बौद्ध धर्मगुरु ग्यारहवें पंचेन लामा गेदुन चुकी नीमा के तैंतीसवें जन्मदिन २५ अप्रैल २०२२ को विभिन्न देषों में अनेक संस्थाओं द्वारा चीन सरकार से मांग की गई कि वह पंचेन लामा को शीघ्र रिहा करे। इससे स्पष्ट है कि तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु पंचेन लामा के शरण पर सम्पूर्ण लोकतांत्रिक ताकतें एकजुट हैं। ज्ञातव्य है कि सिर्फ छः वर्ष के बालक पंचेन लामा का चीन सरकार ने उनके परिजनों सहित अपहरण कर लिया था। सभी तिब्बती और तिब्बत समर्थकों के दिल में पंचेन लामा के प्रति जबर्दस्त श्रद्धाभाव है। वे उनके तथा उनके परिजनों के स्वास्थ्य आदि के बारे में प्रामाणिक और विष्वसनीय जानकारी चाहते हैं। वे उन्हें देखना चाहते हैं। उनसे मिलना चाहते हैं। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि चीन सरकार इस संबंध में मौन है। सत्य बताने के स्थान पर वह भ्रम फैलाने में तत्पर है। धर्मविरोधी साम्यवादी चीन सरकार द्वारा पंचेन लामा के अपहरण से साफ है कि वह तिब्बत की धार्मिक पहचान को मिटाने हेतु साजिषपूर्ण नीति पर चल रही है।
ग्यारहवें पंचेन लामा के तैंतीसवें जन्मदिन को भारत स्थित निर्वासित तिब्बत सरकार जो कि लोकतांत्रिक तरीके से तिब्बतियों द्वारा चुनी गई है, ने भी महत्वपूर्ण बना दिया है। निर्वासित तिब्बत सरकार के सिक्योंग पेंपा त्सेरिंग ने २४ अप्रैल से प्रारम्भ अपनी अमरीका यात्रा में इस विषय को प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने तिब्बत मामलों की अमरीकी समन्वयक आजरा जेया तथा इस विषय से जुड़े अन्य अमरीकी अधिकारियों एवं नीति निर्माताओं से भेंट की। वे अमरीकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैन्सी पैलोसी तथा कांग्रेस के कई सदस्यों एवं अधिकारियों से मिले। उनके मतानुसार तिब्बत समस्या का सही समाधान ”मध्यममार्ग” है। तिब्बत को चीन सरकार अपनी ही संवैधानिक व्यवस्था तथा राष्ट्रीयता संबंधी कानून के अनुकूल ”वास्तविक स्वायत्तता” प्रदान करे । विदेष नीति एवं प्रतिरक्षा चीन के पास रहे। शिक्षा, कृषि आदि अन्य सभी विषय तिब्बत को सौंपे जायें। इससे चीन की भौगोलिक एकता एवं संप्रभुता पूर्णतः सुरक्षित रहेगी तथा तिब्बतियों को स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा। ज्ञातव्य है कि साम्राज्यवादी चीन ने १९५९ में स्वतंत्र देष तिब्बत पर अवैध कब्जा कर लिया था। लेकिन तिब्बती पूर्ण आजादी की मांग को छोड़कर सिर्फ वास्तविक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं।
सिक्योंग पेंपा त्सेरिंग ने अपनी जर्मनी एवं अमरीका की यात्रा में मध्यममार्ग नीति को जोरदार तरीके से उठाते हुए विष्वास व्यक्त किया है कि विभिन्न देषों के सामूहिक सहयोग एवं समर्थन से तिब्बत समस्या का स्वीकार्य समाधान जरूर निकलेगा। उम्मीद है कि मई में अपनी कनाडा यात्रा के समय भी वे मध्यममार्ग नीति के पक्ष में वातावरण को ज्यादा मजबूत करेंगे। तिब्बती बस्तियों के अपने प्रवास में कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा तथा भावी कार्यक्रमों पर चर्चा के साथ ही वे मध्यममार्ग नीति के प्रति प्रतिब्द्धता को ज्यादा सुदृढ़ करते हैं। परिणामतः पंचेन लामा की शीघ्र रिहाई तथा तिब्बत समस्या के हल हेतु बढ़ता अन्तरराष्ट्रीय सहयोग एवं समर्थन प्रशंसनीय है।
परमपावन दलाई लामा की आध्यात्मिक सक्रियता ने भी तिब्बतियों एवं तिब्बत समर्थकों को नई ऊर्जा प्रदान की है। चीन के वुहान शहर से विश्वभर में फैली कोरोना महामारी ने दलाई लामा की आध्यात्मिक गतिविधि में भी बाधा डाली थी। खुशी की बात है कि कोरोना महामारी के कम होते ही वे फिर से सार्वजनिक दर्शन देने लगे हैं। उनके सार्वजनिक प्रवचनों में अनुयायियों की भीड़ बढ़ने लगी है। हिमाचल प्रदेश के कांगडा़ जिले की धर्मशाला में निर्वासित तिब्बत सरकार का मुख्यालय है और दलाई लामा का निवास भी। उन्होंने कांगड़ा के जिलास्तरीय अधिकारियों कलक्टर, एस पी, आदि को दर्शन दिये हैं। इसी अप्रैल में अनेक बौद्ध धर्मगुरु उनके दर्शन कर चुके। लद्दाख के थिक्से मठ के थिक्से रिंपोछे भी उनमें शामिल हैं। लद्दाख के पूर्व सांसद तथा लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष थुप्तेन छेवांग ने दलाई लामा के दर्शन तथा आशीर्वाद प्राप्त कर उनसे प्रार्थना की कि वे जुलाई – अगस्त में लद्दाख आकर प्रवचन करें। दलाई लामा ने उन्हें लद्दाख आने का आश्वासन दिया है। इससे लोगों में खुशी की लहर है। कोरोना महामारी ने सबको ऑनलाइन और वर्चुअल प्रवचन की जंजीरों में जकड़ रखा था। अब प्रत्यक्ष प्रवचन – दर्शन – आशीवर्चन का सौभाग्य फिर से मिल गया। कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद दलाई लामा की लद्दाख यात्रा धर्मशाला के बाहर पहली आधिकारिक यात्रा होगी।
दलाई लामा से मिलने राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय महानुभाव फिर से आने लगे हैं। इनमें पत्रकार, कलाकार, राजनेता, विद्वान्, धर्मगुरु तथा समाजसेवी शामिल हैं। इनमें नीतिनिर्माता और विभिन्न सरकारी एवं निजी संस्थानों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। चीन सरकार की दृष्टि में दलाई लामा एक आतंककारी तथा विघटनकारी व्यक्ति हैं। विस्तारवादी चीन के विपरीत विश्व के सभी लोकतांत्रिक देषों की दृष्टि में दलाई लामा शांति के लिये समर्पित धर्मगुरु हैं। वे शांति, अहिंसा, करुणा तथा सद्भाव जैसे मानवीय मूल्यों के प्रचारक हैं। तिब्बत पर अवैध कब्जा किये उपनिवेशवादी चीन के लिये भी उनके दिल में करुणा है। नोबल शांति पुरस्कार सहित अनेक राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों तथा सम्मानों को प्राप्त कर चुके दलाई लामा पर्यावरण-संरक्षण के प्रति समर्पित हैं। प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुरूप उनका मत वसुधैव कुटुम्बकम का है। हठर्ध्मिता छोड़ चीन उनके विचारों को अपनाये तो इससे उसका भी कल्याण होगा।