जो भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं और जो इन दोनों राष्ट्रों के बीच निर्यात / आयात लेनदेन और निवेश के व्यापक अंतर को दर्शाता है और जिसमें हाल के वर्षों में भारत सरकार को नुकसान उठाना पड़ा है।
उन्होंने चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंधों की संभावनाओं को रेखांकित किया और भारत के तिब्बत के साथ संबंधों की चर्चा की। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कैसे चीनी विद्वान भारत आते थे, यहां बौद्ध दर्शन का अध्ययन करते थे, वापस लौटकर जाते थे और यहां से अर्जित ज्ञान को वहां अपनी परंपरा में शामिल कर लेते थे। जबकि तिब्बती आचार्यों और विद्वानों ने भारत का दौरा किया, अध्ययन किया लेकिन तिब्बत में परंपरा के ज्ञान के लिए नालंदा और तक्षशिला से भारतीय आचार्यों को आमंत्रित करने में भी सफल रहे। नालंदा और तक्षशिला उस समय भारत स्थित दुनिया के प्रमुख शिक्षण संस्थान और शिक्षा के केंद्र हुआ करते थे।
उन्होंने चीनी बौद्ध साधकों के मामले को प्रस्तुत किया, जिनके अनुयायियों की संख्या चीन में 24 करोड़ से अधिक हो गई हैं। इनमें से 30% से अधिक अनुयायी व्यक्तिगत तौर पर जोखिम मोल लेते हुए परम पावन दलाई लामा के उपदेशों का पालन करते हैं। उन्होंने छात्रों से इन मामलों में आगे अध्ययन करने का अनुरोध किया जिससे कि यह फिर अकादमिक ज्ञान के आकाश को विस्तृत कर सके।भौगोलिक संदर्भ को छूते हुए समन्वयक ने भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक और भौगोलिक संबंधों की ओर ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद उन्होंने चीन और भारत के साथ और तिब्बत के संबंधों का जिक्र किया। उन्होंने आयोजन में उपस्थित लोगों से सीबीएसई के प्राथमिक चरण के स्कूलों के पहले के सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम को देखने को कहा जिसमें भारत और उसके पड़ोसी के विषय के बारे में चर्चा की गई है। उस पाठ्यक्रम को वर्तमान में कुछ अपरिहार्य कारणों से बदल दिया गया है।
उन्होंने इस मुद्दे को तिब्बत के अंदर आने वाले वर्षों में पर्यावरणीय विनाश और ब्रह्मपुत्र समेत तिब्बत से निकलने वाली प्रमुख विशाल नदियों पर अतिक्रमण और बड़ी संख्या में बनाए जा रहे डैम के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के बड़े खतरों के साथ जोड़ा। एशिया के जल टावरों के रूप में विख्यात तिब्बत के हजारों छोटे और मध्यम ग्लेशियर में से ज्यादातर अब पिघल गए हैं और उनकी जगहों पर झीलें बन गई हैं जो चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के व्यापक दोहन के प्रत्यक्ष परिणामस्वरूप किसी भी क्षण फट कर तबाही मचा सकती हैं।
समन्वयक ने इसके साथ भारत और चीन के बीच राजनीतिक और सामाजिक संबंधों को जोड़ा। इनमें एक देश लोकतांत्रिक है और दूसरा अधिनायकवादी और कम्युनिस्ट है। एक जिसने अलग-अलग सरकारों की नीतियों और व्यवहारों को देखा है जबकि दूसरे ने केवल जनता पर सत्ता की जकड़ को मजबूत किया है और उन पर अधिक से अधिक प्रतिबंधों को लगाया है। उन्होंने हांगकांग पर नए सुरक्षा कानूनों को लागू करने के संबंध में कम्युनिस्ट चीनी सरकार की कठोर और विस्तारवादी नीति के हालिया उदाहरणों को याद दिलाया। यह कानून चीनी गणराज्य के संविधान में प्रदत्त अधिकारों में ही हस्तक्षेप करनेवाला है। ताइवान, थियेनमेन चौक पर बर्बर दमन की घटना के बाद फिर से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उभार ने सीसीपी की प्रतिष्ठा को कम ही किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आईटीसीओ इन घटनाओं को अद्यतन करने का काम करता है और भारतीय जनता के बीच इस आशा में जानकारी का प्रसार करता है कि तिब्बत के न्याय के दृष्टिकोण को ईमानदारी और सच्चाई के साथ आकलन किया जा सके। उन्होंने वरिष्ठ संकाय सदस्य डॉ. सौरभ गुप्ता को इस ऑनलाइन कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद दिया और सत्र के दौरान रचनात्मक प्रश्नों और धैर्य धारण किए रहने के लिए प्रतिभागियों की सराहना की।
यह कार्यक्रम शाम 5.30 बजे शुरू हुआ और शाम 7.30 बजे तक चला। इस दौरान प्रश्नोत्तर भी हुए, जिसमें छात्र की ओर से सक्रिय रूप से भाग लिया गया था। श्री ऋषभ गुप्ता ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया और उम्मीद जताई कि है कि पब्लिक पॉलिसी ग्रुप आने वाले महीनों में एक और सत्र आयोजित करेगा।
– आईटीसीओ, नई दिल्ली द्वारा जारी