वाराणसी। अभ्यास से बोधिसत्व की प्राप्ति संभव है। आचार्य शांतिदेव कृत बोधिचर्यावतार [चुंचुक] और आचार्य कमलशील द्वारा रचित भावनाक्रम [गोमदिन पर्पा] इस अभ्यास के क्रम को वैज्ञानिक तरीके से बताते हैं। यह कहना था परम पावन दलाई लामा का। श्री दलाई लामा बुधवार को केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय प्रांगण में पांच दिवसीय प्रवचन के शुभारंभ सत्र में विचार व्यक्त कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि बोधिचर्यावतार को हिमाचल प्रदेश के खुनु लामा तेनजिन ग्यलछेन से प्राप्त किया था। भावनाक्रम शाक्य संप्रदाय के महागुरु सांगे तेनजिन से प्राप्त किया था। उन्होंने इस दौरान प्रवचन सुनने के नियम, इसके फायदे व उद्देश्यों की जानकारी दी। दूसरे सत्र श्री दलाई लामा ने कहा कि बौद्ध नरक, प्रेत, तिर्यक या दुर्गति, देव, असुर व मनुष्य इन छह योनियों को मानते हैं। इन योनियों से मुक्ति के बाद ही निर्वाण संभव है। मनुष्य के अच्छे बुरे कर्मो का प्रभाव दूसरों पर भी पड़ता है। इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए। उन्होंने इस दौरान बौद्धों से पाखंड व अंधविश्वासों से दूर रहने का आह्वान किया। उनका कहना था कि केवल वस्त्र पहन लेने से कोई भिक्षु नहीं हो जाता। भिक्षु को हमेशा अध्ययनरत रहना चाहिए। उन्होंने दु:ख एवं निवृत्ति की भी व्याख्या की। कहा कि दु:ख के स्वभाव को जाने बिना इससे मुक्ति नहीं मिल सकती। उन्होंने कहा कि प्राणियों के दु:ख को दूर करना ही मनुष्यता है।
इससे पूर्व काल चक्र मंडप में पहुंचने पर उनका परंपरागत तरीके से स्वागत किया गया। विशेष सिंहासन पर बैठकर उन्होंने दिन में दो चरणों में प्रवचन दिया। श्री दलाई लामा के प्रवचन को सुनने के लिए श्रद्धालुओं के जत्थे सुबह साढ़े छह बजे से ही पंडाल में पहुंचने शुरू हो गए थे। नौ बजे तक पंडाल पूरा भर गया था। लोग क्यारियों में व पंडाल में आने जाने के लिए छोड़े गए मार्गो पर बैठकर प्रवचन सुन रहे थे। विश्वविद्यालय के अधिकारियों के अनुसार पंडाल में करीब 15 हजार श्रद्धालु जुटे थे। सैंकड़ों श्रद्धालु आस पास के परिसर व मुख्य मार्गो पर जमा थे। इनमें बच्चे, बूढ़े, विकलांग समेत सभी शामिल थे। कई गंभीर रूप से बीमार श्रद्धालु भी प्रवचन सुनने के लिए डटे रहे। प्रवचन के दौरान परम पावन गादेन ट्री रिनपोछे व अन्य वरिष्ठ लामा मंच पर उपस्थित रहे।